For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीता के १८ अध्याय

 

चारो ओर, खड़े है सैनिक

युद्ध में जीत दिलाने को

शोक करुणा से, अभिभूत है अर्जुन

देख, रक्त सम्बन्धी रिश्तेदारों को

खड़े हुए है अब कृष्णा

उसे शोक से मुक्त कराने को

देहान्तरं  की प्रक्रिया कैसी

संक्षेप में ये समझाने को

अजर अमर है जीवात्मा

स्मरण रखना इस ज्ञान को

खड़ा हो जा धनुष उठा

अपना धर्म निभाने को

मरे हुओ को मार डालना

जग में नाम कराने को

अपने पराये से मुहँ मोड़ लो

पाप पुण्य की चिंता छोड़

कर्म अकर्म को अपर्ण कर दो

मुझ अन्तर्यामी परमेश्वर को

निष्काम सेवा में, ध्यान लगा दो

स्वरुप सिद्दि पाने को

भौतिक जगत में आता प्राणी

कर्म बंधन से मुक्त हो जाने को

गुरु शरण में अभी चला जा

दिव्य ज्ञान की जोत जगाने को

कर्म योग का मार्ग अपना लो

इस जग से शीघ्र  तर जाने को

जीव होता जग में हरदम

जन्म मरण से मुक्ति पाने को

कोई भी लो तुम मार्ग अपना

मुझ प्रेमश्वर को पाने को

कर्मफलो का परित्याग करो तुम

उत्तरदायित्व अपने निभाने को

भागने से ना मुक्ति होगी

याद रखना इस तथ्य को

पूजा जप ताप यघ भी करना

भक्ति रस में, खो जाने को

इन्दिर्यों को अपनी, नियंत्रित करना

परमात्मा में लीन, हो जाने को

सब कुछ अपना अपर्ण कर दो

मुझ अन्तर्यामी परमेश्वर को

अर्जुन से फिर बोले भगवान

परमसत्य को अब तू जान

भक्ति का मार्ग बड़ा महान

सांख्य योग करो, चाहे ध्यान 

पर भक्ति से मिलते भगवान

जीवनभर करना, कोई भी काम

क्षणभर भी ना, भूलो भगवान

आजीवन स्मरण करने से

अंतत मिले परमधाम

इर्षा दुवेष को दे तू त्याग

गूढ़ ज्ञान दू तू तुझको आज

जिसमे भक्ति ना हो

ना मुझमे विस्वास

उसको मृत तू क्षण में जान

मुझसे उत्त्पन्न ये संसार

समस्त ब्रमांड का मैं भगवान

मैं अजन्मा मैं अनादि

कण कण मैं ही विधमान

निरंतर मुझ में चित लगा

तेरा कर दूंगा उद्धार

मैं शेष हूँ मैं महेश हूँ

मैं ही ब्रमांड का हूँ प्रकाश

शस्त्रधारियों मैं ही राम

हर जीव की मैं हूँ स्वास

विराट रूप जो मेरा देखो

विधमान इसमें ब्रमांड देखो

पातळ धरती और ये आकाश

मिलेंगा उपस्थित ये संसार

आदि ना अंत मिलेगा तुमको

क्योंकि मैं ही अनंत भगवान

जीवन अपना साकार कर

चित मुझ में एकार्ग कर

अविचलित भक्ति का अभ्यास कर

शंकाओ का परित्याग कर

मैं ही सबका मूल स्रोत

मुझमे नहीं है कोई भी दोष

दिव्य ज्ञान का खोलू द्वार

एकार्ग हो तू सुन ले आज

प्रक्रति के ये तीन गुण

सत रज और तमोगुण

इन गुणों से परे हो

भक्ति करो परमेश्वर की तुम

संसार है पीपल का वृक्ष

जड़ उपर और नीचे सर

कही ना आदि कही ना अंत

यही सत्य और शास्वत तत्व

जीव होते है क्षर अक्षर

जिनका पालनकर्ता है ईश्वर

यघ परायणता और वेदा अध्यन

दान अहिंसा और आत्मस्यंम

कहलाते ये दैविक गुण

दंभ दर्प और अभिमान

क्रोध कठोरता और अज्ञान

अपनाना ना ये आसुरी गुण

सत का तू पालन कर

सब कुछ मुजको अर्पण कर

ब्रमांड का केंद्र मैं

मैं ही सबका हूँ ईश्वर

Views: 915

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Deepak Sharma Kuluvi on December 4, 2012 at 3:36pm

good informative nice article

Comment by रविकर on December 4, 2012 at 10:54am

बहुत सुन्दर प्रस्तुति ।

आभार आदरणीय फूलसिंह जी ।।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 4, 2012 at 10:09am

फूल सिंह जी आपने तो साक्षात एक चित्र सा खींच दिया आँखों के सामने बहुत अच्छा लगा पढ़ कर बहुत बहुत बधाई आपको 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service