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हर दुःख मुझे देता है प्रेरणा

हर दुःख मुझे देता है प्रेरणा

संघर्ष को और बढाने की |

हर हार मुझे देती है आशा

जय को करीब लाने की |

 

बिखर जाये जब मन मेरा

मैं उसके मोती चुन लेता हूँ |

निराशा के हर अंगारे को

मैं अमृत समझ के सहता हूँ |

 

ये निराशा मेरे प्रेम की भाषा

जल्दी ही बन जाने की |

हर दुःख मुझे देता है प्रेरणा.....

 

पतझर में जो झर गये पत्ते

आने पे सावन खिल जायेंगे |

मनुष्य यदि प्रयास करे तो

बिछड़े क्षण…

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Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on November 25, 2012 at 11:14pm — 4 Comments

जाने कब क्या हो जाये

इस ज़िंदगी के किस पल में

जाने कब क्या हो जाये |

मिल कर सारे जहाँ की ख़ुशी,

ज़िंदगी ही खो जाये |

 

खुशियों के दर्पण के पीछे,

हम दीवाने हो जाते हैं |

दीवानगी में ये ना सोचे,

अक्स ही हमें सुहाते हैं |

सुख के हर इक अक्षर को, दुःख जाने कब धो जाये |

 

सुख तो इक आज़ाद पंछी,

पिंजरे में न रह पायेगा |

दिल का सूना पिंजरा भरने,

दुःख ही फिर से आ जाएगा |

जाने कब गम का आंसू, दामन को भिगो जाये…

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Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on November 25, 2012 at 11:00pm — 6 Comments

मोहब्बत,,,

हमेशा हमेशा के लिए वो चली गई है दूर मुझसे

जाते जाते बोली मुझे मोहब्बत नहीं है तुझसे



लेकिन फिर भी अश्क थे उसकी नजरों में

वह कह तो गई नहीं है मोहब्बत मुझसे



आज भी सोचता हूँ मैं उसके कहे उस बात को

पागल…

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Added by Neelkamal Vaishnaw on November 25, 2012 at 8:00pm — No Comments

कार्तिक मास महत्त्व

देव उठे अरु लग्न हुए, सखि कार्तिक पावन मास यहाँ,

मत्स्य बने अवतार लिये,प्रभु कार्तिक पूनम सांझ जहाँ,

पद्म पुराण बताय लिखें, महिना इसको हि  पवित्र सदा,

मोक्ष मनुष्य प्रदाय करे,सखि कार्तिक स्नान व दान सदा/…

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Added by Ashok Kumar Raktale on November 25, 2012 at 7:45pm — 3 Comments

पत्नी का खतरनाक बाउंसर (हास्य व्यंग

सचिन तेंदुलकर बोंले -

पत्नी का गुस्सा तेज है

पत्नी के आगे निस्तेज है

हमने कहाँ पत्नी के आगे

सभी पति निस्तेज है

वे बोंले -

बाँल से भी खतरनाक है

बेलन बाँल से क्या कम

खरतनाक है ?

बाँल तो दूर से आती है

बेलन तो हाथ में रखती है ।

पत्नी के बाउंसर से -

हर पति डरता है,

कमाई ला झट से -

हाथ में धर देता है ।

फिर जरुरत पड़ने पर

हाथ फैलाना पड़ता है ।

यह कोई नयी बात नहीं है

हर युग में होता आया है

कृष्ण ने राधिका… Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 25, 2012 at 5:57pm — 6 Comments

जिंदगी की हैसियत मौत की दासी की है .

   

बात न ये दिल्लगी की ,न खलिश की है ,

जिंदगी की हैसियत मौत की दासी की है .

 

न कुछ लेकर आये हम ,न कुछ लेकर जायेंगें ,

फिर भी जमा खर्च में देह ज़ाया  की है .…

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Added by shalini kaushik on November 25, 2012 at 3:57pm — 8 Comments

ग़ज़ल - अब हो रहे हैं देश में बदलाव व्यापक देखिये

एक पुरानी ग़ज़ल....

शायद २००९ के अंत में या २०१० की शुरुआत में कही थी मगर ३ साल से मंज़रे आम पर आने से रह गयी...

इसको मित्रों से साझा न करने का कारण मैं खुद नहीं जान सका खैर ...

पेश -ए- खिदमत है गौर फरमाएं ............





अब हो रहे हैं देश में बदलाव व्यापक देखिये


शीशे के घर में लग रहे लोहे के फाटक देखिये…



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Added by वीनस केसरी on November 25, 2012 at 2:59pm — 31 Comments

शांति

शांति 
------
पक्षियों का कलरव 

जल प्रपात 

समुद्र की गोद में 
क्रीड़ारत लहरें 
धुआं उगलते कारखाने 
फर्राटा  भरती  गाड़ियाँ 
शोर हर तरफ 
घुटता दम 
इसके बीच हम 
नहीं सुनायी देती 
नही दिखती 
अबला की चीत्कार 
भूखे नंगे सिसकते बच्चे 
नफरत की चिंगारी 
झुलसते…
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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 25, 2012 at 2:36pm — 10 Comments

चलो,वॉट करें।

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Added by MARKAND DAVE. on November 25, 2012 at 11:27am — 3 Comments

मदिरा सवैया

भारत के हम शेर किये नख के बल रक्षित कानन को।
छोड़त हैं कभि नाहिं उसे चढ़ आवहिं आँख दिखावन को।
भागत हैं रिपु पीठ दिखा पहिले निजप्राण बचावन को।
घूमत हैं फिर माँगन खातिर कालिख माथ लगावन को॥

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 25, 2012 at 10:20am — 13 Comments

परिवार की इज्ज़त -लघु कथा

'स्नेहा....स्नेहा ....' भैय्या  की कड़क आवाज़ सुन स्नेहा रसोई से सीधे उनके कमरे में पहुंची .स्नेहा से चार साल बड़े आदित्य  की आँखें  छत  पर घूमते पंखें पर थी और हाथ में एक चिट्ठी थी .स्नेहा के वहां पहुँचते ही आदित्य ने घूरते हुए कहा -''ये क्या है ?' स्नेहा समझ गयी मयंक की चिट्ठी भैय्या के हाथ लग गयी है .स्नेहा ज़मीन की ओर देखते हुए बोली -'भैय्या मयंक बहुत अच्छा ....'' वाक्य पूरा कर भी न पायी थी  कि   आदित्य ने  जोरदार तमाचा उसके गाल पर जड़ दिया और स्नेहा चीख पड़ी ''…

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Added by shikha kaushik on November 24, 2012 at 10:30pm — 7 Comments

हिन्दी भाषा-1

जिनकी मातृ भाषा हिन्दी है वे हिन्दी का कितना प्रयोग करते हैं। यह सोचनीय है लेकिन एक अच्छी बात यह है हिन्दी बोलने वालों की,, कि वे दूसरी भाषाओं को आसानी से प्रयोग करने का प्रयास करते हैं और यही कारण है कि हिन्दी का प्रयोग भी बढता जा रहा है। यह सत्य उस तरह से है जैसे कोई दूसरे से अच्छा व्यवहार करता है तो सामने वाला भी उससे उतना ही अच्छा व्यवहार करता है।



उदहारण…
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Added by सूबे सिंह सुजान on November 24, 2012 at 10:10pm — 2 Comments

छोटी छोटी खुशी कहीं गम ना दे जाये ।

छोटी छोटी खुशी कहीं गम ना दे जाये ।
पटाखों के ढेर में कोई बम ना दे जाये ।

कैसे यकीन करें जब यकीन नहीं होता,
झोली में रकम कभी कम ना दे जाये ।

कड़कती धूप में छाँव प्यारा लगता है ,
दरखत की शाख कहीं धम ना दे जाये ।

नम आखों देखते हैं जलता आशियाना,
दूसरों की आह बेबस रहम ना दे जाये ।

गिरते गिरते बचते ठोकर लगने के बाद ,
वर्मा संभलते कहीं निकला दम ना दे जाये ।

.
श्याम नारायण वर्मा

Added by Shyam Narain Verma on November 24, 2012 at 12:30pm — 3 Comments

बदल गयी तरकीब

काकी आई शहर से, सुनो शहर का हाल,

फ़ार्म हाउस बन रहे, धनवानों की चाल ।



धनवानों की चाल है, खेती का क्या काम

बचजाये बस आयकर,ये ही उनका काम ।



फार्म हाउस में हो रहे, कैसे कैसे काम,

नेता बने किसान है, छलक रहे है जाम ।



किसान खेतहीन हुए, जमींदार सब नाथ,

बँट में खेत जोत रहे, घरवाली के साथ ।



घरवाली को साथ ले, खेतो में जुट जाय,

दुपहरी की रोटी भी, छाँव तले ही खाय ।



जनता के इस राज में, बदल गयी तरकीब,

नेता सब मालिक बने, देखा… Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 24, 2012 at 10:00am — 13 Comments

गीत: हर सड़क के किनारे --संजीव 'सलिल'

गीत:

हर सड़क के किनारे

संजीव 'सलिल'

*

हर सड़क के किनारे हैं उखड़े हुए,

धूसरित धूल में, अश्रु लिथड़े हुए.....

*

कुछ जवां, कुछ हसीं, हँस मटकते हुए,

नाज़नीनों के नखरे लचकते हुए।

कहकहे गूँजते, पीर-दुःख भूलते-

दिलफरेबी लटें, पग थिरकते हुए।।



बेतहाशा खुशी, मुक्त मति चंचला,

गति नियंत्रित नहीं, दिग्भ्रमित मनचला।

कीमती थे वसन किन्तु चिथड़े हुए-

हर सड़क के किनारे हैं उखड़े हुए,

धूसरित धूल में, अश्रु लिथड़े हुए.....

*

चाह की रैलियाँ,…

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Added by sanjiv verma 'salil' on November 24, 2012 at 8:16am — 9 Comments

चुगली

चुगली





कमजोरी की निशानी है,

कामचोरी की पहचान है,

कटुता,द्वेष छिपे हैं इसमें,

स्वार्थ की बहन है चुगली ।



अपने दोषों को छिपाकर,

बनावटीपन व्यवहार लाकर,

दूसरों को नीचा दिखाने का,

एक तरीका है, चुगली ।



बिना मेहनत फल की इच्छा का,

दूसरों की मेहनत का फल खाने का,

कायरता के साथ वीरता दिखाने का,

एक डरपोक का साहसी गुण है चुगली ।



विश्वासघात का प्रतीक है चुगली,

अतिमहत्वाकांक्षा का रूप है चुगली,

झूठा वफ़ादार बनने के…

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Added by akhilesh mishra on November 24, 2012 at 6:00am — 4 Comments

मत्तगयन्द सवैया

वो नर नाहिं रहे डरते डरते सबसे नित आप हि हारे।
पामर भाँति चले चरता पशु भी अपमान सदा कर डारे।
मानव जो जिए गौरव से अपनी करनी करते हुए सारे।
जीवन हैं कहते जिसको बसता हिय में निजमान किनारे॥

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 23, 2012 at 9:34pm — 6 Comments

कसाब की फाँसी

कसाब की फाँसी  

पूरा देश खुशी मनाया,

कसाब की फाँसी पर,

ऐसा लगा मानो कोई बड़ा काम हुआ,

अधर्म पर धर्म की जीत हुयी,

किसी कमजोर ने बहादुरी का काम किया,

कंजूस ने महँगा आयोजन किया ।

 

खुशी की यह बात नहीं,शहीदों को याद करो,

यह बहुत पहले होना था,

खुशी तो तब मनाना,

जब अफ़ज़ल ,सईद फाँसी पर लटके,

हिंदुस्तान ताकत…

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Added by akhilesh mishra on November 23, 2012 at 3:00pm — 8 Comments

वीरेंद्र सहवाग को 100 टेस्ट क्लब में शामिल होने पर बधाई - विधाता (शुद्धगा) छंद पर आधारित

महाराजा, जहाँ चाहे, वहाँ आज्ञा, चलाता है।

खिलाड़ी है, बड़ा वीरू, सदा बल्ला, बताता है।

कभी चौका, कभी छक्का, लगा सौ ये, बनाता है।

मिला मौका, कि गेंदों से, करामातें, दिखाता है॥

किसी के भी, इलाके में, सिंहों जैसा, सही वीरू।

सभी ताले, किले सारे, गिरा देता, यही वीरू।

बिना देरी, विरोधी को, पछाड़े जो, वही वीरू।

डरे-भागे, कभी कोई,…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 23, 2012 at 2:30pm — 10 Comments

मुकरियां (एक प्रयास)

वह अरूप सबके मन भाए
सुध-बुध सबके वह बिसराए
चारू चरण पावन सुखधाम…
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Added by राजेश 'मृदु' on November 23, 2012 at 1:30pm — 12 Comments

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