न किसी खाप न किसी मौलवी से होगा
हमारे इश्क का फैसला तो हमीं से होगा
ये कह कर ठुकरा गया वो आसमाँ मुझे
हमारा वास्ता ही क्या तेरी जमीं से होगा
यूं दुआ को न तरस, यूं दवा को न ढूंढ
ज़ख्म इश्क ने दिया, ठीक शायरी से होगा
बेफिकर घूमता है, इश्क से अनछुआ
मुखातिब वो भी तो कभी दिल्लगी से होगा
यूं भी जिन्दगी किसी से बेताल्लुक नहीं होती
तेरा मिलना ही जरुर बुजदिली से होगा
मेरी ग़ुरबत पे कर कुछ निगाह कुछ करम
ये अंधेरों का मसला हल रौशनी से…
Added by Pushyamitra Upadhyay on December 5, 2012 at 7:06pm — 5 Comments
कर्ण और राम दो मित्र थे l राम एक व्यापारी बन गया लेकिन कर्ण अभी भी बेरोजगार था जिसकी वजह से उसकी घर की हालत ठीक नहीं थी l समय समय पर राम भी अपने मित्र की मदद कर देता था कुछ समय तक ऐसे ही चलता रहा l और एक दिन कर्ण को एक अच्छी नौकरी मिल गई जिस कारण घर में किसी वस्तु की कमी नही रह गई थी और धीरे धीरे धन की समस्या भी समाप्त होने लगी थी l इस कारण अब वह अपनी जिंदगी सही से और शांति की जिन्दगी जी रहा था l व्यापार मैं व्यस्त होने की वजह से राम और कर्ण एक दुसरे से मिल नहीं पाए…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on December 5, 2012 at 5:01pm — 7 Comments
आज नहीं स्पंदन तन में
क्षुधा-उदर भी रीते है
स्निग्ध शुभ्र वह प्रभा विमल
मुझको खूब सुभीते हैं
देह झरी अवसाद झरे
व्यथा-कथा के स्वाद झरे
किरण-किरण से घुली मिली
Added by राजेश 'मृदु' on December 5, 2012 at 4:43pm — 7 Comments
कार में बैठे शराबी चुस्कियाँ लेने लगे
तब भिखारी भी शहर के आशियाँ लेने लगे
रूठना आता नहीं है पर दिखावा कर लिया
रूठने के बाद हम ही सिसकियाँ लेने लगे
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on December 5, 2012 at 4:38pm — 13 Comments
रेत में जैसे निशां खो गए
हमसे तुम ऐसे जुदा हो गए
रात आँखें ताकती ही रहीं
मेहमां जाने कहाँ सो गए
सौंप दी थी रहनुमाई जिन्हें
छोड़कर मझधार में खो गए…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on December 5, 2012 at 4:30pm — 11 Comments
जानती हूँ
या कहो
बखूबी समझती हूँ
तुम्हारे चुपचाप रहने का सबब
हमारे बीच समझ का
जो अनकहा पुल है
कभी सच्चा लगता है और
कभी दिवास्वप्न सा
दुविधा की कई बातें हैं
जज्बातों की कई सौगाते भी हैं
जो अकेले बैठ के
अपने मन मंदिर में
कोमल अहसासों से पिरोयें हैं
साझा करने को कभी
पुल के इस पार तो आओ
दो बातें तो कर जाओ
जानती हूँ तुम्हें
या नहीं जानती की
उलझन तो सुलझा जाओ
Added by MAHIMA SHREE on December 5, 2012 at 4:22pm — 22 Comments
Added by अरुन 'अनन्त' on December 5, 2012 at 3:06pm — 16 Comments
मंदार माला सवैया :-
=================
राजा वही जॊ प्रजा कॊ दुखी दीन, संताप हॊनॆ न दॆता कभी !!
बाजी लगा दॆ सदा जान की आन,ईमान खॊनॆ न दॆता कभी !!
आनॆ लगॆं आँधियाँ राज मॆं आँख,आँसू भिगॊनॆ न दॆता कभी…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 5, 2012 at 12:00pm — 12 Comments
मत्तगयंद सवैया :-
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आज हुयॆ मतदान सभी चुनि, बैठ गयॆ चढ़ि आसन चॊटी,
भारत कॆ यह राज-मणी सब, फ़ॆंक रहॆ अब खॊटम खॊटी,
नागिन सी फ़ुँफ़कार भरॆं सब, छीनत हैं जनता कइ रॊटी,…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 5, 2012 at 10:00am — 10 Comments
Added by MARKAND DAVE. on December 5, 2012 at 10:00am — 2 Comments
जो सोने की चिड़िया था सो रहा है
जिसे रोना ना चाहिये वो रो रहा है l
इस दुनिया का है कुछ अजब कायदा
अब लोगों को जाने क्या हो रहा है l
नये जमाने में खो गयी सादगी कहीं
बस बोझ जीने का इंसान ढो रहा है l
मन में खोट और रिश्तों में है चुभन
यहाँ अपना ही अपनों को खो रहा है l
जहाँ उगे कभी मोहब्बत के थे शजर
वहाँ काँटों का जंगल अब हो रहा है l
कितनी गंगा हुई मैली जानते सभी
पर उसमें…
ContinueAdded by Shanno Aggarwal on December 5, 2012 at 3:57am — 3 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 4, 2012 at 7:00pm — 13 Comments
महाभुजंगप्रयात सवैया :-
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नहीं रास आईं वफ़ायॆं किसीकॊ, अनॆकॊं चलॆ हैं उसी राह राही !!
किनारॆ खड़ॆ दॆखतॆ हैं तमाशा,हमारी वफ़ा का सिला यॆ तबाही !!
पुकारा कई बार था नाम लॆकॆ,खुदाकी…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 4, 2012 at 2:00pm — 4 Comments
"आज के अखबार में प्रतियोगी परीक्षा का परिणाम निकला है" जैसे ही हौस्टल में यह बात देवारती को पता चली, बेतहाशा दौड़ पड़ी लाईब्रेरी की ओर, अखबार उठा सारे रोलनंबर देखे, हर पंक्ति ऊपर से नीचे, दाएं से बाएँ, एक बार, दो बार, बार बार, पर उसका तो रोल नंबर ही नहीं था. उसके पैरों तले तो जैसे ज़मीन ही खिसक गयी. अपनी आखों पर यकीन नहीं हुआ, बुझे मन से भारी क़दमों से बाजार जा कर फिर से अखबार खरीदा, एक एक रोल नंबर पेन से काटा, कहीं उलट पलट जगह न छप गया हो. एक घंटा बीत गया, पर नहीं मिला उसका नंबर,…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on December 4, 2012 at 12:30pm — 15 Comments
थकी हुयी शतरंज का, मैं पिटा हुआ इक दांव हो गया
Added by ajay sharma on December 3, 2012 at 10:30pm — 1 Comment
पेट के कहने में फिर हम आ गए
पीठ पे ढ़ोने शहर , हम आ गए
माँ ,बहन , भाई , पिता रिश्तें सभी
छोड़ कर गाँव का घर हम आ गए -----------------
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ऑफिस का रिक्शा पापा का और मदिर वो घंटा - घंटी
अम्मा की हर बात रटी थी हमको बरसों पंक्ति पंक्ति …
Added by ajay sharma on December 3, 2012 at 9:30pm — 1 Comment
काम से तो रोज घूमे काम बिन भी घूम बन्दे |
नाम में कुछ ना धरा गुमनाम होकर झूम बन्दे ||
बेवजह ही बेसबब भी दूर तक बेफिक्र टहलो -
कुछ करो या ना करो हर ठाँव को ले चूम बन्दे ।|
बेवफा है जिंदगी इसको नहीं ज्यादा पढो अब -
दर्शनों में आजकल मचती रही यह धूम बन्दे ।|
दे उड़ा…
ContinueAdded by रविकर on December 3, 2012 at 8:54pm — 2 Comments
चारो ओर, खड़े है सैनिक
युद्ध में जीत दिलाने को
शोक करुणा से, अभिभूत है अर्जुन
देख, रक्त सम्बन्धी रिश्तेदारों को
खड़े हुए है अब कृष्णा
उसे शोक से मुक्त कराने को
देहान्तरं की प्रक्रिया कैसी
संक्षेप में ये समझाने को
अजर अमर है जीवात्मा
स्मरण रखना इस ज्ञान को
खड़ा हो जा धनुष उठा
अपना धर्म निभाने को
मरे हुओ को मार डालना
जग में नाम कराने को
अपने पराये से मुहँ मोड़ लो
पाप पुण्य की चिंता…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on December 3, 2012 at 5:42pm — 3 Comments
उस बस में जगह की वैसी ही किल्लत थी, जैसी मुंबई में पानी की है ! पर ये किल्लत मेरे पहुँचने के बाद हुई, इसलिए मुझे सीट मिल गई थी, और मै बैठा था ! अगला स्टॉपेज आया, यहाँ पर्याप्त लोग उतर गए, कुछ चढ़े भी, पर उतरने की मात्रा ज्यादा थी ! इसलिए अब बस में कुछ हल्कापन था ! बस में चढ़ने वालों में एक लड़की भी थी, जोकि मेरे पास आकर बोली, “थोड़ी जगह मिलेगी?” मै अपनी जगह से जरा सा खिसककर उसको जगह दिया ! उस लड़की के तत्काल बाद, याकि उसके पीछे ही एक लड़का भी बस में चढ़ा, उस लड़के के विषय में मुझे अजीब बात ये लगी…
ContinueAdded by पीयूष द्विवेदी भारत on December 3, 2012 at 11:00am — 13 Comments
तमाम उम्र भी ये बात हो नहीं सकती,
हमारी फिर से मुलाकात हो नहीं सकती।
हर एक ख्वाब की ताबीर मिल सके हमको,
कोई भी ऐसी करामात हो नहीं सकती।
गुरूब हो चुका मेरे नसीब का सूरज,
अब और नूर की बरसात हो नहीं सकती।
मैं रात हूँ मुझे सूरज मिले भला कैसे,
हो शम्स पास तो फिर रात हो नहीं सकती।
बजाय हमको मनाने के कह गये है वो,
के छोडो हमसे इल्तजात हो नहीं सकती।
कोई गुनाह बहुत ही कबीर है मेरा,
कबूल जिसकी मुनाजात हो नहीं…
Added by इमरान खान on December 2, 2012 at 10:30pm — 19 Comments
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