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हिंदी - हिंदी दिवस

एक मेरी कल्पना , एक मेरी अर्चना
हिंदी में ही स्वर सजें, हिंदी में ही गर्जना
माथे की बिंदी भी कही क्यूँ , ढूँढती अस्तित्व अपना
क्यूँ नहीं हमने निभाया माँ , भाष्य का दायित्व अपना

बहके हुए है हम सदा से , भाषा इंगलिस्तान में
बोलने में क्यूँ लाज आये, हिंदी हिंदुस्तान में
राष्ट्र के माथे की बिंदी , क्यूँ सभी हम नोचते
क्यों नहीं ये प्रण भी लेते , हिंदी में ही बोलते


 

Ashish Srivastava ( Sagar Sandhya ) 

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 15, 2012 at 7:37pm

आपकी भावना को शब्द मिले हैं, बधाई !

Comment by Brajesh Kant Azad on September 15, 2012 at 12:45am

बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है मात्रभाषा का. हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाये


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 14, 2012 at 9:15pm

खुबसूरत भावों से सुसज्जित रचना, हिंदी दिवस की बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 14, 2012 at 5:40pm

अच्छी रचना बधाई श्री आशीष श्रीवास्तव भाई  

Comment by Rekha Joshi on September 14, 2012 at 5:30pm

राष्ट्र के माथे की बिंदी , क्यूँ सभी हम नोचते 
क्यों नहीं ये प्रण भी लेते , हिंदी में ही बोलते,बढ़िया रचना ,बधाई ,हिंदी दिवस पर शुभकामनाएं ,आशीष जी 

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