किसी की जां पे बन आई, किसी को खेल कोरोना
नहीं मुश्किल, बहुत आसान अपने 'हाथ ही धोना'
कि छोटी-छोटी बातों को रखो तुम ध्यान में अपने
रहेगा दूर फिर हमसे विदेशी रोग का रोना
चलो छोड़ो गले मिलना,'नमस्ते' ही को अपनाओ
बढ़ाओ अपनी क्षमता और 'शाकाहार' ही खाओ…
Added by Poonam Matia on March 15, 2020 at 1:00am — 5 Comments
"मैं आ रही हूँ माँ..."
कितनी बार कहा था माँ ने "बेटा! बस एक बार तुम ग्रेजुएट हो जाओ फिर जहाँ भी किस्मत आजमाना चाहोगी तुम्हें रोकूँगी नही। ये पूरा का पूरा आकाश तुम्हारा हैं।" किंतु तब मैंने उनकी बातों को यूंही हवा में उड़ा दिया था।
संयुक्त परिवार में घर की सबसे खूबसूरत बेटी थी वह। बस! यही ज़रूर उसे ले डूबेगा कहाँ जानती थी। बारहवी के बाद ही अपनी रिश्तेदार के घर इस नगरी में आयी तो वापस लौटी ही नहीं कभी। माँ समझा-बुझाकर ले जाने आई थी उसे तब उन्हें…
ContinueAdded by नयना(आरती)कानिटकर on March 14, 2020 at 4:00pm — 1 Comment
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 14, 2020 at 1:00am — 2 Comments
होरी खेलत कृष्ण मुरारी
वृज बीथिन्ह मँह , अजिर , अटारी
होरी खेलत कृष्ण मुरारी
अबिर , गुलाल मलैं गोपियन कै
लुकैं छिपैं वृज की सब नारी
ढूँढि - ढूँढि रंग - कुंकुम मारैं
घूमि - घूमि गोपी दैं गारी
श्याम सामने रोष दिखावहिं
पाछे मुसकावहिं सब ठाढ़ी
होरी खेलत कृष्ण मुरारी
चिहुँक - चिहुँक राधा पग धारहिं
श्याम पकरि चुनरी रंग डारहिं
विद्युत चाल चपल मनुहारी
लपक - झपक कीन्ही…
ContinueAdded by Usha Awasthi on March 13, 2020 at 1:30pm — 4 Comments
(1222 1222 1222 1222 )
.
किसी भी रहरवाँ को जुस्तजू होती है मंज़िल की
सफ़ीनों को मुसल्सल खोज रहती है जूँ साहिल की
**
न करना तोड़ने की कोशिश-ए-नाकाम इस दिल को
बड़ी मज़बूत दीवारें सनम हैं शीशा-ए-दिल की
**
किया तीर-ए-नज़र से वस्ल की शब में हमें बिस्मिल
नहीं मालूम क्या है आरज़ू इस बार क़ातिल की
**
सियाही पोतने से रोशनी का रंग नामुमकिन
बनाएगी तुम्हें बातिल ही संगत रोज़ बातिल*…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 11, 2020 at 4:00pm — 2 Comments
बहरे मुतक़ारिब मुसम्मन मक़बूज़ अस्लम
121 22 121 22
फ़रेब-ओ-धोका है ये अदालत
करेगा तू क्या मिरी वकालत [1]
रसूल कितने ही आ चुके पर
गई न इंसान की जहालत [2]
सनम रिझाएँ ख़ुदा मनाएँ
है गू-मगू की ये अपनी हालत [3]
जो मुड़ गया राह-ए-इश्क़ से तो
रहेगी ता-उम्र फिर ख़जालत [4]
किसे फ़राग़त जो दे तवज्जो
दिखाइएगा किसे बसालत [5]
है मुख़्तसर मेरी गुफ़्तगू पर
है ग़ौर और फ़िक्र में तवालत…
Added by रवि भसीन 'शाहिद' on March 10, 2020 at 5:30pm — 5 Comments
"अपनी पैरों से रौंदें, दूजी जो भा जाये!"
"घर की मुर्ग़ी दाल बराबर; नयी पीढ़ी को कौन समझाये!"
अपनापन त्याग कर ख़ुदग़र्ज़ी, मनमर्ज़ी, दोगलापन, पागलपन, बचकानापन दिखाती अपने मुल्क की नई पीढ़ी की सोच और पलायन-गतिविधियों पर दो बुजुर्गों ने अपनी-अपनी राय यूं ज़ाहिर की।
"... 'ओल्ड इज़ गोल्ड' कहावत को छोड़ो जी; ओल्ड इज़ सोल्ड! नई पीढ़ी है सो बोल्ड! उन्हें ज़मीनी स्टोरीज़ टोल्ड हों या अनटोल्ड! हम बुड्ढे तो हुए क्लीन-बोल्ड!" उनमें से एक ने दूसरे से कहा, लेकिन ख़ुद के…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 10, 2020 at 2:34pm — 4 Comments
२२२२/२२२२/२२२२/२२२
***
आओ नाचें, झूमें, गायें फिर से अब के होली में
इक-दूजे को खूब लुभायें फिर से अब के होली में।१।
**
देख के जिसको मन ललचाये ज़न्नत के वाशिन्दों का
रंगों के घन खूब उड़ायें फिर से अब के होली में।२।
**
जीवन में रंगत हो सब के संदेश हमें देे होली
रोते जन को यार हँसायें फिर से अब के होली में।३।
**
आग सियासत चाहे कितनी यार लगाये नफरत की
प्रेम…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 10, 2020 at 7:30am — 8 Comments
बह्र मुतक़ारिब असरम मक़्बूज़ महज़ूफ़ 16-रुक्नी
(बह्र-ए-मीर)
2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2
छुपे हैं जाने कितने क़िस्से होली के इन रंगों में
प्यार मुहब्बत यारी रिश्ते होली के इन रंगों में
बच्चों की अठखेली इनमें और दुआएँ पुरखों की
जवाँ दिलों के ख़्वाब मचलते होली के इन रंगों में
नीला सब्ज़ गुलाबी पीला लाल फ़िरोज़ी नारंगी
जीवन के सब रंग झलकते होली के इन रंगों में
सदा मनाते आए होली मिल कर सब हिंदुस्तानी…
Added by रवि भसीन 'शाहिद' on March 10, 2020 at 12:00am — 4 Comments
ग़ज़ल ( 221 2121 1221 212 )
महसूस होता क्या उसे दर्द-ए-जिगर नहीं
या दर्द मेरा कम है कि जो पुर-असर नहीं
**
महलों में रहने वाले ही क्या सिर्फ़ हैं बशर
फुटपाथ पर जो सो रहे वो क्या बशर नहीं
**
साक़ी सुबू उड़ेल दे है तिश्नगी बहुत
ये प्यास दूर कर सके पैमाना-भर नहीं
**
इंसान सब्र रख ज़रा ग़म की भले है शब
किस रात की बता हुई अब तक सहर नहीं
**
या रब ग़रीब का हुआ…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 9, 2020 at 11:30pm — 5 Comments
सम्मोहन
सम्मोहन !
जानता था मन, शायद न लौटेंगे हम
वह प्रथम-मिलन की वेला ही होगी
शायद हमारा अंतिम मिलन
अंतिम मुग्ध आलिंगन
उस परस्पर-गुँथन में थी लहराती
चिन्तनशील यह उलझन गहरी
जी में फिर भी था अतुल उत्साह
कि रहेंगे जहाँ भी, खुले रहेंगे हमारे
सुन्दरतम मन-मंदिर के वातायन
खुले रहेंगे पूरम्पूर परस्पर प्राणों के द्वार
कि तड़पती भागती दिशाओं के पार भी
अजाने…
ContinueAdded by vijay nikore on March 8, 2020 at 12:30am — 6 Comments
सौन्दर्य-अनुभूति
नई जगह नई हवा नया आकाश
न जाने कितने बँधनों को तोड़
अनेक बाहरी दबावों को ठेल
सैकड़ों मीलों की दूरी को तय कर
मुझसे मिलने तुम्हारा चले आना
मानसिक प्रष्ठभूमि में होगी ज़रूर
पावन स्नेह के प्रति तुम्हारी साधना
और इस प्रष्ठभूमि में तुमसे मिलना
था मेरे लिए भी उस स्वर्णिम क्षण
सौन्दर्य का आकर्षण
हमारा वह प्रथम मिलन
सुखद सरल भाव-विनिमय
खुल गए थे…
ContinueAdded by vijay nikore on March 7, 2020 at 5:46am — 2 Comments
होली के दोहे :
नटखट नैनों ने किया, कुछ ऐसा हुड़दंग।
नार नशा हावी हुआ, फीकी लगती भंग।।१
साजन लेकर हाथ में, आये आज गुलाल।
बाहुबंध में शर्म से, लाल हो गए गाल।। २
अधरों पर है खेलती, एक मधुर मुस्कान।
तन पर रंगों ने रची, रिश्तों की पहचान।। ३
होली के त्योहार पर ,इतना रखना ध्यान।
नारी का अक्षत रहे ,रंगों में सम्मान।।४
गौर वर्ण पर रंग ने, ऐसा किया धमाल।
नैनों नें की मसखरी, गाल हो गए लाल।।…
Added by Sushil Sarna on March 6, 2020 at 5:08pm — 4 Comments
तीन क्षणिकाएँ ...
एक: पन्ने
कुछ पन्ने
अलग करने योग्य
जुड़ने चाहिए
बच्चों की कापियों में
ताकि ...
वो खेल सकें
राजा-मंत्री, चोर-सिपाही
उड़ा सकें
हवाई जहाज
चला सकें
कागज की नाव
बिना डर,
बगैर किसी
असुविधा के ।
***
दो : कोना
बचाकर रखता हूँ
एक छोटा-सा कोना
अपने दिल में ...
जब होता…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 6, 2020 at 8:39am — 4 Comments
२२१/२१२२/२२१/२१२२
*
फूलों की क्या जरूरत उपवन में आदमी को
भाने लगे हैं काँटे जीवन में आदमी को।१।
**
क्या क्या मिला हो चाहे मन्थन में आदमी को
विष की तलब रही पर जीवन में आदमी को।२।
**
आजाद जब है रहता उत्पात करता बेढब
लगता है खूब अच्छा बन्धन में आदमी को।३।
**
आता बुढ़ापा जब है रूहों की करता चिन्ता
तन की ही भूख केवल यौवन में आदमी को।४।
**
कितना हरेगा विष ये चाहे पता नहीं पर
रक्खो भुजंग जैसा चन्दन में आदमी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 5, 2020 at 4:21pm — 2 Comments
उफ्फ !! ये सब्जी वाले भी न, बड़ा हल्ला करते हैं । साहित्यिक एवं सामाजिक संस्था के राष्ट्रीय सचिव खान साहब ने संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री गुप्ता से कहा ।
"वो सब छोड़िए खान साहब, ये बताइये कि कितने कवियों और कवयित्रियों की अंतिम सूची बनी जिन्हें सम्मानित करने का प्रस्ताव है ?"
"जी गुप्ता साहब, आपके निदेशानुसार 25 कवियों और 125 कवयित्रियों की सूची तैयार कर ली गयी है, किंतु एक बात समझ नही आयी कि इनमें से अधिकतर तो कोई स्तरीय साहित्यकार भी नही हैं, फिर क्यों आपने उन्हें साहित्य और…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 5, 2020 at 9:30am — 14 Comments
1222×4
किसी की याद में ज़ख्मों को दिल मे पालते रहना,
तबाही का ही रस्ता है यूँ शोलों पर खड़े रहना।
न जाने कौन से पल में कलम गिर जाए हाथों से,
मगर तुम आखिरी पल तक ग़ज़ल के सामने रहना।
जहाँ पर शाम ढलती है वहाँ पर देखकर सोचा,
मेरी यादों में रहकर तुम यूँ ही मेरे बने रहना।
वो आएं या न आएं ये तो उनकी मर्जी है लेकिन,
मुहब्बत की है तो बस रास्ते को देखते रहना।
किसी सूरत भी मेरा दिल बहल सकता नहीं फिर…
ContinueAdded by मनोज अहसास on March 4, 2020 at 11:00pm — 1 Comment
ज़बान :
बड़ी अजीब है ये दुनिया
जाने कितने ताले लगाए फिरती है
अपनी ज़बान पर
खूनी मंज़र चुपचाप सह जाती है
हकीकत में किसी के पास
वो ज़बान ही नहीं
जो सच को बयाँ कर सके
इसीलिये अक्सर लोग
रूहानी आवाज़ को
अपने अंदर ही दफ़्न कर लेते हैं
घोंट देते हैं अहसासों का गला
और छटपटाने देते हैं
वेदना की व्याकुलता को
किसी परकटे पंछी की तरह
अंदर ही अंदर
रूहानी परतों के…
ContinueAdded by Sushil Sarna on March 4, 2020 at 7:42pm — 2 Comments
जो दुनिया से तन्हा लड़कर प्यार बचाया करते हैं
वो ही सच्चे अर्थों में सन्सार बचाया करते हैं।१।
**
उन लोगों से ही तो कायम हर शय की ये रंगत है
जो पत्थर दिल दुनिया में जलधार बचाया करते हैं।२।
**
तुम तो अपने सुख की खातिर खून को पानी करते हो
हम राख की ढेरी में देखो अंगार बचाया करते हैं।३।
**
जो कहते हैं हम तो डूबे प्यार के रंगो में…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 4, 2020 at 7:30am — 5 Comments
समूची धरा बिन ये अंबर अधूरा है
ये जो है लड़की
हैं उसकी जो आँखे
हैं उनमें जो सपने
जागे से सपने
भागे से सपने…
Added by amita tiwari on March 4, 2020 at 1:07am — 2 Comments
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