For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल -- देखकर मासूम बच्चों की हँसी

ग़ैर तरही गजल

देखकर मासूम बच्चों की हँसी
आज कुछ मन की उदासी कम हुई

गीत गजलें छन्द मुक्तक फिर कभी
तुझसे मन उकता गया है शायरी

मुझमें शायद कुछ न कुछ तो है कमी
हर किसी को मुझ से जो नाराज़गी

कल मेरे दिल को बहुत सदमा लगा
मेरी गजलें उसने बेगानी कही

गुजरा बचपन जैसे कल की बात हो
तेज़ है रफ़्तार कितनी वक़्त की

रेत पर लिक्खी इबारत की तरह
कुछ ही पल टिकतें हैं मेरे ख़्वाब भी

आप इसको जो भी चाहे नाम दें
मुझ में है मुझ से सिवा इक अजनबी

उन निगाहों को नहीं भूला हूँ मैं
जिनसे की मैंने कभी थी मयकशी

जो मिला किस्मत में लिक्खा था 'दिनेश'
किस को मिलती ज़िन्दगी में हर खुशी

---- दिनेश कुमार १९/१२/२०१४

( मौलिक और अप्रकाशित )

Views: 993

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 26, 2015 at 4:54pm

गीत गजलें छन्द मुक्तक फिर कभी

तुझसे मन उकता गया है शायरी

मुझमें शायद कुछ न कुछ तो है कमी

हर किसी को मुझ से जो नाराज़गी

बहुत सुन्दर दिनेश जी आपको बधाई!

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 18, 2015 at 11:58am

अच्छे अश’आर हुए हैं दिनेश जी। दाद कुबूल करें।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 8, 2015 at 3:18pm

दिनेश जी ..कमाल की ग़ज़ल है ..इस ग़ज़ल ने बहुत प्रभावित किया ..जितनी तारीफ्क की जाय कम है ..इस रचना के लिए तहे दिल से बधायी स्वीकार करें ..सादर 

Comment by दिनेश कुमार on February 7, 2015 at 5:49pm
सभी आदरणीय साथियों का हार्दिक शुक्रिया । सहयोग और स्नेह बनाए रखिए ।
Comment by सर्वेश कुमार मिश्र on February 5, 2015 at 10:13am

अच्छा है...


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 3, 2015 at 10:20pm

आदरणीय दिनेश जी, इस ग़ज़ल के तकनिकी पहलुओं को देख मन प्रसन्न है, ई की मात्रा को काफिया बनाकर दो-दो हुस्ने मतला के साथ कही गयी यह गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल कहन और शिल्प पर एक बेहतरीन ग़ज़ल शाबित हो रही है, बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं.

Comment by Shyam Mathpal on January 29, 2015 at 8:41pm

आदरणीय दिनेश जी,

kafi sundar gazhal ke liye bahut badhi ho.

Comment by Anurag Singh "rishi" on January 24, 2015 at 2:50am
आदरणीय लाजवाब गज़ल हुई है
सादर
Comment by Rahul Dangi Panchal on January 20, 2015 at 7:11am
आदरणीय दिनेश जी हर इक शे'र लाजवाब! वाह वाह वाह!
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 19, 2015 at 12:18pm

आ0. भाई दिनेश , लाजवाब ग़ज़ल कही है , हर शे र उम्दा हुये हैं , बधाइ स्वीकारें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
16 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service