आत्मावलोकन के क्षणों में
मन मेरे
जब तू जूझता
डूबता , उतराता
फिर थक के बैठ
किनारे सुस्ताता है
औ तब ये सब
देख रही होती हैं
मेरी आँखे
सबसे परे
उन सारे पलों को
तुझे जीते हुए
औ तभी
विहँस पड़ती हैं
उसी क्षण
जब उनमें से
चुन लेता है तू
एक मोती
18th May2012
Added by MAHIMA SHREE on May 18, 2012 at 10:10pm — 22 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on May 18, 2012 at 2:41pm — 7 Comments
(1)
जो ग़ालिब थे , मेरे जैसी ही उन पर भी गुज़रती थी,
अगर और जीते वो तो उनको क्या मिला होता....
डुबोया हम दोनों को अपने अपने जैसे होने ने,
वो न होते तो क्या होता , मैं न होती तो क्या…
Added by Sarita Sinha on May 18, 2012 at 2:30pm — 20 Comments
मेरे बड़े भाई का लीवर ट्रांसप्लांट आपरेशन गुडगाँव मेदान्ता अस्पताल में है| खून की जरूरत है वे वार्ड में एडमिट हैं| गुडगाँव, दिल्ली, नोयडा व् आस-पास रहने वाले सभी सुधी ब्लॉगर बंधुओं और मित्रों से अपील है कि यदि संभव हो तो मेरे बड़े भाई की जीवन रक्षा हेतु रक्तदान करें । हम आजीवन आपके आभारी रहेंगे । यहाँ पर मैं परम मित्र भाई सन्तोष जी का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने आज अपने पांच मित्रो के साथ पहुंचकर रक्तदान किया। अभी भी लगभग 30 यूनिट रक्त रक्त की आवश्यकता है । धन्यवाद चातक…
ContinueAdded by Chaatak on May 18, 2012 at 2:17pm — 7 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on May 18, 2012 at 11:00am — 15 Comments
1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2
उसी की…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on May 17, 2012 at 10:32pm — 6 Comments
कमी है कौन सी कुदरत के कारखाने में ,
उलझ के रह गया इन्सान जो आबो -दाने में .
वोह जिसके दम से उजाला है मेरी आँखों में ,
उस्सी की आज कमी है गरीब खाने में .
मेरे नसीब में लिखी है ठोकरे शयेद ,
जो भूल बैठा हूँ तुझको भी इस ज़माने में .
समझ रहा था जिसे मै गरीब परवर है ,
उस्सी ने आग लगे है आशियाने में .
हटा जो मर्कज़े हस्ती से देखीय "रिज़वान",
भटक रहा है वही दरबदर ज़माने में .
Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on May 17, 2012 at 10:00pm — 8 Comments
Added by vivek mishr on May 17, 2012 at 9:30pm — 8 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on May 17, 2012 at 12:30pm — 23 Comments
सामने है खड़ी दीवार ख़ुदा ख़ैर करे।
रास्ता हो गया दुश्वार ख़ुदा ख़ैर करे॥
अब तो हर चीज़ जुदाई में बुरी लगने लगी,
फूल भी लगने लगे ख़ार ख़ुदा ख़ैर करे॥…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on May 17, 2012 at 10:00am — 13 Comments
तुझे तो देख के जोरों से मेरा दिल धडकता है
जिये पानी बिना मछली के जैसे मन तडपता है
जिगर को थाम के बैठूं मैं अक्सर सामने तेरे…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on May 17, 2012 at 10:00am — 17 Comments
अरबों माल डकार के राजा जी गै छूट।
जनहित में संदेश है लूट सके तो लूट।।
निकले जब वो जेल से यूँ दिखलाया रंग।
अभिवादन थे कर रहे जीत लिया ज्यों जंग।।
बाहर आकर वायु मे चुम्बन रहे उछाल।
इतने घृणीत कर्म का कोई नही मलाल।।
हर्षित चेलाराम के जमीं न पड़ते पाँव।
बेशरमी रख ताख पे खुश हो करते काँव।।
झिंगुर घुरवा से कहे "जितबे तुहीं चुनाव।
कट्टा पिस्टल साथ हैं डर जइहैं सब गाँव"।।
आशीष यादव
Added by आशीष यादव on May 17, 2012 at 9:00am — 22 Comments
दिल मेरा फिर से सितमगर तलाश करता है।
आईना जैसे के पत्थर तलाश करता है॥
एक दो क़तरे से ये प्यास बुझ नहीं सकती,
दिल मेरा अब तो समंदर तलाश करता…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on May 16, 2012 at 2:00pm — 16 Comments
Added by rajesh kumari on May 16, 2012 at 10:30am — 38 Comments
Added by Rekha Joshi on May 16, 2012 at 12:46am — 20 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on May 16, 2012 at 12:00am — 24 Comments
कर भला कर भला गर भला कर सके....
नफरतो को मिटा गर भला कर सके....
नाउम्मीदी भरा कोई जब भी मिले....
आस उसको बंधा गर भला कर सके....
जब कभी कोई अंधा दिखे राह में....
पार उसको लगा गर भला कर सके....
हाथ फैलाए जब कोई भूखा दिखे....
भूख उसकी मिटा गर भला कर सके....
तन किसी का खुला देख ले गर कभी....
पेरहन कर अता गर भला कर…
Added by Shayar Raj Bajpai on May 15, 2012 at 7:30pm — 19 Comments
उसकी पहली नज़र ही असर कर गयी
एक पल में ही दिल में वो घर कर गयी
हर गली कर गयी हर डगर कर गयी
मुझको रुसवा तेरी इक नज़र कर गयी
मैंने देखा उसे देखता रह गया
मुझको खुद से ही वो बेखबर कर गयी
साथ चलने का तो मुझसे वादा किया
वो तो तन्हा ही लेकिन सफ़र कर गयी
जिस घडी पड़ गयी इक नज़र यार की
एक ज़र्रे को शम्सो कमर कर गयी
हमने मांगी थी 'हसरत' जो रब से दुआ
वो दुआ अब यक़ीनन असर कर गयी
Added by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on May 15, 2012 at 1:00pm — 15 Comments
हर दिन बन कर मलयज बयार
सब पर होती रहती निसार
माँ से मिलतीं खुशियाँ हजार l
वो बन कर ममता की बदरी
भरती रहती जीवन-गगरी
छाया बन कर धूप-शीत में
बन जाती संबल की छतरी
हर बुरी नजर देती उतार l
वो है बाती की स्वर्ण-कनी
हर दुख को सह लेती जननी
पलकों पर सदा बिठाती है
बच्चे होते कच्ची माटी से
ढाले वो उनको ज्यों कुम्हार l
वो हृदय में रहे चाशनी सम
स्नेह कभी ना होता…
ContinueAdded by Shanno Aggarwal on May 15, 2012 at 1:00pm — 9 Comments
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