For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जानती हूँ
या कहो
बखूबी समझती हूँ
तुम्हारे चुपचाप रहने का सबब
हमारे बीच समझ का
जो अनकहा पुल है
कभी सच्चा लगता है और
कभी दिवास्वप्न सा
दुविधा की कई बातें हैं
जज्बातों की कई सौगाते भी हैं
जो अकेले बैठ के
अपने मन मंदिर में
कोमल अहसासों से पिरोयें हैं
साझा करने को कभी
पुल के इस पार तो आओ
दो बातें तो कर जाओ
जानती हूँ तुम्हें
या नहीं जानती की
उलझन तो सुलझा जाओ

Views: 763

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on August 3, 2013 at 8:26am

आदरणीया महिमाश्री जी, आपका स्वागत है! 

Comment by MAHIMA SHREE on August 2, 2013 at 10:49pm

आदरणीय राज नवादवी जी ..आपका हार्दिक आभार आपने रचना को समय /आपका  सूक्ष्म विश्लेषण चकित कर गया ... सादर, सहयोग बनाये रखे /

Comment by MAHIMA SHREE on August 2, 2013 at 10:43pm

आदरणीय अभिनव जी .आपका हार्दिक आभार .. आपने अपना कीमती समय रचना को दिया , पसंद किया लिखना सार्थक हुआ , सादर धन्यवाद /

Comment by राज़ नवादवी on August 2, 2013 at 12:13am

साझा करने को कभी 
पुल के इस पार तो आओ
दो बातें तो कर जाओ 
जानती हूँ तुम्हें
या नहीं जानती की 
उलझन तो सुलझा जाओ

- बहुत खूब, प्रेम की पीड़ा और व्यथा का कोई साथी नहीं! मैंने अभी आपकी लेखनी को बहुत पढ़ा नहीं, मगर मुझे लगता है कि आपकी लेखनी में वैयक्तिक आत्मनिष्ठता या आत्मपरकता का आर्तनाद कहीं न कहीं मुखर हो रहा है! जीवन जुड़ा होकर भी कितना कटा कटा है! 

Comment by Abhinav Arun on August 1, 2013 at 6:24pm

जज्बातों की कई सौगाते भी हैं
जो अकेले बैठ के 
अपने मन मंदिर में 
कोमल अहसासों से पिरोयें हैं 
साझा करने को कभी 
पुल के इस पार तो आओ

सुन्दर भावभूमि आदरणीया महिमा जी ..बहुत बधाई इस मधुर काव्य रचना के लिए !

Comment by MAHIMA SHREE on December 24, 2012 at 4:06pm

आदरणीय राजेश जी , आदरणीय विजय सर , आदरणीया प्राची जी ,आदरणीय लुन करन सर , आदरणीय जवाहर सर , आदरणीय सूरज जी , आदरणीय अशोक सर ,तथा आदरणीय प्रदीप सर  रचना को पसंद करने . सराहने और उत्साहवर्धन के लिए सभी गुणीजनो का  ह्रदय की  गहराइयों से आभार व्यक्त करती हूँ / आपका सब का स्नेह मेरे लिए अमुल्य है /  स्नेह बनाएं रखे /सादर   

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 23, 2012 at 8:20pm

साझा करने को कभी 
पुल के इस पार तो आओ
दो बातें तो कर जाओ 
जानती हूँ तुम्हें
या नहीं जानती की 
उलझन तो सुलझा जाओ

एक विनम्र अनुरोध 

बधाई,

स्नेही महिमा जी 

सादर 

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 16, 2012 at 10:38pm

बहुत सुन्दर भावों पर उलझाती इस रचना 'उलझन' पर सादर  बधाई स्वीकारें  महिमा श्री जी.  

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on December 11, 2012 at 4:51pm

महिमा जी नमस्कार !

मानवीय सम्बन्धों के बीच संवाद हीनता बहुत दुखदाई होती  है...अगर दोनों के बीच संवादहीनता की खाई है तो पुल की जरूरत तो पड़ेगी ही...बहुत सुंदर एवं संवेदनशील रचना। बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें !

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 11, 2012 at 5:06am

आत्मीय संबंधों में संवाद की जरूरत ही नहीं होती...एक सुकून भरी खामोशी, अनकहा वायदा,  एकत्व का एहसास....

पर भौतिकता की तरफ दृष्टि होते ही, एक दुविधा, की यह एहसास सत्य है या भ्रम...

और इस उलझन को सुलझाने के लिए शब्दिकता की आवश्यकता..

इन सुन्दर भावों को अभिव्यक्ति में बहुत खूबसूरती से पिरोया है प्रिय महिमा जी,

हार्दिक बधाई..

मंच पर आपकी जुगनू सी चमक के दीप बनने की मंगल कामनाएं. सस्नेह.

महिमा बहन, मैं डॉ प्राची द्वारा किये गए उद्गार में सहमती ब्यक्त करता हूँ!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Friday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service