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April 2020 Blog Posts (86)

अंतस के हिम निर्झर से जब भाव पिघलने लगते है|(७९ )

अंतस के हिम निर्झर से जब

भाव पिघलने लगते है|

गीतों में ढलने को मेरे

शब्द मचलने लगते हैं ॥

***

लेखन आता नहीं मुझे पर लिखता हृद उद्गारों को |

और बुझा लेता हूँ लिखकर हिय तल के अंगारों को |

कहाँ निभा पाता हूँ अक्सर मैं छंदो का अनुशासन

अलंकार-से भूल गया हूँ शब्दों के श्रृंगारों को |

भाषा शुद्ध न हुई भले ही

लय सुर ताल रहे बाक़ी

बिम्ब-प्रतीक सृजन से जब…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 1, 2020 at 8:00pm — 4 Comments

कोरोना पर कुछ दोहे :

कोरोना पर कुछ  दोहे :
वृत कोरोना का नहीं, इतना भी आसान।
रहना निज आवास में, है मात्र समाधान।।
कोरोना के काल से, हुआ विश्व…
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Added by Sushil Sarna on April 1, 2020 at 5:30pm — 4 Comments

गजल(शोर हवाओं....)

22 22 22 22

शोर हवाओं ने बरपाए,

घाव हरे होने को आए।1

बंटवारे का दर्द सुना,अब

देख कलेजा मुंह को धाए।2

रोजी खातिर परदेश गए

घर भागे सब,धक्के खाए।3

आफत ऐसी आई उड़कर

सबने अपने रंग दिखाए।4

बबुआ भैया जो कहते थे,

सबने फिर से हाथ उठाए।5

बांट रहे कुछ मुंह की रबड़ी

खाने को भूखे ललचाए।6

तीर कमान चढ़ाए चलते

दोमुख सबको कौन बताए?7

मांग बना जो राजा,बैठा

दाता लाठी -…

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Added by Manan Kumar singh on April 1, 2020 at 1:20pm — 4 Comments

यक़ीं के साथ तेरा सब्र इम्तिहाँ पर है(७८)

(1212 1122 1212  22 /112 )

यक़ीं के साथ तेरा सब्र इम्तिहाँ पर है

हयात जैसे बशर लग रही सिनाँ पर है

**

हमारा मुल्क परेशान और ख़ौफ़ में है

सुकून-ओ-चैन की अब जुस्तजू यहाँ पर है

**

वजूद अपना बचाने में अब लगा है बशर

न जाने आज ख़ुदा छुप गया कहाँ पर है

**

बचेगा क़ह्र से कोविड के आज कैसे भला 

बशर पे ज़ुल्म-ओ-सितम उसका आसमाँ पर है

**

वहाँ की प्यास भला दूर क्या करे…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 1, 2020 at 1:00pm — 7 Comments

एक ग़ज़ल

सुन  रहे  हैं  कि  वो  इक ऐसी दवाई देगा

जिससे  अंधे  को भी रातों में दिखाई देगा



प्यार  से  उसने  बुलाया है मुझे मक़्तल में

जानता हूँ   मैं जो  दावत   में  क़साई देगा



ऐसे चिल्लाओ कि आवाज़ वहाँ तक जाए

एक  दिन  तो  सभी  बहरों को सुनाई देगा



पास  रहता  हूँ  तो मुंह फेर के चल देता है

दूर  जाऊँगा  तो   आने   की   दुहाई  देगा



क़ैदख़ाने   में  उसी  ने  ही रखा सालों तक

जिसने   उम्मीद  जताई   थी   रिहाई  देगा



घुप   अंधेरे  से …

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Added by सालिक गणवीर on April 1, 2020 at 12:00pm — 5 Comments

धूप छाँह होने वाले

तमाम उम्र लगे रहे शहर शहर हो जाने में 
क्यों गांव गांव आज फिर होने लगी है ज़िंदगी …
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Added by amita tiwari on April 1, 2020 at 1:30am — 1 Comment

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