For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सूरज भी उन्हें क्या देगा

मैंने देखा है -

हलांकि जार-जार टूटे हुए ,

हवादार

फिर भी उमस में डूबे हुए झोपडो में

जो चेहरे रहते है ,

इस जानलेवा भागम भाग में भी

वो चेहरे ठहरे रहते हैं !

ये ठहरा हुआ वक्त का मरहम

और फिर भी उनके जख्म

गहरे के गहरे रहतें हैं !

टूटी हुई छत से टपकती उदास धूप

नहीं सुखा पाती

सिसकती हुई छाँव की सीलन !

 

जिनके छिल चुके होंठ

नहीं उठा पाते

गूंगी हँसी का बोझ तक

लेकिन वो उठाए फिरते है

फटी पुरानी साँसों की गठरी !

घायल जिस्म पर

जिंदगी के चीथड़े लपेटे हुए ,

बेजुबां आंसुओं से भरी सपनीली आखें ,

बाट जोहती है

एक नए सूरज की !

 

अब ये सूरज भी उन्हें क्या देगा !

छिल चुके जिस्म को जला देगा !

उनके हर चमकीले सपनों को ,

एक नई रात की स्याही में डूबा देगा !

 

 

..................................... अरुन श्री !

Views: 458

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Arun Sri on April 5, 2012 at 10:09am

सौरभ सर , मैंने प्रयत्न किया कि दुर्बल और अशक्त समुदाय के विषाद के क्षणों का चित्रण कर सकूँ ! ये रचना किसी के जीवन का निराशा से भरा क्षण मात्र है ! आपको पसंद आया तो मेरा सौभाग्य है !
बाकी इस रचना से परे यदि कहूँ तो बस इतना ही कहना चाहूँगा -

//आशा ही जीवन है//

सादर !

Comment by Arun Sri on April 5, 2012 at 10:04am

राजेश कुमारी मैम , आपकी सराहना ने गौरवान्वित किया ! आभार !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 4, 2012 at 11:06pm

भाई अरुण जी, प्रस्तुत रचना की पंक्तियों से निस्सृत होती सचाई इन्द्रियों को सन्न कर देती है.

वास्तव में, हरेक के जीवन में एक समय आता है जब किया गया प्रयास मुँह चिढ़ाता हुआ प्रतीत होता है. उन क्षणों के कारण किसी दुविधाग्रस्त के जीवन में व्याप्त असमंजस व अन्यमनस्कता नकारात्मकता का पर्याय भले दीखे किन्तु कोई बलात् नकारा शक्तियों से पछाड़ नहीं खाना चाहता.  मैं अपनी कही एक रचना का बानगी देना चाहूँगा.

ऐसा नहीं अंधेरे में भागता हर अभागा पलायनवादी हो
चकचकाती इस उजली धूप से बच पाने की इच्छा भी हो सकती है,
छाँव पा जाने की अधीर उम्मीद ! 

 

उम्मीद है, भाई अरुणजी,  आप मेरे कहे का आशय समझ रहे हैं. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 4, 2012 at 2:12pm

अरुण जी गरीबी का बड़ा अच्छा चित्रण किया है आपने बहुत प्रभाव शाली रचना.

Comment by Arun Sri on April 4, 2012 at 1:56pm

सीमा मैम ! मेरे प्रयास को आपने ह्रदय में स्थान दिया ! ये मेरे लिए सम्मान की बात है ! सादर !

Comment by Abhinav Arun on April 4, 2012 at 1:54pm

क्क्य कहने सुन्दर भाव सशक्त अंदाज़ -

अब ये सूरज भी उन्हें क्या देगा !

छिल चुके जिस्म को जला देगा !

उनके हर चमकीले सपनों को ,

एक नई रात की स्याही में डूबा देगा !

इस रचना हेतु हार्दिक बधाई अरुण श्री !!

Comment by Arun Sri on April 4, 2012 at 1:51pm

महिमा मैम ! काश कि तथाकथित "सूरज" भी इस दर्द को  समझ पाते ! आपने समझा ! आभारी हूँ !

Comment by Arun Sri on April 4, 2012 at 1:49pm

प्रदीप सर ! सराहना हेतु धन्यवाद !

Comment by MAHIMA SHREE on April 2, 2012 at 4:18pm
मैंने देखा है -
हलांकि जार-जार टूटे हुए ,
हवादार
फिर भी उमस में डूबे हुए झोपडो में
जो चेहरे रहते है ,
इस जानलेवा भागम भाग में भी
वो चेहरे ठहरे रहते हैं !

आदरणीय अरुण जी,
नमस्कार, बहुत ही मार्मिक और सुगठित अभिव्यक्ति....गरीबी का चित्रण और गरीबो की मनोदशा का भाव बहुत ही अच्छे से आया....बधाई आपको....
..
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 2, 2012 at 2:02pm

अब ये सूरज भी उन्हें क्या देगा !

छिल चुके जिस्म को जला देगा !

उनके हर चमकीले सपनों को ,

एक नई रात की स्याही में डूबा देगा !

snehi arun ji, sadar, bahut sundar bhav ke sath prastuti.  prasannta hui. badhai.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service