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बिन कहा समझते हैं कमाल है (ग़ज़ल 'राज')

212   122   212  12

बिन कहा  समझते हैं कमाल है

क्या से क्या समझते हैं कमाल है

 

मैं मना करूँ तो हाँ जो हाँ करूँ   

तो मना समझते हैं कमाल है

 

शर्म से निगाहें जो  झुकी मेरी  

वो अदा समझते हैं कमाल है

 

कद्र मैं करूँ जज्बात की जिसे     

वो वफ़ा समझते हैं कमाल है

 

 चूड़ियाँ बजें मेरी ये आदतन  

 वो सदा समझते हैं कमाल है

 

 झाँकते वो मेरी आँखों के निहाँ           

 आईना समझते हैं कमाल है

 

सुर्ख देख आँखें नींद से मेरी

वो नशा समझते हैं कमाल है

 

प्यार मर्ज़ दिल का दर्द है फ़कत  

वो दवा समझते हैं कमाल है

 

इश्क या मुहब्बत को मैं इक फितूर  

वो ख़ुदा समझते हैं कमाल है

-------------------------

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 18, 2015 at 7:10pm

आ० धर्मेन्द्र जी,ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति एवं दाद उत्साह वर्धन कर रही है,मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से आभार आपका. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 18, 2015 at 7:08pm

गोपाल मौर्या जी,तहे दिल से आभार आपका . 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 18, 2015 at 11:56am

अच्छी ग़ज़ल हुई है राजेश कुमारी जी। दिली दाद कुबूल करें।

Comment by Gopal Maurya on February 17, 2015 at 1:59am

सार्थक ....सुमधुर एवं अतुलनीय


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 8, 2015 at 6:02pm

आ० डॉ०  आशुतोष जी,आप जैसे गंभीर रचनाकार से दाद पाना ग़ज़ल के लिए सौभाग्य की बात है मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से आभार आपका | 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 8, 2015 at 3:07pm

आदरणीया राजेश जी ..आज तो मैं बस इतना कहोंगा की ये रचना तो बस कमाल है कमाल .कमाल कि इस रचना पर आपको तहे दिल बधाई सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 30, 2015 at 11:44am

ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया देख दिल खुश हो गया भले ही ....देर आयद दुरस्त आयद ...ये बहुत बार होता है व्यस्तता के कारण सभी रचनाएँ नहीं पढ़ पाते जिसका अफ़सोस भी होता है| आप जैसे गंभीर रचनाकार से दाद पाना रचना का सौभाग्य है दिल से आभार आपका | 

Comment by Hari Prakash Dubey on January 29, 2015 at 8:21pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, बहुत सी सुन्दर रचनाएं अपठनीय रह जाती हैं कई बार ,कभी काम ,कभी घर से बाहर ,आज ध्यान गया , बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने .....

सुर्ख देख आँखें नींद से मेरी

वो नशा समझते हैं कमाल है....सम्पूर्ण रचना सुन्दर है , हार्दिक बधाई ! सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 28, 2015 at 10:09am

प्रिय सीमा जी, आपसे दाद पाकर ग़ज़ल मुकम्मल हो गई इस उत्साह्मयी प्रतिक्रिया के लिए दिल से बहुत- बहुत आभार आपका. 

Comment by seema agrawal on January 27, 2015 at 8:40pm

बहुत  खूब  राजेश  जी  सारे कमाल  पसंद आये  पर इस कमाल  का जवाब नहीं 

बिन कहा  समझते हैं कमाल है

क्या से क्या समझते हैं कमाल है

 

मैं मना करूँ तो हाँ जो हाँ करूँ   

तो मना समझते हैं कमाल है

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