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जो सोने की चिड़िया था सो रहा है

जिसे रोना ना चाहिये वो रो रहा है l

इस दुनिया का है कुछ अजब कायदा 

अब लोगों को जाने क्या हो रहा है l

नये जमाने में खो गयी सादगी कहीं 

बस बोझ जीने का इंसान ढो रहा है l

मन में खोट और रिश्तों में है चुभन    

यहाँ अपना ही अपनों को खो रहा है l

जहाँ उगे कभी मोहब्बत के थे शजर 

वहाँ काँटों का जंगल अब हो रहा है l

कितनी गंगा हुई मैली जानते सभी   

पर उसमें पापों को इंसा धो रहा है l 

-शन्नो अग्रवाल 

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Comment

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Comment by Shanno Aggarwal on December 17, 2012 at 3:42am

अशोक जी, रचना पसंद करने के लिये आपका बहुत धन्यबाद. 

और ''जो सोने की चिड़िया था'' यानि भारत. तो इसके संग 'थी' नहीं लगा सकती....'था' ही चलेगा. है ना ? :) 

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 16, 2012 at 10:19pm

इस दुनिया का है कुछ अजब कायदा 

अब लोगों को जाने क्या हो रहा है l

नये जमाने में खो गयी सादगी कहीं 

बस बोझ जीने का इंसान ढो रहा है l

सादर, बहुत सुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकारें आदरेया शन्नो अग्रवाल जी.मगर क्षमा करें मुझे प्रथम पंक्ति में चिड़िया के साथ "था"  शब्द कुछ ठीक प्रतीत नहीं हो रहा है. कृपया अन्यथा ना लें.सादर. 

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 6, 2012 at 11:58am

गज़ब की प्रस्तुति है आदरेया हार्दिक बधाई स्वीकारें

कृपया ध्यान दे...

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