नेताजी का हो गया, कवियित्री से ब्याह,
नेतानी कविता लिखें, उनकी निकले आह,
उनकी निकले आह, सुनें जब भी वो दोहा,
लिखना विखना छोड़ पकाना सीखो पोहा,
चलो डार्लिंग किटी, रमी में जीतो बाजी,
समझाते हैं मस्त, नेतानी को नेताजी .......
Comment
आदरणीय सौरभ सर, इस प्रकार की रचना पहली बार लिखने का प्रयास किया है, यदि यह हास्य का पुट वास्तव में अच्छा है, तो मै आगे भी इस पर प्रयास ज़रूर करुँगी. इस शैली में रचना लिख मैं रचना के प्रति बहुत आश्वस्त नहीं थी. पर आप सबके अनुमोदन से प्रतीत हो रहा है, कि इस प्रकार सहज रूप से लिखना भी स्वयं में एक समृद्ध शैली है. आपके बेशकीमती सतत प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार. सादर.
एक प्रश्न आदरणीय अम्बरीषभाईजी से -
सनातनी छंदों में मात्राएँ गिरायी जाती हैं ?
डॉ. प्राची, आपकी इस हास्य कुण्डलिया पर मेरी दृष्टि अभी पड़ी है इस हेतु मैं क्षमा चाहता हूँ. आपका छंद-प्रयास अभिभूत तो करता ही है, अपने विभिन्न आयामों से आश्वस्त तथा संतुष्ट भी करता है. यह खूबी विरले कोई रचनाकार जी पाता है. आपकी नम्र साहित्य-साधना इस मंच के साहित्य प्रेमियों के लिये सकारात्मक परिवर्द्धन है.
सादर
सादर
वाह प्राची जी वाह बहुत खूब क्या बात है बधाई स्वीकारें
सुप्रभात डॉ० प्राची जी ! आपका हार्दिक स्वागत है !
इस हास्य रचना को सराह उत्साह वर्धन करने के लिए व रोला के अंत पदों में वांछित सुधार करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय अम्बरीश जी. सादर
आपका आभार आशीष यादव जी
यह कुण्डलिया आपको रुचिकर लगी, यह जान कर बहुत अच्छा लगा आ. राजेश कुमारी जी, आपका हार्दिक आभार.
धन्यवाद आ. अविनाश बागडे जी
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