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December 2014 Blog Posts (179)

गज़ल ~ बडा मासूम सा एहसास

1222 1222 1222 1222



बडा मासूम सा एहसास तेरी दोस्ती का है ।

मुकद्दर ने दिया तोहफा मुझे ये जिन्दगी का है ।



हो जन्मोँ का कोई बिछडा हुआ साथी मिला जैसे ,

न पूछो कौन सा मंजर मेरे दिल मेँ खुशी का है ।



हजारोँ लोगोँ से मिलकर लगा यूँ देख ली दुनिया ,

मगर कहता रहा दिल इंतजार अब भी किसी का है ।



कहीँ खोया सा रहता हूँ जगा सोया सा रहता हूँ ,

असर ये हो न हो , बेशक , तेरी जादूगरी का है ।



मुहब्बत के नशेमन मेँ न जाने कौन सा रिश्ता… Continue

Added by Neeraj Nishchal on December 16, 2014 at 7:01am — 18 Comments

शीत के दुर्दिन का ढो रहे संत्रास , क्या करे क्या न करे फुटपाथ ||

शहरो के बीच बीच सड़कों के आसपास |

शीत के दुर्दिन का ढो रहे संत्रास , क्या करे क्या न करे फुटपाथ || 



सूरज की आँखों में कोहरे की चुभन रही 

धुप के पैरो में मेहंदी की थूपन रही 

शर्माती शाम आई छल गयी बाजारों को 

समझ गए रिक्शे भी भीड़ के इशारों को …

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Added by ajay sharma on December 15, 2014 at 11:10pm — 7 Comments

एक मुठ्ठी की भांति (तांका)

क्यों भूले तुम ?

अपनी मातृभाषा

माॅं का आॅंचल

कभी खोटा होता है ?

खोटी तेरी किस्मत ।



2.

दूर के ढोल

मधुर लगे बोल

नभ में सूर्य

धरातल से छोटा

बहुत सुहाना है ।



3.

आतंकवाद

धार्मिक कट्टरता

नही सीखाता

बाइबिल कुरान

हिन्द का गीता पुराण ।



4.

स्वीकार करें

दूसरो का सम्मान

क्यों थोपते हो ?

पंथ धर्म विचार

सभी खुद नेक हैं ।



5.

गरज रहा

आई.एस.आई.ई

सचेत रहे

हिन्दू मुस्लिम एक

एक…

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Added by रमेश कुमार चौहान on December 15, 2014 at 9:30pm — 7 Comments

मौसम भी नीर बहायेगा ………….

मौसम भी नीर बहायेगा …



भोर होते ही

चिड़ियों का कलरव

इक पीर जगा जाएगा

सांझ होते ही सूनेपन से

हृदय पिघल जाएगा

मुक्त- केशिनी का संबोधन

इक छुअन की याद दिलायेगा

बिना पिया के राह का हर पग

अब बोझिल हो जाएगा

निष्ठुर पवन का वेग भला

कैसे दीप सह पायेगा

रैन बनी अब हमदम तुम बिन

चिरवियोग तड़पायेगा

जाने जीवन के पतझड़ में

मधुमास कब आयेगा

अश्रु बूंदों से तब तक दिल का

स्मृति आँगन गीला हो जाएगा

प्राण प्रिय तुम प्राण…

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Added by Sushil Sarna on December 15, 2014 at 11:23am — 14 Comments

माँ होती तो ऐसा होता ,..................

माँ होती तो ऐसा होता

माँ होती तो वैसा होता

खुद खाने से पहले तुमने क्या कुछ खाया "पूछा " उसको 

जैसे बचपन में सोते थे उसकी गोद में बेफिक्री से 

कभी थकन से हारी माँ जब , तुमने कभी सुलाया उसको ?

पापा से कर चोरी जब - जब देती थी वो पैसे तुमको 

कभी लौट के उन पैसो का केवल ब्याज चुकाया होता

माँ तुम ही हो एक सहारा

तब तुम कहते अच्छा होता 

माँ होती तो ऐसा होता

माँ…

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Added by ajay sharma on December 14, 2014 at 11:12pm — 9 Comments

मैं हूँ बंदी बिन्दु परिधि का , तुम रेखा मनमानी I

मैं हूँ बंदी बिन्दु परिधि का , तुम रेखा मनमानी I 

मैं ठहरा पोखर का जल , तुम हो गंगा का पानी I I

मैं जीवन की कथा -व्यथा का नीरस सा गद्यांश कोई इक I 

तुम छंदों में लिखी गयी कविता का हो रूपांश कोई इक I 

मैं स्वांसों का निहित स्वार्थ हूँ , तुम हो जीवन की मानी I I…

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Added by ajay sharma on December 14, 2014 at 11:00pm — 14 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
बिन कहा समझते हैं कमाल है (ग़ज़ल 'राज')

212   122   212  12

बिन कहा  समझते हैं कमाल है

क्या से क्या समझते हैं कमाल है

 

मैं मना करूँ तो हाँ जो हाँ करूँ   

तो मना समझते हैं कमाल है

 

शर्म से निगाहें जो  झुकी मेरी  

वो अदा समझते हैं कमाल है

 

कद्र मैं करूँ जज्बात की जिसे     

वो वफ़ा समझते हैं कमाल है

 

 चूड़ियाँ बजें मेरी ये आदतन  

 वो सदा समझते हैं कमाल है

 

 झाँकते वो मेरी आँखों के निहाँ           

 आईना समझते हैं…

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Added by rajesh kumari on December 14, 2014 at 10:45am — 30 Comments

इण्डिया शब्द की व्युत्पत्ति -- डॉo विजय शंकर

देश-प्रेम से ओत-प्रोत लोगों में देश के लिए भावुक हो जाना स्वभाविक है। पर भावुकता के साथ साथ यथार्थ को यथावत स्वीकार कर लेना भी देशप्रेम ही है।

ओ बी ओ स्वर्ण जयंती महोत्सव में ' भारत बनाम इण्डिया ' के सन्दर्भ में इण्डिया शब्द की व्युत्पत्ति पर एक दृष्टि डाल लेना किंचित विसंगत न होगा।

सामान्यतः यह माना जाता है कि जीवन - दायनी गंगा ने इस देश की संस्कृति निर्माण में अपना अमूल्य योगदान दिया और सिंधु नदी ने इस देश को पाश्चात्य विश्व में एक पहचान दी और एक नाम दिया | सिंधु नदी भारत के… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on December 14, 2014 at 10:04am — 9 Comments

नवगीत

कोहरे के कागज़ पर

किरणों के गीत लिखें

आओ ना मीत लिखें

सहमी सहमी कलियाँ

सहमी सहमी शाखें

सहमें पत्तों की हैं

सहमी सहमी आँखें

सिहराते झोंकों के

मुरझाए

मौसम पर

फूलों की रीत लिखें

आओ ना मीत लिखें 

रातों के ढर्रों में

नीयत है चोरों की

खीसें में दौलत है

सांझों की भोरों की

छलिया अँधियारो से

घबराए,

नीड़ों पर

जुगनू की जीत लिखें

आओ ना मीत…

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Added by seema agrawal on December 13, 2014 at 9:30pm — 14 Comments

धर्म नीति के प्याले में है, दिखता बस जाला-जाला

कोई पढ़वाता नमाज है, कोई जपवाता माला।

भारत और इंडिया का, देखो यह है गड़बड़झाला।

धर्म, जाति, मक्कारी की, हाला उसने जो पी ली है।

मानवता को नोंच, नोंचकर, लगा रहा मुंह पर ताला।

राम, रहीम, मुहम्मद हमको मिले नहीं हैं अभी तलक।

धर्म नीति के प्याले में है, दिखता बस जाला-जाला।

भावों का जो घाव मिल रहा, कब तक उसे कुरेदोगे।

मंदिर कभी और मस्जिद में, कब तक मन को तोलोगे।

ईश्वर अल्ला नाम एक ही, बोलो क्यू हो भूल रहे।

धर्म तराजू से भारत की, संतानों को तोल रहे।

तेज सियासी…

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Added by Atul Chandra Awsathi *अतुल* on December 13, 2014 at 9:01pm — 3 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़लों का बिस्तर है (माहिया- क़िस्त दो)

22-22-22 / 22-22-2 / 22-22-22

-

ये नींद उड़ाते है,

ख़्वाब हसीं लेकिन,  

रातों को रुलाते है

 

नाचों फिर रो लेना,

कुछ शब बाकी है,

तारों फिर सो लेना

 

सरहद पे दुश्मन है,

सरहद आँखों में,

आँखों में सावन है

 

दो नैन हुए गीले,

बाप बिदाई दे,

लो हाथ हुए पीले

 

गंगा में नहा लेना,

माटी फूल बने,

गंगा…

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Added by मिथिलेश वामनकर on December 13, 2014 at 8:00pm — 6 Comments

मानसिकता (लघुकथा)

"हे भगवान, मुझे सारी उम्र हो गई आपकी पूजा-पाठ करते हुए और कितनी परीक्षा लोगे? अब तो मुझे दर्शन दीजिए और अपनी सेवा का एक मौका देकर मेरे जीवन को धन्य कीजिए मेरे प्रभु।"

भगवान अपने भक्त की अटूट भक्ति देखकर बहुत प्रसन्न हुए और उसकी अभिलाषा पूर्ण करने के लिए एक भिखारी का रूप धारण करके उसके द्वार पर पहुँच गए।

"बेटा, कल से भूखा हूँ कुछ जलपान करवा दो।"

"सुबह-सुबह तुमको मेरा ही घर मिला था जलपान के लिए! चल भाग यहाँ से वरना तुझ पर कुत्ता छोड़ दूँगा।"

भगवान मुस्कुराते हुए अपने धाम की…

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Added by विनोद खनगवाल on December 13, 2014 at 7:56pm — 4 Comments

ग़ज़ल " है नहीं अभिमान जिसमे "

जिंदगी में क्या कमी है !

हर ख़ुशी मेरी ख़ुशी है !!

है नहीं कोई हुनर तो !

जिंदगी किसकी सगी है !!

इल्म कोई है अगर तो !

नौकरी फिर आपकी है !!

आजकल फन का जमाना !

फेन बिना क्या आदमी है !!

हर कला को जानता वो !

इसलिए तो मतलबी है !!

तैरना तुम जानते हो !

साथ चल आगे नदी है !!

चाहिए क्या और मुझको !

जब खुदा में बंदगी है !!

है नहीं अभिमान मुझको !

जिंदगी में सादगी…

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Added by Alok Mittal on December 13, 2014 at 1:00pm — 12 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
दीप के हौसले याद आने लगे (बह्र-ए-मुत्दारिक -16 रुक्ऩी )

212  /  212 /  212 /  212  /  212 /  212 /  212 / 212

-

चाँद से रूठ के जब गई चाँदनी, कुर्बतो-फासले याद आने लगे 

जब हवा में नमी आज छाने लगी, दो नयन बावले याद आने लगे

 

वो अमरबेल तो पेड़ को खा रही, शाख के फूल से शबनमी…

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Added by मिथिलेश वामनकर on December 13, 2014 at 12:30am — 19 Comments

सपना (लघुकथा)

"सर, मैं मुंबई वाले प्राॅजेक्ट पर आपके साथ नहीं चल पाऊँगी।"- कहते हुए निशा ने फोन रख दिया।

"क्या हुआ निशा?"- अपनी बहन को परेशान देखकर नीरज ने पूछा।

"भैया हमारी कम्पनी एक नया प्राॅजेक्ट शुरू कर रही है। बाॅस मुझे मुंबई साथ में चलने की जिद्द कर रहे हैं और मैं वहाँ अकेले उनके साथ जाना नहीं चाहती। बाॅस कह रहे हैं अगर साथ नहीं चली तो समझो जाॅब गई। भैया फिर घर का खर्चा कैसे चलेगा?"

पढाई पूरी करने के बाद बेरोजगार घुम रहे नीरज का सपना बहुत बड़ा आदमी बनने का था लेकिन आज अपनी बहन को दुविधा… Continue

Added by विनोद खनगवाल on December 12, 2014 at 4:34pm — 11 Comments

गजल ~ बज्म ए मुहब्बत मेँ

122 122 122 122



मुहब्बत मेँ अब क्या से क्या बन गया वो ।

किसी की नजर का खुदा बन गया वो ।



कि अब मन्नतोँ मेँ भी है नाम उसका ,

किसी दिल की माँगी दुआ बन गया वो ।



किसी ने तराशी जो तस्वीर उसकी ,

तो इंसान सबसे जुदा बन गया वो ।



उसे देखकर देखकर चैन पाता है कोई ,

किसी दर्दे दिल की दवा बन गया वो ।



कभी बेवफाई के भी था न काबिल ,

मगर अब किसी की वफा बन गया वो ।



लिखी थी खिजाँओँ ने तकदीर जिसकी ,

बहारोँ की महकी फिजा बन… Continue

Added by Neeraj Nishchal on December 12, 2014 at 1:32pm — 8 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल- ग़म खुशी में मुब्तला है

2122  2122

ये भी जीने की अदा है

ग़म खुशी में मुब्तला है

 

रात भी है चाँद भी और

चाँदनी की ये रिदा है

 

नेस्त हो जाएगा इक दिन

रेत पर जो घर बना है

 

हादसों के दरमियाँ इक

ज़िन्दगी का सिलसिला है

 

मखमली सा लम्स तेरा

सर्द जैसे ये सबा है

 

तुझमें है यूँ अक्स मेरा

तू कि जैसे आइना है

 

मैं नहीं तन्हा सफ़र में

साथ अपनो की दुआ है

 

छोर पर नाकामियों…

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Added by शिज्जु "शकूर" on December 11, 2014 at 10:15pm — 23 Comments

गजल- वो लफ़्ज लफ़्ज गद्दार रखनी है

2212 122 1222

हर शेर में ये दरकार रखनी है!
वो बेवफा तो हर बार रखनी है!!

अशआर शेर अशआर रखनी है!
वो लफ़्ज लफ़्ज गद्दार रखनी है!!

जब तक वो खुदखुशी कर न ले मुझको!
हर लफ़्ज एक तलवार रखनी है!!

बीमार हूँ तो हँस कर दिखाऊं क्यूं!
ये नज़्म भी तो बीमार रखनी है!!

तू मर अभी नहीं सकता ऐ'राहुल'!
के बात और दो चार रखनी है!!


मौलिक व अप्रकाशित!

Added by Rahul Dangi Panchal on December 11, 2014 at 10:00pm — 14 Comments

आदमी

कुछ लिखना चाहता हूँ

पर सोचता हूँ क्या लिखूं 

कलम जब होती है हाथ में

दिल करता है कुछ सांय-सांय

सोचता हूँ

पुण्य लिखूं

सेवा लिखूं, सम्मान लिखू

हाथ से फिसलता आसमान लिखूं

सत्य लिखूं , प्रेम लिखूं

ममता लिखूं , मौन-व्यापार लिखूं

किसी उजड़ी बस्ती का हाहाकार लिखूं

पाप लिखूं, शाप लिखूं

मन का परिमाप लिखूं

भूख लिखूं , स्वार्थ लिखूं

टी वी से झांकता

आधुनिक परमार्थ लिखूं 

थाना लिखूं, जेल…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 11, 2014 at 12:30pm — 17 Comments

गीत ~ उसकी दीवानगी मेँ अब

उसकी दीवानगी मेँ अब मचलना छोड दे ऐ दिल ।

उसकी यादोँ मेँ रह रहकर

युँ जलना छोड दे ऐ दिल ।



जो तेरा हो नहीँ सकता उसे पाने की चाहत क्योँ ।

किसी संगदिल से आखिर तू करे इतनी मुहब्बत क्योँ ।



ये झूठी ख्वाहिशोँ की राह चलना छोड दे ऐ दिल ।

उसकी दीवानगी मेँ अब.............

तमाशे मेँ तेरे पडकर तमाशा हो गया हूँ मै ।

तेरी नादानियोँ से अब परेशाँ हो गया हूँ मै ।



खयालोँ तू उसके अब बहलना छोड दे ऐ दिल ।

उसकी दीवानगी मेँ… Continue

Added by Neeraj Nishchal on December 11, 2014 at 9:59am — 13 Comments

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