२२१/२१२१/१२२१/२१२
*
सीमित से दायरे में न पल भर उड़ान हो
उनको भी अब तो एक बड़ा आसमान हो।१।
*
दुत्कार अब न तुम लिखो हिस्से अनाथ के
राजन सभी के नाथ हो सब को समान हो।२।
*
केवल हों कर्म ध्यान में नित मान के लिए
इस को नहीं जरूरी बड़ा खानदान हो।३।
*
मन्जिल की दूरियों को अभी पाटना इन्हें
इतनी अधिक न पाँव के हिस्से थकान हो।४।
*
जनता को खुद ही चाहिए उनको न ताज दे
जिस की भी लोकराज में कड़वी जबान हो।५।
*
हिस्से में…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 25, 2022 at 7:00am — 4 Comments
पाँच दोहे मेघों पर . . . . .
अम्बर में विचरण करे, मेघों का विस्तार ।
सावन की देने लगी, दस्तक अब बौछार ।।
मेघों का मेला करे, अम्बर का शृंगार ।
आज दिवाकर लग रहा, थोड़ा सा लाचार ।।
थोड़ी सी है धूप तो, थोड़ी सी बरसात ।
अम्बर में आदित्य को, बादल देते मात ।।
बादल नभ को चूमते, पहन श्वेत परिधान ।
हंसों की ये टोलियाँ, आसमान की शान ।।
नील वसन पर कर दिया, मेघों ने शृंगार ।
धरती पर चलने लगी, शीतल मस्त बयार…
Added by Sushil Sarna on June 24, 2022 at 2:30pm — 6 Comments
कब चाहा मैंने के तुम मुझसे नैना चार करो
कब चाहा मैंने के तुम मुझसे मुझसा प्यार करो
कब चाहा मैंने के तुम मेरे जैसा इज़हार करो
कब चाहा मैंने के तुम अपने प्रेम का इकरार करो
कब चाहा मैंने के तुम मुझसे मिलने को तड़पो
कब…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 24, 2022 at 10:59am — No Comments
हंसगति छन्द. . . .(11,9)
जले शमा के साथ, रात परवाने ।
करें इश्क की बात, शमा दीवाने ।
दिल को दिल दिन-रात, सुनाता बातें ।
आती रह -रह याद, तन को बरसातें ।
* * * *
बिखरी-बिखरी ज़ुल्फ,कहे अफसाने ।
तन्हा - तन्हा आज, लगे मैख़ाने ।
पैमानों से रिन्द , करें मनमानी ।
अब लगती है जीस्त , यहाँ बेमानी ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
सुशील सरना / 23-6-22
Added by Sushil Sarna on June 23, 2022 at 1:14pm — No Comments
दोहा पंचक. . . . .
अद्भुत है ये जिंदगी, अद्भुत इसकी प्यास ।
श्वास-श्वास में आस का, रहता हरदम वास ।।
श्वास-श्वास में आस का, रहता हरदम वास ।
इच्छाओं की वीचियाँ, दिल में करतीं रास ।।
इच्छाओं की वीचियाँ, दिल में करतीं रास ।
जीवन भर होती नहीं, पूर्ण जीव की आस ।।
जीवन भर होती नहीं, पूर्ण जीव की आस ।
अन्तकाल में जिन्दगी, होती बहुत उदास ।।
अन्तकाल में जिन्दगी, होती बहुत उदास ।
अद्भुत है ये जिंदगी, अद्भुत…
Added by Sushil Sarna on June 22, 2022 at 6:12pm — 8 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
*
खंडित करे न देश को तलवार मजहबी
आँगन खड़ी न कीजिए दीवार मजहबी।।
*
मन्शा उन्हीं की देश को हर बार तोड़ना
करते रहे हैं लोग जो व्यापार मजहबी।।
*
जीवन न जाने कितने ही बर्बाद कर रहा
इन्सानियत से दूर हो सन्सार मजहबी।।
*
माटी का मोल प्रेम की भाषा भी साथ हो
इन के बिना तो व्यर्थ है सँस्कार मजहबी।।
*
समरसता ज्ञान और न आपस का मेल है
बच्चों को जो भी देते हैं आधार मजहबी।।
*
करती नहीं है धर्म का कोई भी काम…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 22, 2022 at 10:00am — 2 Comments
1212 1122 1212 22 /112
1
हम आह जब कभी महफ़िल में भरने लगते हैं
नज़र में भर के वो हर दर्द हरने लगते हैं
2
जुनून-ए-इश्क़ में अब क्या सुनाएँ हाल-ए-दिल
ख़याल आते ही उनका सँवरने…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on June 21, 2022 at 8:21pm — 7 Comments
मैं बंजारा, मैं आवारा, फिरता दर दर पर ना बेचारा
ना मन पर मेरा ज़ोर कोई, मैं अपने मन से हूँ हारा
ठिठक नहीं कोई ठौर नहीं, आगे बढ़ने की होड नहीं
कोई मेरा रास्ता ताके, जीवन में ऐसी कोई और नहीं
ना रिश्ता है ना नाता है, बस अपना खुद से वादा…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 21, 2022 at 11:20am — No Comments
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
*
नहीं ऐसा स्वयं यूँ ही सभी को दीप जलते हैं
दुआ माँ की फलित होती तभी तो दीप जलते हैं।।
*
तमस की रात कितनी हो ये सूरज ही करेगा तय
मगर सब को उजाला हो इसी को दीप जलते हैं।।
*
हवा से यारियाँ उन की उसी से साँस चलती है
सदा तूफान से लड़कर बली हो दीप जलते हैं।।
*
तुम्हारे जन्म से यौवन खुशी को जो लड़े तम से
बुढ़ापे में तके पथ को वही दो दीप जलते हैं।।
*
जलाया घर अमावस ने है लेकर नाम उनका ही
कहेगा कौन अब ऐसा सभी को दीप जलते…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 21, 2022 at 5:21am — No Comments
221 - 2121 - 1221 - 212
मौज आयी..घर को फूंक तमाशा बना दिया
हा.... झोंपड़ा फ़क़ीर ने ख़ुद ही जला दिया
कर के इशारा बज़्म से जिसको उठा दिया
दरवेश ने उसी का मुक़द्दर बना दिया
अपनों के होते ग़ैर भला क्यूँ उठाए ग़म
नादान दोस्तों ने ही रुसवा करा दिया
नफ़रत की फ़स्ल देख के ख़ुश हो रहे थे सब
बोया था जिसने ज़ह्र उसी को चखा दिया
मुझको था ए'तिमाद कि आ जाएगी बहार
रंग-ए-ख़िज़ाँ ने मेरे यक़ीं को…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 20, 2022 at 11:59am — 12 Comments
पितृ दिवस पर कुछ क्षणिकाएँ ....
काँधे को
काँधे ने
काँधे दिया
इक अरसे के बाद
सृष्टि रो पड़ी
.........................
छूट गया
उँगलियों से
उनका आसमान
इक नाद बनकर रह गया
इक नाम
पापा
............................
पापा
पुत्र का आसमान
पुत्र
पिता का अरमान
एक छवि एक छाया
एक जान
एक पहचान
सुशील सरना / 19-6-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on June 19, 2022 at 8:28pm — 4 Comments
दोहे -पिता
*****
पिता एक उम्मीद सह, हैं जीवन की आस
वो हिम्मत परिवार की, हैं मन का विश्वास।१।
*
जीवन जग में तात ही, केवल ऐसा गाँव
सघन शीत जो धूप दें, और धूप में छाँव।२।
*
जो करते सुत को सरल, जीवन की हर राह
अनुभव से अर्जित हमें, देकर सीख अथाह।२।
*
डाँट-डपट करते भले, भोर, दिवस या रात
सम्बल सबके पर रहे, कठिन समय में तात।४।
*
नित सुख में परिवार हो, होती मन में चाह
हँसते -हँसते झेलते, इस को पीर अथाह।५।
*
पत्थर से व्यवहार…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 18, 2022 at 3:53pm — 4 Comments
कोशिश है जीवन पाने की
सबकी चाह प्रथम आने की
कई करोड़ों लड़ते लेकिन
कोई - कोई विजयी निकले
शेष कहाँ जा खो जाते हैं, इसका कुछ अनुमान नहीं है
कोई चाहे कुछ भी कह ले, जीवन पथ आसान नहीं है
शाम सुबह या जेठ दुपहरी, भूख मिटाते जीवन बीते
कल जैसा ही कल होगा क्या, इस असमंजस में हम जीते
रेत सरीखे अपने सपने, कब ढह जाए नहीं भरोसा
जीने की उम्मीद लिए सब, बूँद जहर का चेतन पीते
दो रोटी पाने की …
Added by नाथ सोनांचली on June 17, 2022 at 9:59pm — 2 Comments
जागो मेरे वीर सपूतो, मैंने है आह्वान किया
आज किसी कपटी नज़रों ने मेरा है अपमान किया
किसी पापी के नापाक कदम, मेरी छाती पर ना पड़ने पाए
आज सभी तुम प्रण ये कर लो, जो आया, कुछ, ना लौट के जाने पाये
दिखला दो तुम दुश्मन को, तुम भारत के वीर सिपाही…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 17, 2022 at 11:15am — No Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
चाहत है मन में एक ही दुनिया सयानी हो
अब रक्त डूबी इस में न कोई कहानी हो।।
*
होता अगर हो प्यार का आबाद हर नगर
हर बात उसकी हम को भी यूँ आसमानी हो।।
*
भटको न आस पास के रंगीं नजारे देख
पथ में रखो निगाह जो ठोकर न खानी हो।।
*
हमने उन्हें खुदा का जो दर्जा दिया है फिर
कोई सजा अगर हो तो उन की जुबानी हो।।
*
किस्मत बड़ी है मान ले दामन में गर गिरे
मोती सा आबदार जो आँखों का पानी हो
*
दिल है जवाँ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 17, 2022 at 7:14am — No Comments
मुक्तक
आधार छंद हंसगति (11,9 )
प्रीतम तेरी प्रीत , बड़ी हरजाई ।
विगत पलों की याद, बनी दुखदाई ।
निष्ठुर तेरा प्यार , बहुत तड़पाता -
तन्हाई में आज, आँख भर आई ।
* * *
दिल से दिल की बात, करे दिलवाला ।
मस्ती में बस प्यार , करे मतवाला ।
उसके ही बस गीत , सुनाता मन को -
पी कर हो वो मस्त , नैन की हाला ।
सुशील सरना / 15-6-22
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Sushil Sarna on June 15, 2022 at 11:44am — 4 Comments
1
माँ गुरु थी पहली अपनी जिसका तप पावन ज्ञान लिखूँ
छाँव मिली जिस आँचल में उसको सब वेद पुरान लिखूँ
गर्भ पला जिसके तन में उसको अपना भगवान लिखूँ
मात सनेह समान यहाँ कुछ और नहीं उपमान लिखूँ
2
साजन जो परदेश गए करके मकरन्द विहीन कली
अश्रु गिरें दिन रात यहाँ बरसे जस सावन की बदली
बात रही दिल में जितनी दिल ने दिल से दिल में कह ली
हाल हुआ दिल का अपने जस नीर बिना तड़पे मछली
नाथ…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on June 15, 2022 at 7:54am — 4 Comments
आओ कसम लें देश जलाया न जाएगा
अब एक दूसरे को चिढ़ाया न जाएगा।।
*
यह देश राम श्याम से विक्रम भरत से है
वन्शज इन्हीं के सारे भुलाया न जाएगा।।
*
मंगोल हूण शक या मुगल आर्य जो भी हैं
आपस में इन को और लड़ाया न जाएगा।।
*
बाबर की भूल आज भी जुम्मन गले लगा
सबको कसम है ऐसा सिखाया न जाएगा।।
*
संख्या का खेल देश में मन्जूर अब नहीं
कोई भी भेद-भाव हो गाया न जाएगा।।
*
होगी समान न्याय की जब रीत देश में
तब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 14, 2022 at 6:18pm — 2 Comments
क्यों परेशान होता है तू , जिसे जाना है वो जाएगा
हाथ जोड़ कर पैर पकड कर, तू उसको रोक ना पाएगा
वो जाता है तो जाने दे, पर याद न उसकी जाने दे
तू उसको ये अवसर ना दे, वो बाद मे तुझे बहाने दे
जिसको आँसू की क़दर नहीं, ना होने का तेरे असर नहीं
उसे रोक के क्या तू पाएगा, तेरी खातिर जो बेसबर नहीं
तू रोके तो रुक जाएगा, घड़ियाली आँसू बहाएगा
अपनी हर नाकामी…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 14, 2022 at 12:30pm — 1 Comment
तृप्ति भी मिलती नहीं औ द्वंद भी कुछ इस तरह है
सोचना क्या? छोड़ना क्या? कुछ नहीं बस में हमारे
साथ किसके क्या रहा है छोड़कर धरती गगन को
फूल जो भी आज हैं वे छोड़ देंगे कल चमन को
मौत पर होवें दुखी या जन्म पर खुशियाँ मनाएँ
हार से हम हार जाएँ या लड़े औ जीत जाएँ
ज़िन्दगी के राज़ गहरे दूर जितने चाँद तारे
सोचना क्या? छोड़ना क्या? कुछ नहीं बस में हमारे
हर पतन के बाद ही होता जगत उत्थान भी है
शांति की ही गोद में …
Added by नाथ सोनांचली on June 13, 2022 at 11:10am — 6 Comments
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