For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जानूं नहीं ये मेरी उलझन
कहां ठिकाना पाएगी
कबतक जीवन यूं ही मुझको
चौराहों तक लाएगी

जिसको भी आवाज लगाई
वही मिला घबराया सा
घनी धुंध की परत लपेटे
सुबह भी था कुम्‍हलाया सा

जाने कौन गढ़े जा रहा
दीवारों पर ठिगने साए
खोह-कन्‍‍दरा-तमस छुपाके
नीले पड़ गए हमसाए

स्‍वर्ण छुआ तो राख मिली
राई-रत्‍ती भी खाक मिली
बस कोहरे ही रह गए हमारे
फूलों में भी आग मिली

जो करीब थे दूर हुए
सुख के पल कर्पूर हुए
शेष बची जो थोड़ी यादें
वो ही अब नासूर हुए

जाने कबतक ठिठुरेंगें सपने
ये रात कहां ले जाएगी
उमस भरी ये बेचैनी क्‍या
गुलशन नया बसाएगी ?

Views: 317

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rekha Joshi on September 14, 2012 at 10:46am

जाने कबतक ठिठुरेंगें सपने
ये रात कहां ले जाएगी
उमस भरी ये बेचैनी क्‍या
गुलशन नया बसाएगी ?,अति सुंदर अभिव्यक्ति राजेश जी ,बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 14, 2012 at 10:30am

वाह वाह वाह राजेश कुमार झा जी दिल बाग़ बाग़ हो गया रचना पढके आपकी दो व्याकरण त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना चाहूंगी उनको दुरुस्त कर लें तो बस क्या कहने मजा आ जाएगा रचना में (1) ---जीवन क्यूँ की पुर्लिंग है इसलिए दूसरी पंक्ति में क्रिया में सुधार करना होगा जैसे ----यदि आप उलझन की बात अंत तक कर रहे हैं तो कह सकते हैं --कब तक जीवन पर्यंत/भर  मुझको चौराहों तक लाएगी  ---यदि आप जीवन की बात कर रहे हैं तो कह सकते हैं कब तक जिन्दगी मुझको  चौराहों तक लाएगी

(२) ----दूसरे पद में इसी तरह सुबह क्यूंकि स्त्रीलिंग है उसका वाक्य बदलना पड़ेगा जैसे ---सुबह की जगह सूरज कर सकते हैं सूरज भी था कुम्हलाया  सा |  अगर इस सुबह को पहले व्यक्ति विशेष से जोड़ रहे हैं तो होगा ---सुबह में था कुम्हलाया सा  

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 13, 2012 at 8:39pm

राजेश कुमार झा जी, सुन्दर अभिव्यक्ति है, भावनाओं को संप्रेषित करने का एक अच्छा माध्यम काव्य होता है, आप रचना कर्म में सफल हैं, बहुत बहुत बधाई इस रचना पर |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 13, 2012 at 3:10pm

उमस भरी ये बेचैनी क्‍या
गुलशन नया बसाएगी ?


सुंदर रचना श्री राजेश कुमार झा जी 
उमस हटेगी भोंर के पहली किरण से 
गुलशन में खुशबु महकाएंगी -लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service