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September 2020 Blog Posts (49)

मेरे ख़त

221 2122 221 2122

ये मामला है दिल का फैला ले पर मेरे ख़त/1

जाना पड़ेगा तुझको उड़कर शहर मेरे ख़त

इस बार लिखना तय था वरना तो जाने कब से/2

आ जा रहे थे ख़्वाबों में उनके घर मेरे ख़त

अनपढ़ गंवार पागल थी इश्क़ क्या ही करती/3

चूल्हा जला रही थी वो फाड़ कर मेरे ख़त

सर्दी की रात थी जब उनको क़मर कहा था/4

उड़ कर के खुद गए थे उनके शहर मेरे ख़त

होठों की लाली होती थी जिन ख़तों पे पहले/5

अब रद्दी बन रहे थे बस उनके घर मेरे ख़त

इनकार लिखना…

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Added by Dimple Sharma on September 6, 2020 at 3:07pm — 10 Comments

शिक्षक

शिक्षक है एक कुम्भकार और शिल्पकार 

हम गीली मिट्टी देता हमे वो आकार

उसने ही अच्छे बुरे का ज्ञान करवाया

जीवन रूपी भंवर में कैसे है  तैरना  

ये मेरे गुरु ने मुझे सिखलाया

जैसे नदी में एक नाव माझी बिना 

वैसे ही अज्ञानी हम शिक्षक बिना 

जिंदगी में उसने हमें सही मुक़ाम पर पहुंचाया

जीवन रूपी भंवर में कैसे है तैरना  

ये मेरे गुरु ने मुझे सिखलाया 

उसने कभी कुछ नहीं हमसे माँगा 

आगे बढ़ता देख हमें वो फूला न समाया …

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Added by Madhu Passi 'महक' on September 4, 2020 at 11:00am — 6 Comments

ज़िंदगी ........

ज़िंदगी ........

झड़ जाते हैं

मौसमों की मार सहते सहते

एक एक करके सारे पात

किसी वयोवृद्ध वृक्ष के

भ्रम है उसकी अवस्था

क्योँकि

उम्र के चरम के बावज़ूद

रहती है ज़िंदा

अपने मौसम की प्रतीक्षा में

आदि किरण

ज़िंदगी की



लौट आते हैं उदास विहग

ज़िंदगी के

पुनः उन्हीं पर्ण विहीन शाखाओं पर

अंकुरित होती है जहाँ

फिर से शाखाओं की कोरों पर

पीत पुष्पों से

लौटे मौसम का अभिनन्दन करती…

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Added by Sushil Sarna on September 3, 2020 at 9:30pm — 6 Comments

देह पर कुछ दोहे, ,,,,,,

देह पर कुछ दोहे, ,,,,,,

देह धरा में खो गई, शून्य हुए सम्बंध ।

तस्वीरों में रह गई, रिश्तों की बस गंध ।।



देह मिटी तो मिट गए, भौतिक जग के दंश ।

शेष पवन में रह गए, कुछ यादों के अंश ।।



देह छोड़ के उड़ चला ,श्वास पंख का हंस ।

काल न छोड़े जीव को ,होता काल नृशंस ।।



आती -जाती देह में , सांसे हैं आभास ।

एक श्वास का भी नहीं, जीवन में विश्वास ।।



देह दास है श्वास की, श्वास देह की प्यास ।

श्वास देह की जिंदगी, श्वास देह की आस…

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Added by Sushil Sarna on September 3, 2020 at 8:35pm — 10 Comments

आए , तोड़े गर्व

धरणी को बरबाद कर

चन्द्र करो जा नष्ट

फिर ढूँढो घर तीसरा

जहाँ न कोई कष्ट

यह क्रम चलता ही रहे

मानव ही जब दुष्ट

आपस में लड़ कर करे

सर्व विभूति विनष्ट

समझे मालिक स्वयं को

बन बैठा भगवान

हिरनकशिपु सम सोच रख

औरों का अपमान

करते बम के परीक्षण

खुशी मने ज्यों पर्व

राम , कृष्ण सदृश कोई

आए , तोड़े गर्व

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on September 3, 2020 at 7:26pm — 3 Comments

गुरू नमन

कच्ची मिट्टी का ढेला था,

छोटा सा जीव नादान था।

क्या सही और क्या गलत,

इस सबसे अनजान था।।



प्रथम गुरु मेरे मात पिता हैं,

चरणों में उनके नमन करूं।।

ज्ञान दिया है मुझको इतना,

शब्दों में कैसे बयां करूं?



नमन मेरा सभी गुरुओं को,

वंदन बारंबार है।

अज्ञानता के अन्धकार को मिटा,

फैलाया जीवन में प्रकाश है।



धन्यवाद उन मित्रों का भी,

जो हरदम मुझको ज्ञान हैं देते।

खेल खेल में सहज भाव से,

मुझमें नई ऊर्जा भर… Continue

Added by Neeta Tayal on September 3, 2020 at 3:27pm — 4 Comments

नाम आपका रोशन कर दूं

शिक्षा देने वाले हे गुरुजनों,

कैसे आपका बखान करूं।

सूरज को दिया दिखाने जैसा,

कैसे ये तुच्छ काम करूं।।

ज्ञान शस्त्र जो मिला आपसे,

फिर दुनियां से क्यूं डरूं।

अज्ञानता के अन्धकार को,

जन जन के जीवन से दूर करूं।।

शिक्षक दिवस पर सभी गुरुजनों को,

हाथ जोड़ वंदन करूं।

बिना रुके बिना झुके,

आपके प्रशस्त मार्ग पर बढ़ती रहूं।।

किताबी ज्ञान को व्यवहारिक कर

जीवन में कूट कूट कर भर लूं।

समानता का अधिकार दिलाने,

दुनियां से भी मैं लड़…

Continue

Added by Neeta Tayal on September 3, 2020 at 8:20am — 7 Comments

बदल रहा है तेरा शह्र पैरहन मेरा (ग़ज़ल)

1212 1122 1212 22  

बदल रहा है तेरा शह्र पैरहन मेरा/1

ख़ुदारा खैर है बदला नहीं है तन मेरा

तेरा यूँ ख्वाब-ओ-ख्यालों में आना जाना/2

रखेगा कौन बता यार यूँ जतन मेरा

तू लड़ मगर तोड़ मत ये आईना इकलौता/3

जो टूटा कौन निहारेगा फिर बदन मेरा

मुझे ख़बर हुई है तेरे आने की जबसे/4

महक रहा है तेरे ख्याल से बदन मेरा

था खुबसूरत मेरा भी एक आशियाना सुन/5

उजाड़ा है मेरे अपनों ने ही चमन मेरा

जो इन्तजार मेरी मौत का सभी को था/6

तो लो खरीद लिया…

Continue

Added by Dimple Sharma on September 2, 2020 at 4:00pm — 7 Comments

दण्ड ये कैसा मिला

दमन कर अपनी खुशियों का,

फर्ज पर अपने डटी रही।

एक बार नहीं दो बार नहीं,

बार बार करती रही।।

समझ ना सके फिर भी मुझे क्यूं,

क्यूं बार बार झकझोर दिया।

फर्ज निभाने का मुझे,

दण्ड ये कैसा मिला?

बहु बनकर जब कभी भी,

सासु मां का साथ दिया।

रूढ़िवादी हो अम्मा की तरह,

बच्चों ने झट से कह दिया।

क्यूं समय के साथ नहीं हो,

आज समय है बदल गया।

फर्ज बहु का निभाने का,

दण्ड ये कैसा मिला?

माँ बनकर जब कभी भी,

अपने बच्चों का साथ दिया।

सर पर…

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Added by Neeta Tayal on September 2, 2020 at 1:48pm — 5 Comments

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