Added by Manan Kumar singh on July 17, 2016 at 10:00am — 5 Comments
२२१ २१२१ १२२१ २१२
ये रूप रंग गंध सभी शान बन गए
कुछ रोज में ही जो मेरी पहचान बन गए
नफरत के सिलसिले जो चले धूप छाँव बन
इंसानियत के शब्द भी मेहमान बन गए
तुम-तुम न रह सके न ही मैं-मैं ही बन सका
दोनों ही आज देख लो शैतान बन गए
खेमों में बँट गए हैं सभी आज इस तरह
कुछ राम बन गए कई रहमान बन गए
हद के सवाल पर या कि जिद के सवाल पर
हद भूलकर गिरे सभी नादान बन…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on July 17, 2016 at 9:35am — 5 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 17, 2016 at 7:30am — 4 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २२
जिंदगी क्या है ज़रा नज़रे उठा कर देखो
अश्क बारी बंद कर चश्में सुखा कर देखो |
जिंदगी भर लालसा के पीछे भागे तुम क्यूँ
शांति से तुम सोचकर कारण पता कर देखो |
मुफलिसी को तुम भी हंसी में चिढ़ाया होगा
मुफलिसों को कुछ कभी तो तुम खिला कर देखो |
चश्मा पहने हो जो उसको साफ़ करना होगा
शान शौकत धन के ऐनक को हटा कर देखो |
मानुषिकता में नहीं कोई बड़ा या…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on July 17, 2016 at 7:30am — No Comments
Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on July 17, 2016 at 1:56am — 12 Comments
उस विशेष विद्यालय के आखिरी घंटे में शिक्षक ने अपनी सफेद दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए, गिने-चुने विद्यार्थियों से कहा, "काफिरों को खत्म करना ही हमारा मक़सद है, इसके लिये अपनी ज़िन्दगी तक कुर्बान कर देनी पड़े तो पड़े, और कोई भी आदमी या औरत, चाहे वह हमारी ही कौम के ही क्यों न हों, अगर काफिरों का साथ दे रहे हैं तो उन्हें भी खत्म कर देना| ज़्यादा सोचना मत, वरना जन्नत के दरवाज़े तुम्हारे लिये बंद हो सकते हैं, यही हमारे मज़हब की किताबों में लिखा है|"
"लेकिन हमारी किताबों में तो क़ुरबानी पर ज़ोर…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on July 16, 2016 at 10:26pm — 9 Comments
Added by मनोज अहसास on July 16, 2016 at 4:54pm — 6 Comments
२२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२
मीत बनाते बस इक अपना दुश्मन सौ खुद मिल जाते है
गुल को पाने की चाहत में खारों से तन छिल जाते हैं
हम तो उसको भाई कहते वो हमको कमजोर बताता
नहीं समझता जब हम अपनी पे आते सब हिल जाते है
बसें चलाते गले लगाते क्या क्या नहीं किया करते हम
पर जिस वक़्त गले मिलते दुश्मन को मौके मिल जाते हैं
हम पूरब के बासी हमको मत तहजीब सिखा उल्फत की
यहाँ जमाने से उल्फत में बदले दिल से दिल जाते…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on July 16, 2016 at 4:00pm — 6 Comments
कल से आगे ........
जैसी की सुमाली को अपेक्षा थी, पिता विश्रवा का निर्णय रावण के पक्ष में आया था।
दूसरे दिन प्रातः ही यह पूरा कुटुम्ब कुबेर के साथ पुष्पक में बैठकर विश्रवा के पास गया था। उन्होंने पूरी बात समझी और बोले- ‘‘मैं दोनों से पृथक-पृथक एकान्त में बात करना चाहता हूँ।’’
पहले रावण से बात हुई। विश्रवा ने उसे तभी देखा था जब वह दुधमुहाँ बच्चा था। आज उसको इस पूर्ण विकसित अवस्था में देख कर उन्हें प्रसन्नता हुई। उसे स्नेह से सीने से लगा लिया। फिर वे धीरे से विषय पर आये…
Added by Sulabh Agnihotri on July 16, 2016 at 10:23am — 1 Comment
शादी मे सारा कुछ अच्छे से निपट गया था।सभी मेहमानों को वापसी उपहार, मिठाईयो के डिब्बे देकर रुखसत किया गया था। घर को भी फ़िर से सवार कर पटरी पर ले आई थी कि अचानक एक सुटकेस और …
ContinueAdded by नयना(आरती)कानिटकर on July 15, 2016 at 8:00pm — 2 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on July 15, 2016 at 5:39pm — 12 Comments
Added by Janki wahie on July 15, 2016 at 5:23pm — 4 Comments
कितने ही गिद्धमानव
आकाश में मुक्त होकर
उड़ रहे हैं
क्योंकि उनके मुँह पर
खून के निशान नहीं पाये गए
और तीन सौ रुपये चुराने वाला
अपनी सज़ा के इंतज़ार में
वर्षों जेल में सड़ता रहा
मैंने एक अवयस्क बलात्कारी को
हत्या करने के बाद इत्मीनान से
सुधारगृह जाते हुए देखा है
मैं क़ानून की क़ैदी हूँ ।
स्टोव हों या कि
बदले जमाने के गैस चूल्हे
बस बहू का आँचल थामते हैं
'न' सुनकर जगे पुरुषत्व के
नाखूनों से रिसते तेज़ाब से…
Added by Tanuja Upreti on July 15, 2016 at 3:30pm — 6 Comments
Added by रामबली गुप्ता on July 15, 2016 at 11:14am — 4 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on July 15, 2016 at 10:15am — 12 Comments
कल से आगे .........
महाराज दशरथ राजसभा की औपचारिक परम्परा के बाद सभा कक्ष में बैठे हुये थे। सभा में कुछ नहीं हुआ था, बस सबने देवर्षि द्वारा किये गये भविष्य कथन पर हर्ष व्यक्त किया था, सदैव की भांति चाटुकारिता की थी। इसी में बहुत समय व्यतीत हो गया था। सारे सभासद यह दर्शाना चाहते थे कि वे ही सबसे अधिक शुभेच्छु है महाराज के, वे ही सबसे बड़े स्वामिभक्त हैं। यह किस्सा नित्य का था। चाटुकारिता सभासदों की नसों में लहू से अधिक बहती थी। महाराज भी इससे परिचित थे किंतु उन्हें इसमें आनन्द…
Added by Sulabh Agnihotri on July 15, 2016 at 8:58am — 1 Comment
2222 2222 2222 222
पीछे मुड़कर जब भी देखा मौन खड़ा साकार मिला ।।
इसकी आँहें उसके आँसू बिखरा बिखरा प्यार मिला ।।(1)
मतलब की इस दुनियाँ में सब यार मिले हैं मतलब के,
मतलब से है मतलब सबको मतलब का मनुहार मिला ।।(2)
झूम रहीं नफ़रत की फसलें बीज सभी ने बोये हैं,
अपनों के सीनों पर चलता अपनों का हथियार मिला ।।(3)
खून खराबा देख रहा वह अपनी अनुपम दुनियाँ में,
सबकी किस्मत लिखने वाला आज स्वयं लाचार मिला ।।(4)
अज़ब निराले खेल यहाँ के…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on July 15, 2016 at 2:30am — 6 Comments
तुम मुझसे मिलने जरूर आओगी
जैसे धरती से मिलने आती है बारिश
जैसे सागर से मिलने आती है नदी
मिलकर मुझमें खो जाओगी
जैसे धरती में खो जाती है बारिश
जैसे सागर में खो जाती है नदी
मैं हमेशा अपनी बाहें फैलाये तुम्हारी प्रतीक्षा करूँगा
जैसे धरती करती है बारिश की
जैसे सागर करता है नदी की
तुमको मेरे पास आने से
कोई ताकत नहीं रोक पाएगी
जैसे अपनी तमाम ताकत और कोशिशों के बावज़ूद
सूरज नहीं रोक पाता…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 14, 2016 at 2:00pm — 6 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 14, 2016 at 12:00pm — 6 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 14, 2016 at 11:17am — 10 Comments
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