For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,939)

तड़पता हूँ के अब रोज़ तिरे दिल को दुखा कर

क्यों आ गया मैं हाय कभी हाथ छुड़ा कर,

तड़पता हूँ के अब रोज़ तिरे दिल को दुखा कर।

 

आज नदामत से पथरा गई हैं ये आंखें

आजा के बस इक बार तो आंचल से हवा कर।

 

दिन को सुकूँ शब को भी आराम नहीं है,

हवा भी चली आज ये नश्तर से चुभा कर।

 

अब ए दिल मुझे हयात की ख्वाहिश नहीं रही,

आया है वो मुकाम के मरने की दुआ कर।

 

दरे मौत पे आकर अटका है ये 'इमरान'

आ जा के मिरे जिस्म से ये रूह जुदा कर।

 

इमरान…

Continue

Added by इमरान खान on September 15, 2011 at 2:23pm — 4 Comments

फिर प्रारम्भ होगा सृष्टिचक्र

 

 पुरुष !
विवाह रचाओगे ?
पति कहलाना चाहोगे?
पत्नी को प्रताड़ित करना छोड़ ,
अच्छे जीवन साथी बन पाओगे?


मेरी ममता तो जन्मों की भूखी है ,
बच्चों के लिए बिलखती है,
सृष्टि-चक्र, मेरे ही दम पर है…
Continue

Added by mohinichordia on September 15, 2011 at 11:25am — 1 Comment

आतंकवाद की भेंट चढ़ गई एक लव स्टोरी

वो मासूम सा लड़का उसे बचपन से भला लगता था ,छोटी छोटी सी आँखें,घुंघराले बाल ,वो हमेशा से छुप छुप के उसे देखती आई थी ,जब वो अपना बल्ला  लेकर खेलने जाता, अपने दीदी की चोटी खींचकर भाग जाता, मोहल्ले के बच्चो के साथ गिल्ली डंडा खेलता हर बार वो बस उसे चुपके से निहार लिया करती थी. जैसे उसे बस एक बार देख लेने भर से इसकी आँखों को गंगाजल की पावन बूदों सा अहसास मिल जाता था . घर की छत  पर खड़ा होकर  जब वो पतंग उडाता वो उसे कनखियों से देखा करती थी जेसे जेसे उसकी पतंग आसमान में ऊपर जाती, इसका दिल भी जोरों…

Continue

Added by kanupriya Gupta on September 15, 2011 at 10:30am — No Comments

हिंदी-दिवस

हिंदी-दिवस मनाना, है असल में बहाना |

इसके बज़ट से सत्ता, को ज़श्न है मनाना || 
सालों से आज-तक हम, ये दिन मना रहे हैं |
हर साल आंकड़ों को, ऊँचा दिखा रहे है ||
सच क्या है कौन जाने, है झूठ का ज़माना |
सब लीडरों के बच्चे, अंग्रेजी पढ़ रहे हैं…
Continue

Added by Shashi Mehra on September 15, 2011 at 9:30am — 1 Comment

हिंदी प्रसार

हिंदी प्रसार

है लक्ष्य यह हमारा, हिंदी का हो पसारा |
हिंदी के दीप से ही, सम्भव है उजियारा ||
हमें मात्रभाषा को ही, है बनाना राष्ट्र- भाषा |
इससे ही बढ सकेगी, साक्षरता  की आशा ||
हिंदी में काम करना, हमें चाहिए अब सारा ||है लक्ष्य यह…
Continue

Added by Shashi Mehra on September 15, 2011 at 9:00am — 3 Comments

तलाश खुद की

कितना अच्छा लगता है

कभी खुद से खोकर

खुद को ढूँढना.

 

बीती हुई गलतियों पर

एक निर्पेक्ष दृष्टिपात;

गुजरे रास्तों…

Continue

Added by Kailash C Sharma on September 14, 2011 at 2:30pm — 7 Comments

आत्म -जागरण

मैं स्त्री हूँ रत्नगर्भा ,धारिणी,

पालक हूँ, पोषक हूँ

अन्नपूर्णा,

रम्भा ,कमला ,मोहिनी स्वरूपा

रिद्धि- सिद्धि भी मैं ही ,

शक्ति स्वरूपा ,दुर्गा काली ,महाकाली ,…

Continue

Added by mohinichordia on September 14, 2011 at 1:00pm — 7 Comments

मुक्तिका: अब हिंदी के देश में --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका

अब हिंदी के देश में

संजीव 'सलिल'

*

करो न चिंता, हिंदी बोलो अब हिंदी के देश में.

गाँठ बँधी अंग्रेजी, खोलो अब हिंदी के देश में..



ममी-डैड का पीछा छोड़ो, पाँव पड़ो माँ-बापू के...

शू तज पहन पन्हैया डोलो, अब हिंदी के देश में



बहुत लड़ाया राजनीति ने भाषाओँ के नाम पर.

मिलकर गले प्रेम रस घोलो अब हिंदी के देश में..



'जैक एंड जिल' को नहीं समझते, 'चंदा मामा' भाता है.

नहीं टेम्स गंगा से तोलो अब हिंदी के देश में..…



Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 14, 2011 at 8:30am — 8 Comments

अभियंता दिवस १५ सितम्बर पर विशेष आलेख: तकनीकी गतिविधियाँ राष्ट्रीय भाषा में (संजीव वर्मा 'सलिल')

अभियंता दिवस १५ सितम्बर पर विशेष आलेख:

तकनीकी गतिविधियाँ राष्ट्रीय भाषा में

संजीव वर्मा 'सलिल'


*

राष्ट्र गौरव की प्रतीक राष्ट्र भाषा:

              किसी राष्ट्र की संप्रभुता के प्रतीक संविधान, ध्वज, राष्ट्रगान, राज भाषा, तथा राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह (पशु, पक्षी आदि) होते हैं. संविधान के अनुसार भारत लोक कल्याणकारी गणराज्य है, तिरंगा झंडा राष्ट्रीय ध्वज है, 'जन गण मन' राष्ट्रीय गान है, हिंदी राज भाषा है, सिंह राष्ट्रीय पशु तथा मयूर…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 14, 2011 at 8:00am — No Comments

विरह की पीड़ा

कुछ कह न सके तुम, चुप सह न सके हम .

खामोशियों में टूट गया दिल ये  बेचारा 
आहें दबी रहीं, चाहें दबी रहीं..
बिन तुम्हारे हमसे जिया…
Continue

Added by Lata R.Ojha on September 14, 2011 at 12:00am — 10 Comments

मेरी हाँ

मेरी हाँ

कई दिनो से 

घर के बाहर 

चक्कर लगाते-लगाते

एक दिन अचानक वो

ठहरा, झिझकता हुआ बोला

मै…

Continue

Added by सुनीता शानू on September 13, 2011 at 11:23pm — 6 Comments

किसी और के पास कहाँ

घर शिफ्टिंग के दौरान एक पुरानी diary हाथ लगी और गर्द झाड़ी तो यह रचना नमूदार हुई. इस पर तारीख अंकित थी 12-8-1999...मैने सोचा कच्ची उम्र और कच्ची सोच की यह रचना के सुधि पाठकों की नज़र की जाए.

तुम्हारी जो ख़बर हमें है

वो किसी और के पास कहाँ

देख लेता हूँ कहकहों में भी

आंसू के कतरे

ऐसी नजर किसी और के पास कहाँ



ज़माने ने ठोकरें दी पत्थर समझकर

तुने मुझे सहेज लिया मूरत समझकर

होगी अब हमारी गुजर

किसी और के पास कहाँ



उम्र भर देख लिया

बियाबान में…

Continue

Added by दुष्यंत सेवक on September 13, 2011 at 6:44pm — 6 Comments

ध्रुवतारा ...

मेघ से आच्छादित नभ में

एकमात्र सुक्ष्म नक्षत्र से…

Continue

Added by Anwesha Anjushree on September 13, 2011 at 4:51pm — 4 Comments

मैं अपनों से उम्मीद ही कम रखती हूँ

मैं हिफाज़त से तेरा दर्दो अलम रखती हूँ

और खुशी मान के दिल में  तेरा ग़म रखती हूँ।



मुस्कुरा देती हूँ जब सामने आता है कोई

इस तरह तेरी जफ़ाओं का भरम रखती हूँ।



हारना मैं ने नहीं सीखा कभी मुश्किल से

मुश्किलों आओ दिखादूं मैं जो दम रखती हूँ। 



मुस्कुराते हुए जाती हूँ हर इक  महफ़िल में

आँख को सिर्फ़ मैं तन्हाई में नम रखती हूँ 



है तेरा प्यार इबादत मेरी  पूजा मेरी 

नाम ले केर तेरा मंदिर में क़दम रखती हूँ। 



दोस्तों से न गिला है न शिकायत है…

Continue

Added by siyasachdev on September 13, 2011 at 1:17am — 16 Comments

''पल-पल फिसलती जिंदगी''

 

कोई पल ना बीतें काम के बिन हैं 

रस्ते जीवन के बहुत कठिन हैं l

 

खुशी और गम के घूँट घूँट के

अभिलाषायें मन में अनगिन हैं l

 

साँस जभी तक आस तभी तक

सिमट रहे हर पल पल-छिन हैं l

 

काया ठगती है क्षमता घटती है

और बुझती सी साँसें बैरिन हैं l  

 

ना होता हर दिन एक समाना

उम्मीदें भी लगतीं नामुमकिन हैं l

 

काम बहुत और समय रेत है

सब फिसल रहे हाथों से दिन हैं l

 

मंजिल है…

Continue

Added by Shanno Aggarwal on September 13, 2011 at 12:30am — 2 Comments

मन को मनाने के अंदाज निराले है

 

बस एक छोटी सी कोशिश है लिखने की...

 

मन को मनाने के अंदाज निराले है

हुए नही वो हम ही उसके हवाले हैं

 

उसने कसम दी तो न पी अभी तक

हाथ में पकड़े लो खाली प्याले है

 

दिल की बात जुबां पर लाये भी कैसे

ये भीड़ नही बस उसके घरवाले हैं

 

बात छोटी सी भी वो समझे नही

चुप रहेंगे भला जो कहने वाले हैं

 

इन्तजार की भी होती है हद दोस्तों

रूक न पायेंगे हम जो मतवाले हैं

 

शानू

Added by सुनीता शानू on September 12, 2011 at 11:30pm — 8 Comments

भादों की अमावास

अमावास की रात अब बहुत सुकून देती है

वो भी भादों की अमावास हो तो क्या कहने

उसके अलावा हर रात को…

Continue

Added by आशीष यादव on September 12, 2011 at 1:00pm — 16 Comments

बाक़ी रहा न मैं....

बाक़ी रहा न मैं, न ग़मे-रोज़गार मेरे.

अब सिर्फ़ तू ही तू है परवरदिगार मेरे.



यारब हैं सर पे आने को कौन सी बलायें,

क्यूँ आज मेरी क़िस्मत है साज़गार मेरे.



बरसेगी और तुझपे ? उनके करम की बदली,…

Continue

Added by डॉ. नमन दत्त on September 12, 2011 at 7:30am — 2 Comments

मुझे देख के एक लड़की ................

मुझे देख के एक लड़की, बस हौले -हौले हँसती है I

प्रेम - जाल मैं डाल के थक गया, पर कुड़ी नहीं फंसती हैI

 

        रहती है मेरे पड़ोस में वो,    कुछ चंचल कुछ शोख है वो I

        ना गोरी - ना काली है, सांवली है मतवाली है I

        झील सी गहरी आँखें हैं , ज़ुल्फ़ यूँ काली रातें हैं I

        लहरों जैसी बल खाती, दुल्हन जैसी शरमाती I

        चेहरा चाँद है पूनम का, होंठ सुमन है उपवन का I

        नाम है उसका नील कमल, वो है ज़िंदा ताजमहल…

Continue

Added by satish mapatpuri on September 12, 2011 at 12:00am — 3 Comments

" उलझन"

न कोई गिला, न कोई शिकवा,

उनसे न मिलना भी है एक सजा;

न मिले हम उनसे तो दिल डूबा रहता है उनकी यादो में,

मिले अगर हम उनसे तो दिल डूबा रहता है अरमानो में;

डरते हैं हम कि कहीं हम  बह न जाएँ इन अरमानो में,

कहीं रह न जाये बस वो मेरे खयालो में;

मेरी जिंदगी में बस यही कशमकश है,

और बस यही मेरी जिंदगी की उलझन है;

जितना उनको खोना  है …

Continue

Added by Smrit Mishra on September 11, 2011 at 10:29pm — 2 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122-------------------------------जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी मेंवो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सच-झूठ

दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठअभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

बालगीत : मिथिलेश वामनकर

बुआ का रिबनबुआ बांधे रिबन गुलाबीलगता वही अकल की चाबीरिबन बुआ ने बांधी कालीकरती बालों की रखवालीरिबन…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहावली। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर रिश्तों के प्रसून…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, व्यंजनाएँ अक्सर काम कर जाती हैं. आपकी सराहना से प्रस्तुति सार्थक…"
Sunday
Hariom Shrivastava replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सूक्ष्म व विशद समीक्षा से प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय सौरभ सर जी। मेरी प्रस्तुति को आपने जो मान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सम्मति, सहमति का हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई... "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपकी टिप्पणियां हम अन्य अभ्यासियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती रही है। इस…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार सर।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service