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होरी खेलत कृष्ण मुरारी

वृज बीथिन्ह मँह , अजिर , अटारी

होरी खेलत कृष्ण मुरारी

अबिर , गुलाल मलैं गोपियन कै

लुकैं छिपैं वृज की सब नारी

ढूँढि - ढूँढि रंग - कुंकुम मारैं

घूमि - घूमि गोपी दैं गारी

श्याम सामने रोष दिखावहिं

पाछे मुसकावहिं सब ठाढ़ी

होरी खेलत कृष्ण मुरारी

चिहुँक - चिहुँक राधा पग धारहिं

श्याम पकरि चुनरी रंग डारहिं

विद्युत चाल चपल मनुहारी

लपक - झपक कीन्ही रतनारी

उरझहिं , हँसहिं मारि दै तारी

खूब खिजावहिं राधा प्यारी

होरी खेलत कृष्ण मुरारी

पिचकारी मारैं , रंग गाढ़े

गोप , गोपियाँ देखहिं ठाढ़े

श्याम रंग राधा रंग डारी

जुगुल जोरि लागै अति प्यारी

बरसहिं फूल गगन से भारी

जँह तँह ठिठकि रहे हुरियारी

होरी खेलत कृष्ण मुरारी

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Comment by Usha Awasthi on March 17, 2020 at 5:40pm

र्दिक आभार आपका

Comment by vijay nikore on March 17, 2020 at 3:06pm

रचना अच्छी लगी। बधाई, मित्र ऊषा जी

Comment by Usha Awasthi on March 15, 2020 at 11:05pm

हार्दिक धन्यवाद

Comment by Samar kabeer on March 15, 2020 at 11:46am

मुहतरमा ऊषा अवस्थी जी आदाब, अच्छी रचना हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

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