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Biresh kumar
  • Male
  • ramgarh,jharkhand
  • India
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City State
hassan,karnataka
Native Place
ramgarh,jharkhand
Profession
govt employee
About me
nothing to say come and know me............

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Biresh kumar's Blog

पन्ने जिंदगी के!

पन्ने जिंदगी के!

पलट रहा था मैं यूँही बैठा बैठा ये पन्ने जिंदगी के

कुछ लम्हे ख़ुशी के कुछ नगमे दर्द-ए-गम के

कोई मीठी पुकार, तो कहीं से आरही थी फटकार

कहीं बहा मेरा खून पसीना,तो कहीं बेफिक्री का सोना

बचपन की यादों का मेला ,मेले में एक मदारी

डम-डम डमरू की हुंकार

फिर माँ का प्यार भरा पुचकार

मेरे किशोरोपन में भी कई तस्वीरे बन रही थी

किसी लड़की पे मर जाना,

फिर उससे लड़ना झगड़ना,और मनाना

फिर आ पंहुचा आज में,

एक सड़े हुए कूड़ेदान में,

घर… Continue

Posted on July 20, 2010 at 9:00pm — 4 Comments

तेरे इंतज़ार का.......

एक और साल ख़त्म हुआ तेरे इंतज़ार का...

एक और जाम ख़त्म हुआ हिज़रे -ऐ-यार का

कई रिंद मर गए पीते-पीते,

साकी बता दे पता अब तू मेरे यार का

गिन-गिन के प्याला तोड़ता हूँ,

मै तेरे मैखाने में हर रोज़

कभी तो ख़त्म हो ये पैमाना तेरे इंतज़ार का



तुझे तो कातिल भी नहीं कह सकता

क्यूँ जिन्दा छोड़ दिया मुझे तड़पने को

सारे ज़माने से तनहा होगया

क्यूँ इतना तुझे प्यार किया

मुझे कहीं पागल न समझ बैठे जमाना

इसलिए थाम लिया लबो पे तेरे फ़साने को

अब… Continue

Posted on May 30, 2010 at 7:30am — 8 Comments

मंजूर न था .........!

जिंदगी को कुछ यूँ गुज़ारना हमें मंजूर न था

हरने को हम तैयार थे पर जीतना उन्हें मंजूर न था

अजी करते भी तो क्या करते,

की आना उन्हें मंजूर न था इंतज़ार करना हमें मंजूर न था

बस जीते चले गए इसी तरह कुछ क्यूंकि

रोना हमें मंजूर न था,और हसना उन्हें मंजूर न था

हम तो कबसे बैठे ही थे उनका दामन थामने

पर क्या करे की हमारा साथ उन्हें मंजूर न था

मिलने की तो भरपूर छह थी,पर फिर वही किस्मत अपनी

की गिरना हमें मंजूर न था और उठाना उन्हें मंजूर न था

राहे तो हर पल मै… Continue

Posted on May 28, 2010 at 12:51am — 9 Comments

दो सीढियाँ चढ़ता और एक उतर जाता!

दो सीढियाँ चढ़ता और एक उतर जाता,

जबतक मै सोचता ये दिन गुज़र जाता,

ऐसे ही गुज़रते दिन,और फिर महीना गुज़र जाता,

महीने गुज़रते केवल तो कोई बात न थी

पर कमबख्त पूरा साल भी गुज़र जाता

बस दो सीढियाँ चढ़ता और एक उतर जाता

जबतक मै सोचता ये दिन गुज़र जाता



वक़्त का कहीं कोई रिश्तेदार भी न है

की दो पल कहीं बैठता और जरा बतियाता

इस्पे बस चलने का धुन सवार है

कोई कितनी भी दे सदा,

ये न रुकता बस चला जाता

इंसान बस गिनता रहता है घड़ियाँ… Continue

Posted on May 22, 2010 at 11:07pm — 6 Comments

Comment Wall (7 comments)

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At 2:03pm on November 5, 2010,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…

At 1:35pm on June 10, 2010, Vikash Kumar said…
Wah Yaar teri ye khubiya to malum hi nai thi yaar.
WAkai Maja AA gaya
At 6:07pm on May 10, 2010,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…

At 6:18pm on May 9, 2010, asha pandey ojha said…
Thnx Briesh ji 4 your comment
At 6:28pm on May 4, 2010, Ratnesh Raman Pathak said…

At 3:04pm on May 4, 2010, PREETAM TIWARY(PREET) said…

At 3:04pm on May 4, 2010, Admin said…

 
 
 

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