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"कील चुभी वो नहीं विलग "

"कील चुभी वो नहीं विलग "

वे कहते हैं सब भूल गये

हम कहते कुछ भी याद नहीं

कारण मैंने भी किया वही

जो उसने पिछले साल किये

अब उसके भी एक आगे है

मेरे भी पीछे बाँध दिए !!

रस्में पूर्ण समाज…

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Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 7, 2012 at 1:02am — 19 Comments

कह मुकरी: मोहपाश में नित्य फँसाये!

कह-मुकरी

(1)

पल में सारा गणित लगाये 

इन्टरनेट पर फिल्म दिखाये 

मेरे बच्चों का वह ट्यूटर.

ऐ सखि साजन? नहिं कम्प्यूटर..

(2)

बड़ों-बड़ों के होश उड़ाये

अंग लगे अति शोभा पाये

डरती जिससे दुनिया सारी

क्या वो नारी? नहीं कटारी!! 

(3)

रहे मौन पर साथ निभाये

मैडम का हर हुक्म बजाये 

नहीं आत्मा रहता बेमन 

ऐ सखि रोबट? नहिं मन मोहन!!

(4)

मोहपाश में नित्य फँसाये

सास-बहू हैं घात…

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Added by Er. Ambarish Srivastava on August 7, 2012 at 12:30am — 25 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- ३३

रात की सन्नाटगी बोलने लगी है, कानों की वीरानियाँ सुनने. कालोनी की सडकों पे तन्हाईयों के डेरे लग चुके हैं और घरों में लोग अपने अपने बिस्तर पे कटे दरख्तों की मानिंद बिछ से गए हैं. किसी किसी घर से टीवी के चलने की आवाज़ भी आ रही है, पता नहीं देखने वाला जाग भी रहा है या सो रहा है. लोग इक समूचे दिन को पीछे छोड़ आए हैं और रोज़मर्रा की तमाम कदोकाविश (भाग दौड़) जैसे उनके कपड़ों के साथ आलमीरों में टंग गई है इक रात के आराम के लिए. जूते मेज के किनारे चुपचाप पड़े हैं, उनके तस्में (फीते) लहराते अंदाज़ में…

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Added by राज़ नवादवी on August 7, 2012 at 12:28am — No Comments

दोहे : आत्मावलोकन

१. नहीं किसी से हूँ चिढ़ा, आता खुद पे रोष |

मुझमें ही सारी कमी, मुझमें सारा दोष ||

२. मैं ही पूरा आलसी, सोता हूँ दिन-रात |

नहीं ठहरती जीत तो, कौन अनोखी बात ||

३. मुझमें ही है वासना, मुझमें है आवेश |

मक्कारी की खान मैं, धर साधू का वेश ||

४. मन को कलुषित कर लिया, लाता नहीं सुधार |

हरा दिया हठ ने मुझे, कर डाला लाचार ||

५. करने थे सत्कर्म पर, किये बहुत से पाप |

इतना नीचे हूँ गिरा, सोच न सकते आप ||

६. जीत गई हैं इन्द्रियाँ, मिली मुझे है हार…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 6, 2012 at 11:08pm — 10 Comments

भाव निर्झरणी बहे /गीत

भाव निर्झरणी बहे बस है विनत यह कामना 

जब लिखे दिल से लिखे कवि,सत्य हो या कल्पना



परख सत्यासत्य की रख ,सृजन पथ गढ़ते रहें 

त्याग व्यष्टि समष्टि हित ,शब्द नद भरते रहें 

कर नवल,चिंतन,मनन शुभ ,गूंथ माला काव्य की

शारदे माँ की हृदय से कवि करो तुम अर्चना 



भाव निर्झरणी बहे बस है विनत यह कामना 

जब लिखे दिल से लिखे कवि,सत्य हो या कल्पना …



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Added by seema agrawal on August 6, 2012 at 11:00pm — 17 Comments

फितरत ए इन्सान ए अजब

आज मुझ पे हसीं इल्ज़ाम लगाया उसने,

मेरे सोते हुए बातिन को जगाया उसने।

मुझसे बोला के ये क्या रोग लगा बैठा है,

धूप निकली है अन्धेरे में छुपा बैठा है?

तुझको दुनिया की जो तकलीफ का हो अन्दाज़ा,

अपनी मायूसियों के खोल से बाहर आ जा।…

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Added by इमरान खान on August 6, 2012 at 3:33pm — 7 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
नेताजी (कुण्डलिया-2)

नेताजी (कुण्डलिया-2) 

 

बीवी टॉपर ही मिले, नेताजी की चाह,
खुद थे इंटर पास वो, पीजी से गय ब्याह,
पीजी से गय ब्याह, किया था फर्जीवाड़ा,
ज्ञानी साथी पाय विरोधी खूब पछाड़ा,
नेतानी जी सभ्य, चतुर और बुद्धिजीवी,
घर हु पढाए पाठ, मिली थी ऐसी बीवी.

Added by Dr.Prachi Singh on August 6, 2012 at 2:30pm — 15 Comments

एक ही विधान है

देने वाला दाता ही,  ताप है संताप है 
तुझे मिल रहा जो, कर्मो  का ही श्राप है 
 
मत समझ वे कमजोर, और तू बलवान है 
उनके बल पर ही बना, आज तू धनवान है …
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 6, 2012 at 12:30pm — 7 Comments

कवितायेँ कैसे बनती है...............!!

कविताये कैसे बनती है 

कुछ खबर नहीं होती 

बस ..........................

दिल की कुछ भावनाएं होती है 

जो शब्दों का रूप लेकर 

कागज पर उतर आती है

और कवितायेँ बन जाती है

कवितायेँ कैसे बनती है........................

कवितायेँ .................

कभी दर्द से जन्म लेती है

कभी गम का रूप होती है

कभी दिल की ख़ुशी की पहचान बनती है

तो कभी विरोध के लिए लिखी जाती है

कवितायेँ कैसे.....................

कवितायेँ…
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Added by Sonam Saini on August 6, 2012 at 12:00pm — 16 Comments

सावन.(कुंडलिया)

सावन   नभ  पर    छा गया,  हरियाए    सब  खेत/

हरियाली     छा   ने   लगी,  ओझल   बालू    रेत//

ओझल   बालू    रेत,     हरित    होते  सब  जंगल/

कल कल नदी का शोर, बहे झरने भी…

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Added by Ashok Kumar Raktale on August 6, 2012 at 12:00am — 9 Comments

दुःख

तृष्णा की कोख से जन्मा

वासनाओं के साये में पला

एक मनोभाव है दुःख ;

सांसारिक माया से भ्रमित

षटरिपुओं से पराजित

अंतस की करुण पुकार है दुःख ;

स्वार्थ का प्रियतम

घृणा का सहचर

भोगलिप्सा की परछाई है दुःख ;

वैमनस्य का मूल्य

भेदभाव का परिणाम

आलस्य का पारितोषिक है दुःख ;

अधर्म से सिंचित

अमानवीय कृत्यों की

एक निशानी है दुःख ;

कलुषित मन की

कुटिल चालों का

सम्मानित अतिथि है दुःख ;

निरर्थक संशय से उपजी

मानसिक स्थिति का

एक नाम…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 5, 2012 at 8:23pm — 22 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- २४

ये जो शहरेवीराँ ये बस्तीएतन्हाई है  

आदमोहव्वाकी यही दौलतेआबाई है

 

चलिए रखके अपनी रफ़्तार पे काबू

ख्यालोंका शह्र है आबादीहीआबादी है  

 

कोई रोटी चाहे फूली, या न फूली हो

तवे से आखिर उतार ही दी जाती है

 

ख्वाबोंसे लाख बनाऊं घरौंदे जीने के

सफ़र लंबाहै और मुकाम इब्तेदाई है

 

तू फ़िक्रज़दा होती है तो यूँ लगता है

एक चिड़या है, बिल्ली से घबराती है

 

नसही तू तेरे नामसे वाबस्तगी सही

तुझसे…

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Added by राज़ नवादवी on August 5, 2012 at 7:00pm — 4 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- ३२

कोई दिन यूँ ही उदास सा बारिश का, इक नीम के दरख्त सा खड़ा, बिना परिंदों का, न ही कोई फूल महकते, न ही कोई चिड़िया चहकती, बस बारिश की बूंदों को टपकाते ख्यालों से चुप, ऊँचाइयों को छूते शज़र, पानी और नमी से झुके-झुके.  

 

सुबह से बादलों के काले सायों का आँचल ओढ़ रखा है फ़ज़ा ने, घरों ने भी जैसे खामोशी की बरसाती ओढ़ रखी है, पहचाने घर भी पराए से लगते हैं. गली में कुत्ते भी भागते छुपते शायद ही नज़र आते, लोग भी कम ही दीखते हैं नुक्कड़ की दूकानों के इर्द गिर्द, गाड़ियों ने भी गोया आज…

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Added by राज़ नवादवी on August 5, 2012 at 3:30pm — 2 Comments

खून चूसना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है

जैसाकि हम सभी जानते हैं कि मच्छर खून चूसते हैं।बरसात के मौसम में गंदगी के कारण इनकी संख्या और भी बढ़ जाती है,ये हमें और भी पीड़ा पहुंचाने लगते हैं।कुछ समय पहले की बात है मच्छरों से पीड़ित कुछ उपद्रवी आन्दोलनकारी मच्छरों के खून चूसने की क्रिया पर प्रतिबंध की मांग करने लगे।वो "खून मत चूसो कानून" पारित करवाने की जिद पे अड़ गये।तत्कालीन कठमुल्ला भारत सरकार ने उन उपद्रवियों की जिद मानते हुए बिल पास कर दिया।मच्छरों के क्रिया-कलाप पर प्रतिबंध लगा दिया गया।उनकी गिरफ्तारियां होने लगी।उनसे सुरक्षा के लिए… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 5, 2012 at 2:00pm — 14 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
नेताजी (कुण्डलिया)

नेताजी (कुण्डलिया)
 

नेताजी का हो गया, कवियित्री से ब्याह,

नेतानी कविता लिखें, उनकी निकले आह,

उनकी निकले आह, सुनें जब भी वो दोहा,

लिखना विखना छोड़ पकाना सीखो पोहा,

चलो डार्लिंग किटी, रमी में जीतो बाजी,

समझाते हैं मस्त, नेतानी को नेताजी .......

Added by Dr.Prachi Singh on August 5, 2012 at 1:30pm — 28 Comments

निशब्द

खामोश हूँ

शांत सागर सी 
भीतर हलचल 
 
इक हूक 
सीने में उठती 
ज्वालामुखी सी 
 
प्यार किया 
दिल से चाहा
पर…
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Added by Rekha Joshi on August 5, 2012 at 1:24pm — 20 Comments

मित्रता दिवस को समर्पित छह दोहे

सारे रिश्ते देह के, मन का केवल यार

यारी जब से हो गई , जीवन है गुलज़ार



मन ने मन से कर लिया आजीवन अनुबन्ध

तेरी मेरी मित्रता  स्नेहसिक्त सम्बन्ध



मित्र सरीखा कौन है, इस…

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Added by Albela Khatri on August 5, 2012 at 1:00pm — 38 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
अधजल गगरी छलकत जाये प्राणप्रिये......

 

कैसे – कैसे मंजर आये प्राणप्रिये

अपने सारे हुये पराये प्राणप्रिये |



सच्चे की किस्मत में तम ही आया है

अब तो झूठा तमगे पाये प्राणप्रिये |



ज्ञान भरे घट जाने कितने दफ्न हुये

अधजल गगरी छलकत जाये प्राणप्रिये |



भूखे - प्यासे हंसों ने दम तोड़ दिया

अब कौआ ही मोती खाये प्राणप्रिये |



यहाँ राग - दीपक की बातें करता था

वहाँ राग – दरबारी गाये प्राणप्रिये |



सोने…

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Added by अरुण कुमार निगम on August 5, 2012 at 10:31am — 12 Comments

हरिगीतिका छंद एक प्रयास.

(चार चरण, १६ + १२ =२८ मात्राएं और अंत में लघु गुरु)

 

हरि जनम हो मन आस  लेकर, भीड़ भई  अपार  है/

हरि भजन गुंजत चहुँ दिसी अरु,भजत सब नर नार हैं//

झांझ बाजै है झन झनक झन , ढोल की  ठपकार  है/

मुरली बाजत  मधुर  शंख  ही,  गुंजाय   दरबार …

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Added by Ashok Kumar Raktale on August 4, 2012 at 10:30pm — 11 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
कुछ कह मुकरियाँ

1.

उस बिन दुनिया ही धुंधलाए 

नयना दुख-दुख नीर बहाए,

है सौगात, नायाब करिश्मा,

ऐ सखि  साजन ? न सखी चश्मा l



2.

नज़र नज़र में ही बतियाए,

देख उसे मन खिल खिल जाए,

सुबह शाम उसको ही अर्पण,

ऐ सखि साजन? न सखी दर्पण l



3.

साथ बिताएँ रैन दोपहरी ,

बातें करता मीठी…
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Added by Dr.Prachi Singh on August 4, 2012 at 6:30pm — 33 Comments

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