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एक कवि ने
अपनी कवितायें
पत्रिका में
प्रकाशित करने को भेजी ॥

संपादक महोदय ने
कचड़ा कह लौटा दिया ॥
पुनः दूसरी पत्रिका में भेजी
सहर्ष स्वीकृत की गयी
और प्रकाशित हुई ॥


इधर रिश्ते बनाने के क्रम में
माँ ने
लड़की को नापसंद कर दी ॥
पुनः उसी लड़की को
दुसरे लड़के की माँ ने देखा
फूलों की मलिका की संज्ञा से नवाजा ॥

सच
हर चीज में दो चेहरा नहीं होता
बल्कि हम
अपने -अपने तरीके से देखते है ॥

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Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on July 25, 2010 at 10:38am
बिल्कुल सही बात है बबन भैया....हर चीज़ मे दो चेहरा नही होता बल्कि व्यक्ति के देखने का नज़रिया अलग अलग होता है...बाकी मैं गणेश भैया और राणा भाई के बात से भी पूरी तरह से सहमत हू...मैं जो आगे लिखना चाहता था वो इनलोगो ने पहले ही लिख दिया है.....

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on July 18, 2010 at 1:43pm
बिल्कुल सही बात...हर व्यक्ति का नजरिया भिन्न होता है....आवश्यकता है कि हम समयानुरूप अपने नज़रिए में परिवर्तन लाते रहे..ताकि हम परिवेश को बेहतर तरीके से समझ सके.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 17, 2010 at 2:48pm
सत्य बचन बब्बन भाई , बिलकुल ठीक कहा आपने लोगो का देखने का नजरिया अलग अलग होता है, कोई आधी भरी गिलास देखता है तो कोई आधी खाली गिलास देखता है, सब नजर का ही खेल है, बहुत ही सुंदर काव्य रचना , बधाई,

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