For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,987)

पन्ने जिंदगी के!

पन्ने जिंदगी के!

पलट रहा था मैं यूँही बैठा बैठा ये पन्ने जिंदगी के

कुछ लम्हे ख़ुशी के कुछ नगमे दर्द-ए-गम के

कोई मीठी पुकार, तो कहीं से आरही थी फटकार

कहीं बहा मेरा खून पसीना,तो कहीं बेफिक्री का सोना

बचपन की यादों का मेला ,मेले में एक मदारी

डम-डम डमरू की हुंकार

फिर माँ का प्यार भरा पुचकार

मेरे किशोरोपन में भी कई तस्वीरे बन रही थी

किसी लड़की पे मर जाना,

फिर उससे लड़ना झगड़ना,और मनाना

फिर आ पंहुचा आज में,

एक सड़े हुए कूड़ेदान में,

घर… Continue

Added by Biresh kumar on July 20, 2010 at 9:00pm — 4 Comments

गोटी चम किसकी यानि दसों उँगलियाँ घी मे किसकी

सादर नमस्कार,



ये लेख मैंने मुंबई आतंकी हमले के तुरंत बाद लिखी थी। चाहता हूँ कि इ लेख के माध्यम से अपने विचार आप लोगों के साथ भी बाँटूँ। आप भी अपने विचारों से हमें अवगत कराने की कृपा करें। सादर धन्यवाद।।



बाबूजी मुंबई से आए हैं और बहुत उदास हैं। कह रहे हैं कि छोटा-मोटा काम अपने गाँव-जवार में ही मिल जाएगा तो करूँगा पर अब मुंबई नहीं जाऊँगा। अब वहाँ के जीवन का कोई भरोसा नहीं है, कब क्या हो जाएगा कोई नहीं जानता। अब तो पूरे भारत में आतंकवाद ने अपना पैर पसार लिया है। इन सब… Continue

Added by Prabhakar Pandey on July 20, 2010 at 11:08am — 3 Comments

जीने की चाह

आज मेरे दिल को बहुत बड़ा सदमा लगा है, मुझे एक पल को लग रहा है की मेरी ज़िंदगी अब किसी काम की नही है मगर दूसरे ही पल अनेक तरह के सवाल मन मे उठने लगते हैं, आज मुझे एक बात का अहसास हो गया की अगर आपकी पहुँच नही है उपर तक तो आप बिल्कुल शुन्य हैं,इस धरती पर आपकी सुनने वाला कोई नही है ,आज मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ है,एकबारगी तो मन आत्महत्या तक सोचने लगा था मगर मैने उसे समझाया,की नही ऐसा मत कर , ये काम तो कयरों का है, मगर ये दिल उस वाक्य को सुनकर एक अजीब सी उलझन मे है,समझ मे नही आ रहा है की क्या करूँ क्या… Continue

Added by ABHISHEK TIWARI on July 19, 2010 at 8:05pm — 2 Comments

आशा एक चिड़िया है

आशा .....
एक बीज है
जो रोपा जाता है
मन -मस्तिष्क की उर्वर भूमि में
और यह बीज
अंकुर कर वृक्ष बनता है
जब इसे मिलती है गर्माहट
समाज और स्वं के रिश्ते की ॥
आओ !!!
हम सब इस बीज को
मेहनत की नीर से सींचे ॥


आशा .......
एक चिड़िया है
जो उड़ती है
व्यक्ति के मन -मस्तिष्क के आकाश में ॥
आओ !!!
आशा नाम की इस चिड़िया को
मेहनत का मजबूत पंख लगायें ॥

Added by baban pandey on July 19, 2010 at 6:37am — 1 Comment

एक मजदूर की भूख

उसके भी

दो आँख /दो कान /एक नाक है

थोड़े अलग है तो उसके हाथ ॥

मेरा हाथ उठाता है कलम

मगर

उसके हाथ उठाते है कुदाल

और इसी कुदाल से

लिख लेता है वह

अनजाने में ही

देश प्रेम की गाथा ॥



मेरी माँ कहती है

भूख लगे तो खा लो

नहीं तो भूख मर जाती है ॥





जब भारत बंद/ बिहार बंद होता है

उसकी भूख मर जाती है

कई बार /बार -बार ॥



ओ ...बंद कराने वाले नेताओ

आर्थिक नाकेबंदी करने वाले नक्सलवादियों

क्या आपकी भी… Continue

Added by baban pandey on July 18, 2010 at 6:18pm — 5 Comments

हम नहीं सुधरेगे

वर्षा में नाले जाम है

नगर निगम वाले आते ही होंगें

दोषी , और मैं

क्या कह रहे है आप ?



मैंने क्या किया भाई

बस

घर के थोड़े से कचड़े

पोलीथिन में बाँध कर

नाले में इसलिए डाल दी

क्योकि ......

कचड़े का कंटेनर

मेरे घर से मात्र २०० फिट दूर है ॥



मैं अफसर हो कर

२०० फिट दूर क्यों जाऊ

नाक कट जायेगी मेरी

महल्ले वाले क्या कहेगे ॥





उधर , राजघाट पर

एक विदेशी सज्जन ने

लाइटर से सिगरेट जलाई

और राख एक… Continue

Added by baban pandey on July 17, 2010 at 10:00pm — 4 Comments


मुख्य प्रबंधक
मैं घबरा जाता हूँ...

मैं घबरा जाता हूँ यह सोच सोच कर ,
कैसे कोई गरीब अपना घर चलाता होगा,

सौ लाता है मजदूर पूरे दिन मर कर,
कैसे भर पेट दाल रोटी खा पाता होगा,

बीमार मर जायेगा दवा का दाम सुनकर,
हे! ईश्वर कैसे वो ईलाज कराता होगा,

मुर्दा डर जायेगा लकड़ी की दर सुनकर,
कैसे कोई मजलूम शव जलाता होगा ,

लगी है आग गंगा में महंगाई की "बागी",
कैसे कोई अधनंगा डुबकी लगाता होगा ,

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 17, 2010 at 3:00pm — 16 Comments

प्यार में डूबने के बाद

कुर्क हो जाती है आत्मा मेरी तुम्हारी मुस्कान से हर बार

सुर्ख मधुर अधरों से गूंजा सा मेरा नाम जब पुकारती हो तुम



स्वेक्षा से अपने आप को को मरता हुआ सा देख सकता हु

मार डालो मुझे मृत्यु तुम्हारे अधरों पे लटका देख सकता हु



नित तुम्हारा नाम लेता हु चेहरा मस्तिस्क में लिए फिरता हु

हम तुम शब्दों के पुष्प उछाल रहे हैं दिल का स्पंदन जब्त सा है



मुक्त करो तुम्हारी यादो के भरोसे से संजोकर मुझे आज

तुम में पूरा डूबा मैं अब किनारे पर सूखने की कोशिश में… Continue

Added by Anand Vats on July 17, 2010 at 2:30pm — 6 Comments

नज़रिया

एक कवि ने
अपनी कवितायें
पत्रिका में
प्रकाशित करने को भेजी ॥

संपादक महोदय ने
कचड़ा कह लौटा दिया ॥
पुनः दूसरी पत्रिका में भेजी
सहर्ष स्वीकृत की गयी
और प्रकाशित हुई ॥


इधर रिश्ते बनाने के क्रम में
माँ ने
लड़की को नापसंद कर दी ॥
पुनः उसी लड़की को
दुसरे लड़के की माँ ने देखा
फूलों की मलिका की संज्ञा से नवाजा ॥

सच
हर चीज में दो चेहरा नहीं होता
बल्कि हम
अपने -अपने तरीके से देखते है ॥

Added by baban pandey on July 17, 2010 at 7:26am — 3 Comments

वाह , क्या कहने !!!

बैंक अधिकारी है मेरे मित्र
कृषि ऋण देने में कहते है
बैंक का फायदा कम हो जाएगा ॥
मगर ...
किसानों से पूछते है
भिन्डी २५ रूपये किलो क्यों ?


महिला आयोग की सदस्यों ने
मंच पर
दहेज़ प्रथा के खिलाफ खूब बोली ॥
पर जब
रिश्तों की बात चली
भरपूर मांग कर दीं ॥
याद दिलाने पर कहा
मंच की बात मंच पर ही ॥

Added by baban pandey on July 16, 2010 at 9:11pm — 3 Comments

क्या बिच्छु डंक मारना छोड़ सकता है ??

मुंबई पर
आतंकवादी हमलों (२६/११) के बाद
रेलवे स्टेशनों पर
लगाए गए थे
मेटल डिटेक्टर ॥
अब
हटा दिए गए ॥
पूछने पर अधिकारी ने बताया
पकिस्तान से
हमारे रिश्ते सुधर गए है ॥



मैं सोच रहा था
क्या सचमुच
एक बिच्छू
डंक मारना छोड़ सकता है ?

Added by baban pandey on July 16, 2010 at 9:09pm — 3 Comments


प्रधान संपादक
ग़ज़ल - 5 (योगराज प्रभाकर)

उसका हर गीत ही अखबार हुआ जाता है,
क्यों ये फनकार पत्रकार हुआ जाता है !

जबसे आशार का मौजू बना लिया सच को,
बेवजन शेअर भी शाहकार हुआ जाता है !

अपने बच्चों को जो बाँट के खाते देखा ,
दौर ग़ुरबत का भी त्यौहार हुआ जाता है !

बेल बेख़ौफ़ हो गले से क्या लगी उसके
बूढा पीपल तो शर्मसार हुआ जाता है !

हरेक दीवार फासलों की गिरा दी जब से
सारा संसार भी परिवार हुआ जाता है !

Added by योगराज प्रभाकर on July 16, 2010 at 9:00pm — 5 Comments

कमर तोड़ दी ये बेदर्द महंगाई ,

कमर तोड़ दी ये बेदर्द महंगाई ,
जीने नहीं देती हैं बेशर्म महंगाई ,
गेहू जो आज कल राशन में आता हैं ,
तीन दिन तक भोजन चल पाता हैं ,
सत्ताईस की हर दम रहती है जोहाई,
कमर तोड़ दी ये बेदर्द महंगाई ,
चीनी के दाम बढे आलू रुलाता हैं ,
चावल लेने में आसू आ जाता हैं ,
नौकरी नहीं हैं करता खेती बारी ,
बारिश ना होती हैं जाती जान हमारी ,
बचालो जीवन मेरा सरकार दुहाई ,
कमर तोड़ दी ये बेदर्द महंगाई ,

Added by Rash Bihari Ravi on July 16, 2010 at 5:30pm — 1 Comment

जिंदगी

जिंदगी फ़िर हमें उस मोड़ पे क्यों ले आई । याद आई वो घड़ी आँख मेरी भर आई ।

जिंदगी तेरे हर फ़साने को , मैंने कोशिश किया भुलाने को ।

मेरी आंखों से खून के आंसू , कब से बेताब हैं गिर जाने को ।

मेरे माजी को मेरे सामने क्यों ले आई । याद आई वो घड़ी आँख मेरी भर आई ।

मैंने बस मुठ्ठी भर खुशी मांगी , प्यार की थोड़ी सी ज़मीं मांगी ।

अपनी तन्हाइयों से घबड़ाकर , अपनेपन की कुछ नमीं मांगी ।

क्या मिला- क्या ना मिला फ़िर वो बात याद आई । याद आई वो आँख मेरी भर आई ।

जिंदगी मैंने तेरा रूप… Continue

Added by satish mapatpuri on July 16, 2010 at 3:58pm — 6 Comments

भारतवर्ष या इंडिया

उत्तर मे हिमालय से प्रारंभ हो कर दक्षिण मे जहाँ सागर की उत्ताल तरंगे इस अप्रतिम राष्ट्र के पैर पाखार रहीं है, और कराची से कंबोडिया तक जहाँ अपनी भारत मा अपनी बाहें फैलाए अपने पुत्रों के हर दुख को आत्मसात करती खड़ी दिखती है,संपूर्ण आर्यावर्त को अपने वात्सल्य के मजबूत.डोरी मे बांधती दिखती है वह सारी की सारी सांसकृतिक भूमि हिंदुस्तान है.इससे कोई अंतर नही पड़ता कि आप उसे हिंदुस्तान कहते है या भारत या फिर इंडिया.

राज्य अनेक हो सकते हैं... राजनीतिक सत्ताएँ भी अनेक हो सकती हैं...किन्तु सांस्कृतिक… Continue

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on July 16, 2010 at 6:00am — 1 Comment

किस पे करू भरोसा मन ये मेरा पूछे ,

किस पे करू भरोसा मन ये मेरा पूछे ,

जिसको भी दिल से चाह वो मुझसे रूठे ,

मैंने तो जिन्दगी में सबकुछ उनको माना ,

कब हुए पराये ये दिल जान ना पाया ,

जिनके लिए ये जीवन ओ बोलते हैं झूठे ,

किस पे करू भरोसा मन ये मेरा पूछे ,



उनको बसाया दिल में देवी बना के पूजा ,

केसे बताऊ क्या हुआ की उनके संग दूजा ,

हस हस के बात करे ओ जैसे ना देखे हो ,

जलता हुआ देख हसे औरो से पूछे ओ ,

हैं अभी ओ यहा या की दुनिया अब छूटे ,

किस पे करू भरोसा मन ये मेरा पूछे… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on July 15, 2010 at 6:13pm — 1 Comment

सत्य दिखता नही ,

सत्य दिखता नही ,

या सच्चाई से परहेज हैं ,

सच्चाई स्वीकारते नहीं ,

इसी बात का खेद हैं ,

सच्चाई न स्वीकारना ,

कितना महंगा पड़ता है ,

आप ही देखिये ,

महाभारत गवाह हैं ,

रामायण ही लीजिये ,

रावण की लंका जली ,

सत्य दिखा तुलसी को ,

तो तुलसी दास बने ,

सत्य दिखा बाल्मीकि को ,

तो उत्तम प्रकाश बने ,

सत्य दिखा अर्जुन को ,

कितनो का कल्याण किये ,

सत्य दिखा सिद्धार्थ को ,

तो गौतम महान बने ,

सत्य दिखा हरिश्चंद्र को… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on July 15, 2010 at 3:00pm — 1 Comment

दिनचर्या

मैं नदियो पर बाँध बनाकर

और नहरें खोदकर ,

पानी किसानों के खेतों तक पहुचाता हू ॥

मैं सिंचाई विभाग में काम करता हू ॥





किसान कहते है

सर , जब फसलों में बालियां आती है

मेरे चेहरे में खुशियाली आती है ॥



पत्नी कहती है

जब किचन में लौकी काट देते हो

तुम अच्छे और सच्चे लगने लगते हो ॥







जब एक खिलाडी कम होता है

बच्चे कहते है ...

अंकल , बोल्लिंग कर दो न

कर देता हू ...

फिर कहते है ..थैंक अन्कल ॥



मैं… Continue

Added by baban pandey on July 14, 2010 at 6:37am — 1 Comment

मेरी कविता को लिफ्ट करो

हे ! प्रभु !!

महंगाई की तरह

मेरी कविता को लिफ्ट करो ॥

सब मेरे प्रशंसक बन जाए

ऐसा कुछ गिफ्ट करो ॥





जब भारतीय नेता न माने

जनता -जनार्दन की बात

डंके की चोट पर

वोटिंग मशीन पर हीट करो ॥

मेरी कविता को लिफ्ट करो





जब न पटे , हमारी - तुम्हारी

और काम न बने न्यारी -न्यारी

मत देखो इधर - उधर

दूसरी पार्टी में शिफ्ट करो ॥

मेरी कविता को लिफ्ट करो ॥





जब कानून की जड़े हिल जायें

और न्याय व्यवस्था सिल… Continue

Added by baban pandey on July 13, 2010 at 10:50pm — 2 Comments

सिंध में हिन्दुओ पर हो रहा है हमला ,

सिंध में हिन्दुओ पर हो रहा है हमला ,

पर हम क्यों बोले ये उनके घर का है मामला ,

मगर मानवता के नाते हमारी सरकार को ,

साथ में हिंद के नहीं बिस्व के मानवा अधिकार को ,

आना चाहिए था इनके तरफ से जुमला ,

सिंध में हिन्दुओ पर हो रहा है हमला ,

हमारे नेता कुछ नहीं बोलेंगे ,

उन्हें भोट का चिंता है ,

ये क्यों पूछे ओ मर गया या जिन्दा है ,

पानी पिने पर इतना बिबाद हो रहा है ,

लाखो लोग हिंद में आने के लिए रो रहा हैं ,

पर ये तो बन रहा है ,

बीजा और पासपोट… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on July 13, 2010 at 6:46pm — 1 Comment

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Samar kabeer commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो
"जनाब नीलेश 'नूर' जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई, बधाई स्वीकार करें । 'भला राह मुक्ति की…"
6 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा पाण्डे जी, सार छंद आधारित सुंदर और चित्रोक्त गीत हेतु हार्दिक बधाई। आयोजन में आपकी…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी,छन्नपकैया छंद वस्तुतः सार छंद का ही एक स्वरूप है और इसमे चित्रोक्त…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी, मेरी सारछंद प्रस्तुति आपको सार्थक, उद्देश्यपरक लगी, हृदय से आपका…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा पाण्डे जी, आपको मेरी प्रस्तुति पसन्द आई, आपका हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी उत्साहवर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार। "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुरूप उत्तम छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय प्रतिभा पांडे जी, निज जीवन की घटना जोड़ अति सुंदर सृजन के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण जी, सार छंद में छन्न पकैया का प्रयोग बहुत पहले अति लोकप्रिय था और सार छंद की…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service