रोज की तरह आज भी सुबह सुबह हो-हल्ला सुन कर में उठ गयाI घड़ी की तरफ देखा तो चार बज रहे थेI घर के सभी सदस्य अपने दोनों हाथोँ में पानी के बर्तन लेकर तैयार खड़े थेI और मेरे लिए भी पानी के बर्तन तैयार थेI हम सब लोग पानी भरने के लिए निकल पड़ेI 3 घंटे बाद पसीने से लथपथ दो दो बाल्टी पानी मिला तो सुकून की साँस लीI लाइन में खड़े खड़े पाँव अकड़ गए थे, इसलिए थोड़ा बैठकर राहत की साँस ली, फिर अपने घर की तरफ चल पड़ा, रास्ते में चौबे जी के घर के आगे पड़े अख़बार की हेडलाइन "मंगलग्रह पर मिला पानी" पढ़कर ख़ुशी से बाँछे…
ContinueAdded by harikishan ojha on September 30, 2015 at 3:00pm — 9 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 30, 2015 at 12:51am — 11 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 29, 2015 at 11:30pm — 14 Comments
तुम इसे तवज्जो न देना ....
ये बादे सबा अगर
तुम्हें मेरे दर्द का पैगाम दे जाये
तो अपने ज़हन में
करवटें लेते खुशनुमा अहसासों पर
तुम तवज्जो न देना
किसी तारीक शब को
अब्र से झांकता माहताब
पीला नज़र आये
तो तन्हाई से गुफ़्तगू करती
मेरी खामोशियों पर
तुम तवज्जो न देना
सड़क पर चलते
तुम्हारे पाँव के नीचे
कोई ज़र्द पत्ता चीखे
तो गर्द में डूबे
मेरी मुहब्बत के
बदलते मौसम पर
तुम तवज्जो न…
Added by Sushil Sarna on September 29, 2015 at 7:30pm — 10 Comments
शुभ्र चाँदनी ने था दुलराया
हरसिंगार फूला नहीं समाया
*****
तिर गया मदहोश हो
चमन की सुंदर हथेली पर
छुप कर खेलता आँखमिचौली
जान देता निशा की सहेली पर
सुंदरी ने जूड़े में सजाया
हरसिंगार फूला नहीं समाया
*****
खिल गया कपोलों पे
रजत कणों की कर्पूरी आभा लिए
वसुधा को करने सुगंधित
रूप अपना सादा लिए
भोर ने वृक्ष को धीरे से हिलाया
हरसिंगार फूला नहीं समाया
*****
बिछ गया बेसुध हो
मन में असीमित नेह…
Added by kalpna mishra bajpai on September 29, 2015 at 6:30pm — 6 Comments
Added by Manan Kumar singh on September 29, 2015 at 2:59pm — 4 Comments
(2122 2122 2122 212)
आज फिर आये वो मुझको आज़माने के लिये..
क्या मिले हम ही थे उनको दिल दुखाने के लिये..
-
बात से फ़िर जाएँगे,ये सोच भी कैसे लिया,
सर कटा देंगे, दिया वादा निभाने के लिये..
-
ये शिकन माथे पे मेरे,बेवजह ही है सही,
कुछ तो कारण चाहिये ना, मुस्कुराने के लिये..
-
थे भरे संदूक वो,शैतान सब धन खा गये,
हो गये हैं आज वो,मुहताज दाने के लिये..
-
मंदिरों औ' मस्ज़िदों में 'जय' भटकना छोड़…
ContinueAdded by जयनित कुमार मेहता on September 29, 2015 at 12:27pm — 10 Comments
Added by मनोज अहसास on September 28, 2015 at 7:32pm — 2 Comments
2122 2122 212
लौट कर जब शाम को मैं घर गया ,
निस्फ़ दफ़्तर साथ में लेकर गया ।
आंख में देखी थकानों की नदी,
डूब कर उत्साह घर का मर गया ।
खेंच लो तुम भी तनाबें नींद की ,
चाँद खिड़की से हमें कह कर गया ।
बात जो मैं भूलना चाहूं वही ,
ध्यान भी उस बात पर अक्सर गया ।
जब गया तो वो सिंकदर या सखी ,
शान शौकत सब यहीं पर धर गया ।
क्या बताएं वक़्त की मज़बूरियां…
ContinueAdded by Ravi Shukla on September 28, 2015 at 6:06pm — 10 Comments
ये जो समय है
बदलाव चाहता है
बदलाव लाता है
अच्छा भी है समाज में
बदलाव का होना
नीचे से ऊपर की ओर बढ़ना
किन्तु ऐसा क्या सच में हुआ है
क्या मानव ऊपर की ओर बढ़ा है
या स्तर गिरा है
हमारी मानवता का
समाज के भाईचारे को
तोड़ चुका है ये
परिवर्तन
पहले जहाँ पर था
प्रेम का चलन
और अब
इर्ष्या जलन
एक के पीछे सौ जान
देने को रहते थे तैयार
आह! वर्तमान
अब एक…
ContinueAdded by Prabhat Pandey on September 28, 2015 at 1:00pm — 2 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 28, 2015 at 12:58pm — 6 Comments
1212 1122 1212 22 /112
तेरे खतों में रहा यूँ तो रंगो बू शामिल
मगर मज़ा ही कहाँ है अगर न तू शामिल
मुझे अधूरी किसी चीज़ की नहीं हाजत
मेरी हयात में हो जा तू हू ब हू शामिल
बिन आरज़ू भी कभी ज़िन्दगी कटी है कहीं
तू कर ले ज़िन्दगी में मेरी आरजू शामिल
किसी की याद भी तनहाइयों का दरमाँ है
किसी की याद की कर ले तू ज़ुस्तजू शामिल
झिझक नहीं , न जमाने…
Added by गिरिराज भंडारी on September 28, 2015 at 5:00am — 19 Comments
Added by Samar kabeer on September 27, 2015 at 2:30pm — 16 Comments
1222—1222—1222—1222 |
|
कभी मैं खेत जैसा हूँ, कभी खलिहान जैसा हूँ |
मगर परिणाम, होरी के उसी गोदान जैसा हूँ |
|
मुझे इस मोह-माया, कामना ने भक्त… |
Added by मिथिलेश वामनकर on September 27, 2015 at 9:30am — 28 Comments
बादलों की ओट से उधार लूँ ज़रा
चाँद आज तुझको मैं निहार लूँ ज़रा..
कँपकँपा रहे अधर नयन मुँदे मुँदे
साँस की छुअन से ही पुकार लूँ ज़रा..
शब्द शून्य सी फिज़ा हुई है पुरअसर
सिहरनों से रूह को सँवार लूँ ज़रा..
चाँद भी पिघल के कह रहा मचल मचल
चाँदनी में प्यार का निखार लूँ ज़रा..
अब महक उठे बहक उठे प्रणय के पल
इन पलों में ज़िन्दगी…
Added by Dr.Prachi Singh on September 27, 2015 at 1:00am — 24 Comments
सरकारी नौकरी लगते ही रिश्तेवालों की सूची लम्बी हो गई थी. हर दिन एक नए रिश्ते लेकर कोई न कोई उसका घर चला आता था. अपनी मां से जब भी उसकी बातें होती वह लड़की के दादा परदादा से लेकर उसकी जनम कुण्डली तक बखान कर ही दम लेती. हर दिन रिश्ते के नए चेप्टर खुलते, उसके मन में इस बात को लेकर कुतूहल बना रहता था. उसे स्कूल के दिन याद हो आए थे. वहां भी हर रोज नए चेप्टर खुलते और नई-नई जानकारी मिलती थी. बात कुछ वैसी ही यहां पर भी उसके साथ हो रही थी. यहां भी हर रोज…
ContinueAdded by Govind pandit 'swapnadarshi' on September 26, 2015 at 10:23pm — 4 Comments
Added by VIRENDER VEER MEHTA on September 26, 2015 at 4:59pm — 2 Comments
"वाह, भाभी इस बार तो ग़ज़ब की जीन्स-टोप लायी हो आगरा से ....लेकिन कुछ ज़्यादा ही महंगा है.....भाई साहब को मना ही लिया आपने !"- शालू ने चहकते हुये लक्ष्मी से कहा ।
"देखो, अभी यहाँ किसी को बताना मत, वरना ख़ानदानी सड़ल्ले रीति-रिवाज़ों के भाषण अभी शुरू हो जायेंगे। जहाँ तक महंगे होने की बात है, तो सुन मैं लक्ष्मी हूँ लक्ष्मी ! मुझे 'लक्ष्मी' को टेकल करने और हैण्डल करने की टेकनीक अच्छी तरह आती है। मेरी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ ये मुझे बीमार ननंद जी को देेखने जबरन आगरा ले तो गये, लेकिन मैं धन-दौलत…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 26, 2015 at 2:00pm — 3 Comments
तेजी से घूम रहे चक्र पर
हम ठेल दिये गए हैं
किनारों की ओर
जहां
महसूस होती है सर्वाधिक
इसकी गति
ऊंची उठती है उर्मियाँ
जैसे जैसे हम बढ़ते हैं
केंद्र की ओर
सायास
स्थिरता बढ़ती जाती है
प्रशांत हो जाती है तरंगे
सत्य का बोध
अनावृत होने लगता है
अनुभव होता है एकात्म का ....
.............. नीरज कुमार नीर
Added by Neeraj Neer on September 26, 2015 at 12:37pm — 5 Comments
बह्र : १२२२ १२२२ १२२
सनम जब तक तुम्हें देखा नहीं था
मैं पागल था मगर इतना नहीं था
बियर, रम, वोदका, व्हिस्की थे कड़वे
तुम्हारे हुस्न का सोडा नहीं था
हुआ दिल यूँ तुम्हारा क्या बताऊँ
मुआँ जैसे कभी मेरा नहीं था
यकीनन तुम हो मंजिल जिंदगी की
ये दिल यूँ आज तक दौड़ा नहीं था
तुम्हारे हुस्न की जादूगरी थी
कोई मीलों तलक बूढ़ा नहीं था
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 26, 2015 at 10:33am — 20 Comments
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