Added by Rohit Dubey "योद्धा " on April 4, 2012 at 12:00am — 2 Comments
कालबाह्य हो गयी अचानक सिर से वंचित चोटी है|
अब तो सारी ही रचनाएं कंप्यूटर पर होती है||
मृतिका पात्रों का सोंधापन,
स्नेहपूर्ण परसन,प्रक्षालन|
मधुमय मंगल गीतों…
Added by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 3, 2012 at 10:30pm — 8 Comments
Added by Ravindra Prabhat on April 3, 2012 at 7:30pm — 16 Comments
सदा आती है ये अक्सर तड़प के मेरे सीने से
Added by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on April 3, 2012 at 5:00pm — 4 Comments
अंधे रास्ते
ये वो रास्ते है
जो अंधे हैं
ये कर देते हैं
मजबूर पथिक को
रुकने को कभी
तो कभी लौटने को.
करते हैं जो हिम्मत
बढ़ने की आगे,
लडखड़ा जाते हैं वो भी
कुछ कदम पर ही .
आखिर क्यों ?
चांदनी सा बदन
दिलों का मिलन
कसमें वादे
मज़बूत इरादे
दुनिया से बगावत
डेटिंग व दावत
माँ -बाप, मित्र अपने
मखमली -रुपहले सपने
हो जाते हैं धूमिल
इन अंधे रास्तों में ..
मेरे महबूब
नहीं…
Added by Dr Ajay Kumar Sharma on April 3, 2012 at 4:10pm — 4 Comments
(चतुष्क-अष्टक पर आघृत)
पदपदांकुलक छंद (१६ मात्रा अंत में गुरू)
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सपनों पर जीत उसी की है,
जिसके मन में अभिलाषा है.
वह क्या जीतेंगे समर कभी,
जिनके मन घोर निराशा है ..
चींटी का सहज कर्म देखो,
चढ़ती है फिर गिर जाती है.
अपनें प्रयास के बल पर ही,
मंजिल वह अपनी पाती है..
स्वप्न की उन्नत…
ContinueAdded by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 3, 2012 at 3:00pm — 24 Comments
उसमे थी उच्छृंखलता,तुम शांति के करीब हो
वो थी सिर्फ एक घटना, शायद तुम मेरा नसीब हो
उसमे थी, पाने की चाहत तुम त्याग को प्यार कहते हो
उसकी बातें थी अविश्वसनीय,तुम विश्वास को आधार कहते हो
उसकी बातें हंसते हुए थी रुलाती,भरती थी मन में निराशा
तुम भी आशावादी,आस दिलाती तुम्हारे प्यार की भाषा
वो थी मेरी सबसे बङी भूल ,तुम सुधार बनके आऐ हो
वो था एक आकर्षण,तुम जिंदगी में प्यार बनके आऐ हो
जितना आसां है उसे भूल के जीना,उतना ही मुश्किल…
ContinueAdded by minu jha on April 3, 2012 at 11:36am — 8 Comments
उन्हें हक है कि मुझको आजमाएं
मगर पहले मुझे अपना बनाएं
खुदा पर है यकीं तनकर चलूँगा
जिन्हें डर है खुदा का सर झुकाएं
जुदा होना है कल तो मुस्कुराकर
चलो बैठे कहीं आँसू बहाएं
तुम्हारे आफताबों की वज़ह से
अभी कुछ सर्द है बाहर हवाएं
तिरा दरबार है मुंसिफ भी तेरे
कहूँ किससे यहाँ तेरी खताएं
खता उल्फत की करने जा रहा हूँ
कहो अय्याम से पत्थर…
ContinueAdded by Arun Sri on April 3, 2012 at 11:00am — 20 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on April 3, 2012 at 9:59am — 10 Comments
शर्मा जी, आजकल बड़े उद्विग्न से दिखने लगे हैं! ....वैसे वे हमेशा शांतचित्त रहते, किसी से भी मुस्कुराकर मिलते और जो भी उनके पास आता, उनसे जो मदद हो सकता था, अवश्य करते.
पर, आज कल दफ्तर में काम का अत्यधिक बोझ, बॉस का दबाव और बीच बीच में झिड़की, सहकर्मी की ब्यंग्यबान, बाजार की महंगाई, सीमित वेतन में बच्चों की पढ़ाई लिखाई, उनकी आकाँक्षाओं की पूर्ति, पत्नी के अरमान.... सबकुछ सीमित वेतन में कैसे पूरा करें....... वेतन समझौता भी एक साल से बकाया है. अभी तक कोई सुगबुगाहट नहीं सुनाई पड़ रही है. हर…
Added by JAWAHAR LAL SINGH on April 3, 2012 at 7:34am — 13 Comments
बंजारा लोगो की कैसी भी हो किस्मत
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 2, 2012 at 10:30pm — 4 Comments
दीनो धरम,ईमान के हाइल हैं यहाँ पर|
मैं इल्म किसे दूँ,सभी जाहिल हैं यहाँ पर|
.
नादान बशर रो रहा जिस शख्स के आगे,
वह शख्स कहीं और है,गाफिल है यहाँ…
Added by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 2, 2012 at 10:30pm — 14 Comments
Added by dilbag virk on April 2, 2012 at 9:00pm — 5 Comments
मेरे बचपन के एक मित्र के बड़े भैया पढ़ने में बड़े तेज़ थे, और पूरे मोहल्ले में अपनी आज्ञाकारिता और गंभीरता के लिए प्रसिद्ध थे. भैया हम लोगो से करीब 5 साल बड़े थे तो हमारे लिए उनका व्यक्तित्व एक मिसाल था, और जब भी हमारी बदमाशियो के कारण खिचाई होती थी तो उनका उदहारण सामने जरूर लाया जाता था. सभी माएं अपने बच्चो से कहती थी की कितना 'सीधा लड़का' है. माँ बाप की हर बात मानता है. कभी उसे भी पिक्चर जाते हुए देखा है?
मेधावी तो थे ही, एक बार में ही रूरकी विश्वविद्यालय में इन्जिनेअरिंग में…
ContinueAdded by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on April 2, 2012 at 12:30pm — 18 Comments
मैंने देखा है -
हलांकि जार-जार टूटे हुए ,
हवादार
फिर भी उमस में डूबे हुए झोपडो में
जो चेहरे रहते है ,
इस जानलेवा भागम भाग में भी
वो चेहरे ठहरे रहते हैं !
ये ठहरा हुआ वक्त का मरहम
और फिर भी उनके जख्म
गहरे के गहरे रहतें हैं !
टूटी हुई छत से टपकती उदास धूप
नहीं सुखा पाती
सिसकती हुई छाँव की सीलन !
जिनके छिल चुके होंठ
नहीं उठा पाते
गूंगी हँसी का बोझ तक
लेकिन वो उठाए…
ContinueAdded by Arun Sri on April 2, 2012 at 10:37am — 10 Comments
माँ की बात सुनते ही पिताजी के दोनों बड़े भाईयों का चेहरा ऐसा हो गया था मानो दोनों गाल पर किसी ने एक साथ तमाचा मारा हो | एक क्षण के लिए तो ऐसा लगा था कि वे उत्तेजित होकर न जाने क्या कर बैठें या फिर नवांगतुक को साथ लेकर घर छोड़कर ही न चले जाएँ | पर , ऐसा कुछ नहीं हुआ | नवांगतुक जो पिताजी के सबसे बड़े भाई याने मेरे दादाजी के साले थे , असहज हो गए थे और सहज होने के प्रयास में फर्श पर रखे अपने पांवों को जोर जोर से हिला रहे थे | काफी देर तक निस्तब्धता छाई रही | हमेशा हाथ…
ContinueAdded by अरुण कान्त शुक्ला on April 1, 2012 at 11:31pm — 3 Comments
मुख्य अतिथि श्रीमती लक्ष्मी अवस्थी दीप-प्रज्ज्वलन करते हुए. साथ में (बायें से) डा. जमीर अहसन, एहतराम इस्लाम, इम्तियाज़ गाज़ी तथा सौरभ पाण्डेय …
ContinueAdded by वीनस केसरी on April 1, 2012 at 9:00pm — 9 Comments
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 1, 2012 at 4:00pm — 20 Comments
कुछ पल मेरी छावं में बैठो तो सुनाऊं
हाँ मैं ही वो अभागा पीपल का दरख्त हूँ
जिसकी संवेदनाएं मर चुकी हैं
दर्द का इतना गरल पी चुका हूँ
कि जड़ हो चुका हूँ !
अब किसी की व्यथा से
विह्वल नहीं होता
मेरी आँखों में अश्कों का
समुंदर सूख चुका है |
बहुत अश्रु बहाए उस वक़्त
जब कोई वीर सावरकर
मुझसे लिपट कर…
Added by rajesh kumari on April 1, 2012 at 8:00am — 11 Comments
हाइकु
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देकर दवा
मत देना जहर
करना दुआ
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बीमार मन
प्रदूषित शरीर
घायल सब
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Added by Rita Singh 'Sarjana" on March 31, 2012 at 6:30pm — 5 Comments
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