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नाम काफ़ी है किसी का,सिर झुकाने के लिये (ग़ज़ल)

(2122 2122 2122 212)

आज फिर आये वो मुझको आज़माने के लिये..

क्या मिले हम ही थे उनको दिल दुखाने के लिये..

-

बात से फ़िर जाएँगे,ये सोच भी कैसे लिया,

सर कटा देंगे, दिया वादा निभाने के लिये..

-

ये शिकन माथे पे मेरे,बेवजह ही है सही,

कुछ तो कारण चाहिये ना, मुस्कुराने के लिये..

-

थे भरे संदूक वो,शैतान सब धन खा गये,

हो गये हैं आज वो,मुहताज दाने के लिये..

-

मंदिरों औ' मस्ज़िदों में 'जय' भटकना छोड़ दे,

नाम काफ़ी है किसी का, सिर झुकाने के लिये..

~

~

जयनित कुमार वर्मा

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by जयनित कुमार मेहता on May 5, 2016 at 6:45pm
आप सब के प्रति हार्दिक आभारी हूँ।

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Comment by मिथिलेश वामनकर on October 15, 2015 at 1:13pm

आदरणीय जयनित भाई जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on October 2, 2015 at 11:32am

बहुत ख़ूब! आ० जयनीत भाई!

हार्दिक बधाई!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 2, 2015 at 11:03am

आदरणीय जय्नित जी इस शानदार रचना पर हार्दिक बधाई सादर

Comment by asha jugran on October 1, 2015 at 2:19pm

जयनित जी जय-जय ..बहुत सुन्दर.

Comment by Neeta Saini on September 30, 2015 at 8:08pm
बहुत खूब
Comment by Shyam Narain Verma on September 30, 2015 at 10:58am

बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर ग़ज़ल पर

 सादर 

Comment by मनोज अहसास on September 29, 2015 at 4:16pm
बहुत खूब
आदरणीय जयनित जी
सादर
Comment by जयनित कुमार मेहता on September 15, 2015 at 6:43pm

हार्दिक धन्यवाद आपका, आदरणीय गिरिराज भंडारी जी..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 15, 2015 at 10:13am

आदरणीय जयनित भाई , अच्छी गज़ल कही है , दिली मुबारकबाद आपको ।

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