122 - 122 - 122 - 122 - 122 - 122 - 122 - 122 (16-रुक्नी)
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गुजारिश नहीं है, नवाजिश नहीं है, इज़ाज़त नहीं है, नसीहत नहीं है।
ज़माना हुआ है बड़ा बेमुरव्वत, किसी को किसी की जरूरत नहीं है।
किनारे दिखाई नहीं दे रहें है, चलो किश्तियों के जनाज़े उठा लें,
यहाँ आप से है समंदर परेशाँ, यहाँ उस तरह की निजामत नहीं है।
जमीं आसमां…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on December 31, 2014 at 12:41am — 31 Comments
कौन जाने ?
बद्दुआओ में होता है असर
वाणी के जहर
ये काटते तो है
पर देते नहीं लहर
पुरा काल में
इन्हें कहते थे शाप
ऋषियों-मुनियों के पाप
दुर्वासा इसके
पर्याय थे आप
भोगता था
अभिशप्त वाणी की मार
कभी शकुन्तला
या अहल्या सुकुमार
आह !आह ! ऋषि के
वे…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 29, 2014 at 9:30pm — 19 Comments
Added by ram shiromani pathak on December 29, 2014 at 5:17pm — 19 Comments
मजदूरों की बस्ती में दो कँपकँपाती हुई आवाज़ें
“सुना है घर वापसी के 5 लाख दे रहे हैं”
“हाँ भाई मैं भी सुना”
“हम तो घर में ही रहते हैं, कुछ हमें भी दे देते”
-मौलिक व अप्रकाशित
Added by शिज्जु "शकूर" on December 28, 2014 at 6:56pm — 24 Comments
ग़ज़ल : शुभ सजीला आपका नव साल हो.
गर्व से उन्नत सभी का भाल हो.
शुभ सजीला आपका नव साल हो.
कामना मैं शुभ समर्पित कर रहा,
देश का गौरव बढ़े खुश हाल हो.
आसमां हो महरबां कुछ खेत पर,
पेट को इफरात रोटी दाल हो.
मुल्क के हर छोर में छाये अमन,
हो तरक्की देश मालामाल हो.
आदमी बस आदमी बनकर रहे,
जुल्म शोषण का न मायाजाल हो.
मन्दिरों औ मस्जिदों को जोड़ दें,
घोष जय धुन एक ही…
ContinueAdded by harivallabh sharma on December 28, 2014 at 5:30pm — 29 Comments
“वर्मा साहब, एक बात समझ में नहीं आयी, आपने फ़िल्म प्रोडक्शन पर अधिक और फ़िल्म प्रमोशन एवं मिडिया मैनेजमेंट पर मामूली बजट का प्रावधान किया है, जबकि आजकल तो प्रमोशन पर प्रोडक्शन से कहीं अधिक बजट खर्च किये जा रहे हैं.”
“डोंट वरी दादा ! कम प्रमोशनल बजट में भी फ़िल्म हिट करवाई जा सकती है.”
“अच्छा अच्छा, मतलब आप फ़िल्म में आइटम डांस वगैरह डालने वाले है.”
“नो नो, इटिज वेरी ओल्ड ट्रेंड”
“तो अवश्य कोई किसिंग या बोल्ड बेड सीन दिखाने को सोच रहे हैं.”
“अरे नहीं दादा इसमें नया क्या…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 28, 2014 at 4:30pm — 57 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on December 28, 2014 at 2:10pm — 22 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
कब तलक दीपक जलेगा ये मुझे मालूम है
तप रहा सूरज ढलेगा ये मुझे मालूम है
कौन ऊँचाई पे कितनी ये नहीं मुझको पता
पर जमी में ही मिलेगा ये मुझे मालूम है
कितनी दौलत वो कमाता आप उससे पूँछिये
साथ उसके क्या चलेगा ये मुझे मालूम है
अपनी खुशियों के लिए जो आज कांटे बो रहे
कल उन्हें भी ये खलेगा ये मुझे मालूम है
वो बबूलों को लगाते आम की उम्मीद में
क्या हकीकत में फलेगा ये मुझे…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on December 27, 2014 at 4:31pm — 16 Comments
Added by दिनेश कुमार on December 19, 2014 at 4:18pm — 18 Comments
जो टूटा सो टूट गया
रूठा सो रूठ गया ।
साथ चले जिस पथ पर थे
आखिर तो वो भी छूट गया ।
गाँव की पगडण्डी वो छूटी , पानी पनघट छूट गया
खेतवारी बँसवारी छूटी, बचपन कोई लूट गया
भर अँकवारी रोई दुआरी ,नइहर मोरा छूट गया ।
जो....
अँचरा अम्मा का जो छूटा ,घर आँगन सब छूट गया
छिप - छिप बाबा का रोना भइया वो बिसुरता छूट गया
तीस उठी है करेजे में ज्यूँ पत्थर कोई कूँट गया ।
जो…।
पाही पलानी मौन हुए मड़ई से छप्पर रूठ गया
सोन चिरईया…
Added by mrs manjari pandey on December 17, 2014 at 9:30pm — 9 Comments
मैं हूँ बंदी बिन्दु परिधि का , तुम रेखा मनमानी I
मैं ठहरा पोखर का जल , तुम हो गंगा का पानी I I
मैं जीवन की कथा -व्यथा का नीरस सा गद्यांश कोई इक I
तुम छंदों में लिखी गयी कविता का हो रूपांश कोई इक I
मैं स्वांसों का निहित स्वार्थ हूँ , तुम हो जीवन की मानी I I…
ContinueAdded by ajay sharma on December 14, 2014 at 11:00pm — 14 Comments
212 122 212 12
बिन कहा समझते हैं कमाल है
क्या से क्या समझते हैं कमाल है
मैं मना करूँ तो हाँ जो हाँ करूँ
तो मना समझते हैं कमाल है
शर्म से निगाहें जो झुकी मेरी
वो अदा समझते हैं कमाल है
कद्र मैं करूँ जज्बात की जिसे
वो वफ़ा समझते हैं कमाल है
चूड़ियाँ बजें मेरी ये आदतन
वो सदा समझते हैं कमाल है
झाँकते वो मेरी आँखों के निहाँ
आईना समझते हैं…
ContinueAdded by rajesh kumari on December 14, 2014 at 10:45am — 30 Comments
कोहरे के कागज़ पर
किरणों के गीत लिखें
आओ ना मीत लिखें
सहमी सहमी कलियाँ
सहमी सहमी शाखें
सहमें पत्तों की हैं
सहमी सहमी आँखें
सिहराते झोंकों के
मुरझाए
मौसम पर
फूलों की रीत लिखें
आओ ना मीत लिखें
रातों के ढर्रों में
नीयत है चोरों की
खीसें में दौलत है
सांझों की भोरों की
छलिया अँधियारो से
घबराए,
नीड़ों पर
जुगनू की जीत लिखें
आओ ना मीत…
ContinueAdded by seema agrawal on December 13, 2014 at 9:30pm — 14 Comments
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