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सम्पूर्ण ओ बी ओ परिवार की ओर से आप सभी मित्रों को अभियंता दिवस की हार्दिक बधाई !

(गीतिका छंद आधारित मुक्तक)

हो बधाई बंधु अग्रज, याद अब प्रतिदिन यहाँ.   

जन्मदिन शुभ आपका मिल, कर मनाते जन यहाँ.

आप मानक थे यहाँ इं-,जीनियर के रूप में. 

विश्वेश्वरैया मोक्षगुंडम, सर नमन वंदन यहाँ..

--अम्बरीष श्रीवास्तव

Added by Er. Ambarish Srivastava on September 15, 2012 at 1:52pm — 7 Comments

हमारी मातृ भाषा

जान अपनी
पहचान अपनी
है हिंदी भाषा
.................
खाते कसम
हिंदी दिवस पर
है अपनाना
.................
हिंदी हमारी
मिले सम्मान इसे
है मातृ भाषा
.................
शान यह है
भारत हमारे की
राष्ट्र की भाषा
.................
मित्र जनों को
हिंदी दिवस पर
मेरी बधाई

Added by Rekha Joshi on September 14, 2012 at 2:35pm — 7 Comments

इस जग में जो सबसे सुन्दर वो मेरी भाषा हिंदी है

हिंदी दिवस की शुभकामनाओं सहित ये रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ





ये गंगा सी निर्मल पावन ये स्वर रुपी कालिंदी है

इस जग में जो सबसे सुन्दर वो मेरी भाषा हिंदी है



ये सुन्दर सरल सजीली है,

भाषा ये बहुत सुरीली है

ये नव रस और छंदों से युक्त

मन भावन मधुर पतीली है



ये भारत माँ के माथें में सूरज सी दमके बिंदी है

इस जग में जो सबसे सुन्दर वो मेरी भाषा हिंदी है



ये प्रेम की मीठी भाषा है

भारत की प्राण पिपासा…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 14, 2012 at 1:02pm — 7 Comments

हिंदी - हिंदी दिवस

एक मेरी कल्पना , एक मेरी अर्चना
हिंदी में ही स्वर सजें, हिंदी में ही गर्जना
माथे की बिंदी भी कही क्यूँ , ढूँढती अस्तित्व अपना
क्यूँ नहीं हमने निभाया माँ , भाष्य का दायित्व अपना

बहके हुए है हम सदा से , भाषा इंगलिस्तान में
बोलने में क्यूँ लाज आये, हिंदी हिंदुस्तान में
राष्ट्र के माथे की बिंदी , क्यूँ सभी हम नोचते
क्यों नहीं ये प्रण भी लेते , हिंदी में ही बोलते


 

Ashish Srivastava ( Sagar Sandhya ) 

Added by Ashish Srivastava on September 14, 2012 at 12:30pm — 5 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
क्यों मुझको हैं झकझोर रहे?

आस भरे मासूम नयन, क्यों मुझको हैं झकझोर रहे?
हो निराश क्यों विस्मित मन, तक आशा की यह डोर रहे?
*
मैं खुद बेबस पंछी हूँ,
नाज़ुक पर, कैद सलाखों में,
आखिर क्या विश्वास जगा,
पाऊँगी बेबस आँखों में ?…
Continue

Added by Dr.Prachi Singh on September 14, 2012 at 11:30am — 19 Comments

हर भारतीय का आत्म गौरव है हिंदी

 हिंदी दिवस पर समस्त ओ बी ओ के सम्मानित सदश्यों का हार्दिक शुभ कामनाए 

समस्त लोगो की जुबान पर है हिंदी
हमारी गजल हमारी कविता है हिंदी  
जन जन की रग रग में बसी है हिंदी  
समूचे भारत राष्ट्र की पहचान है हिंदी
राष्ट्र प्रेम को दर्शाती मेरी भाषा है हिंदी
प्यार का…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 14, 2012 at 11:00am — 10 Comments

सम्पूर्ण ओ बी ओ परिवार की ओर से आप सभी को हिन्दी दिवस की बहुत-बहुत बधाई व अनंत शुभकामनाएं !

हिन्दी अपनी जान है, हिन्दी है पहचान.

देश हमारा हिन्दवी, प्यारा हिन्दुस्तान.

प्यारा हिन्दुस्तान, जहाँ भाषा का मेला.

सबको दें सम्मान, करें नहिं कोई खेला.

'अम्बरीष' हो गर्व, देख माथे की बिंदी.

दुनिया भर में आज, छा रही अपनी हिन्दी..

--अम्बरीष श्रीवास्तव

Added by Er. Ambarish Srivastava on September 14, 2012 at 9:30am — 16 Comments

चार कह मुकरियाँ

(१) फूटे बम चल जाए गोली,

नहीं निकलती मुँह से बोली |

बाहर आता खाने राशन,

क्या भई चूहा? नहिं रे "शासन" ||

(२) ताने घूँघट औ शरमाए,

तड़पा के मुखड़ा दिखलाए |

रोज दिखाए जलवा ताजा,

क्या मेरी भाभी? नहिं तेरा "राजा" ||

(३) चलते पूरी सरगर्मी से,

सुनते ताने बेशर्मी से |

बातों से पूरे बैरिस्टर,

क्या कोई लुक्खा? नहिं रे "मिनिस्टर" ||

(४) बातों से लगता है झक्खी,

नहीं भिनकने आती मक्खी |

डांटे मैडम बँधती घिग्गी,

क्या कोई पागल? नहिं रे…

Continue

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 14, 2012 at 8:18am — 6 Comments

कविता

शब्द उड़ते हैं कल्पनाओ में तो कविता बनती है,
चाँद होता है जब घटाओ में तो कविता बनती है,
यु तो हो जाती हैं बस राहतें दवा जो काम करे,
दर्द होता है जब दवाओ में तो कविता बनती…
Continue

Added by Brajesh Kant Azad on September 14, 2012 at 12:00am — 5 Comments

समाज सुधारक

भ्रष्टता के इस युग में

हर कोई समाज सुधारक है,

देखता है, विचारता है

समाज में व्याप्त घृणित बुराइयों को,

करता है प्रतिकार पुरजोर तरीके से

हर एक बुराई का,

लड़ता है सच के लिए,

बावजूद, क्यों अंत नहीं होता

किसी भी बुराई का,

बल्कि बढ़ती जा रही

बुराइयाँ, दिन-प्रतिदिन,

वजह मात्र एक,

हरेक मनुष्य सुधारता औरों को,

नहीं दिखती किसी को भी

कमियाँ अपनी,

करते नजरअंदाज

अपने अवगुणों को,

कैसे सुधरेगा समाज

जब…

Continue

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 13, 2012 at 10:30pm — 10 Comments

भारत माता की वाणी हिंदी से जुडा पावन अवसर....

भारत माता की वाणी

हिंदी से जुडा

पावन अवसर,

आओ करें संकल्प

करेंगे इसका प्रयोग

हर स्तर पर...



हम रहें कहीं भी

नहीं भूलते 

जैसे अपनी माँ को,

याद रखेंगे वैसे ही

हम हिंदी की गरिमा को...



इन्टरनेट पर

जहाँ कहीं भी

अंग्रेजी हो मजबूरी,

वहाँ छोड़कर

हो प्रयास कि

हिंदी से हो कम…

Continue

Added by VISHAAL CHARCHCHIT on September 13, 2012 at 10:00pm — 6 Comments

यादों का सफ़र

******************************
वो चले थे सिर्फ दो कदम
हम कदम बढ़ाते चले गए
वादे किये थे उसने मगर
हम वादे निभाते चले गए
उसकी सादगी के साज पर
हम गीत गाते चले गए
उसकी मुस्कुराने की शर्त पर
हम जख्म खाते चले गए
भुला बैठे हैं वो हमको शायद
मगर हमें याद वो आते चले गए
******************************

Added by Sachin Dev on September 13, 2012 at 5:30pm — 7 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
शीर्षक सुझाइए

आज पैंतीस साल बाद उसकी आवाज सुनी 

पर पहचान नहीं पाई 
फोन पर वार्ता लाप कुछ इस तरह हुआ 
स्नेहा ---हेल्लो राज  पहचान कौन बोल रही हूँ 
मेरा उत्तर ---सारी कौन बोल रही हो ??
स्नेहा --अच्छा अब पहचानती भी नहीं पैंतीस  साल पहले याद कर स्कूल में कालेज में एक साथ घूमते थे 
मेरा जबाब --माफ़ करना नहीं पहचान पा रही हूँ |
स्नेहा ---अरे स्नेहा को भूल गई 
मैं उछल पड़ी बोली ---अरे तू…
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Added by rajesh kumari on September 13, 2012 at 3:30pm — 23 Comments

जानूं नहीं

जानूं नहीं ये मेरी उलझन

कहां ठिकाना पाएगी

कबतक जीवन यूं ही मुझको

चौराहों तक लाएगी



जिसको भी आवाज लगाई

वही मिला घबराया सा

घनी धुंध की परत लपेटे

सुबह भी था कुम्‍हलाया सा



जाने कौन गढ़े जा रहा

दीवारों पर ठिगने साए

खोह-कन्‍‍दरा-तमस छुपाके

नीले पड़ गए हमसाए



स्‍वर्ण छुआ तो राख मिली

राई-रत्‍ती भी खाक मिली

बस कोहरे ही रह गए हमारे

फूलों में भी आग मिली



जो करीब थे दूर हुए

सुख के पल कर्पूर हुए

शेष बची जो थोड़ी…

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Added by राजेश 'मृदु' on September 13, 2012 at 2:00pm — 4 Comments


मुख्य प्रबंधक
लघु कथा : उत्तरदायित्व

उत्तरदायित्व



कार्यालय में कुछ ज्यादा ही गहमागहमी का माहौल था । नये साहब प्रभार ग्रहण कर रहे थे जो कड़े अनुशासन और अपने सख्त स्वभाव के लिए जाने जाते हैं | प्रभार ग्रहण करने के साथ ही उन्होंने पहला सवाल दागा - "कार्यालय की कार्यावधि क्या है ? और, सभी कर्मी कब तक कार्यालय आ जाते हैं |"



"सर कार्यालय अवधि सुबह १० बजे से शायं ५ बजे तक है और सभी कर्मचारी अमूमन ११ बजे तक आ ही जाते हैं."



"अब ऐसा नहीं चलेगा, कल से सबकी उपस्थिति सुबह १० बजे देखी जायेगी…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 13, 2012 at 1:30pm — 36 Comments

आस की कश्तियाँ

मायूसियों ने आज फिर दस्तक दी

खयालो के बंद दरवाजो से निकल

मन के आँगन में बिखरने को

बेताब सी मायूसियाँ

लेकिन आस की एक लौ

जिससे रोशन है दिल की बस्तियाँ

मुस्कुरा के बोली बुझने ना देना मुझे

जीवन में आयेंगे कठोर थपेड़े

वक़्त की आंधियों में

हमने मिटती देखी हैं

इन थपेड़ो की गिरफ्त में कई हस्तियाँ

जिंदगी की उलझनों से…

Continue

Added by Kiran Arya on September 13, 2012 at 1:30pm — 20 Comments

इस युग में कैसे संभव हो फिर तेरा और मेरा मिलना

न सूरज पश्चिम से ऊगे , न पूरव में होगा ढलना

इस युग में कैसे संभव हो फिर तेरा और मेरा मिलना



तुम फेसबुक की टाइम लाइन

मैं ऑरकुट बहुत पुराना हूँ

तुम काजू किशमिश के जैसे

मैं तो बस चना का दाना हूँ

तुम अमरीका के डालर…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 13, 2012 at 12:14pm — 16 Comments

हिंदी को बचाइए : घनाक्षरी

एक राष्ट्र एक टोली, एक भाव एक बोली,

हिंदी से ही हो सकेगी, आप जान जाइए |

भाषा ये सनातनी है, शीलवाली, पावनी है,

शोला है सुहावनी है, विश्व को बताइए |

पूर्वजों ने भी कहा है, हिंदी ने बड़ा सहा है,

हिंदी को बढ़ावा दे के, विद्वता दिखाइए |…

Continue

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 13, 2012 at 10:51am — 14 Comments

ये हादसे.......

ये  हादसे -

महज

अखबार की सुर्खियाँ

 पढ़कर इन्हें

जगती नहीं  संवेदना

 बेस्वाद नहीं होतीं

 चाय की चुस्कियां

ये हादसे............

देख- सुन

अत्याचार अनाचार

कछुवे की भांति निर्विकार

सर घुसा लेते हैं

विश्रांति की खोह में

सुस्ताते दो पल

और भूल जाते सब कुछ

जीने के मोह में

पाषाण बन जाती हैं

अनुभूतियाँ

ये..................

नुक्कड़,  चौराहों में

दफ्तर, मुह्ल्लों में

उछलते हैं जब

  मुद्दे यही

तो…

Continue

Added by Vinita Shukla on September 13, 2012 at 9:17am — 7 Comments

औलाद की कुर्बानियां न यूँ दी गयी होती .

औलाद की कुर्बानियां न यूँ दी गयी होती .

शबनम का क़तरा थी मासूम अबलखा ,

वहशी दरिन्दे के वो चंगुल में फंस गयी .

चाह थी मन में छू लूं आकाश मैं उड़कर ,

कट गए पर पिंजरे में उलझकर रह गयी .

थी अज़ीज़ सभी को घर की थी लाड़ली ,

अब्ज़ा की तरह पाला था माँ-बाप ने मिलकर .

आई थी आंधी समझ लिया तन-परवर उन्होंने ,

तहक़ीक में तबाह्कुन वो निकल गयी .

महफूज़ समझते थे वे अजीज़ी का फ़रदा ,

तवज्जह नहीं देते थे तजवीज़ बड़ों की .

जो कह गयी जा-ब-जा हमसे ये तवातुर…

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Added by shalini kaushik on September 13, 2012 at 1:21am — 2 Comments

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