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हृदय की तरल अग्नि रचती है जीवन
यहीं जन्म लेते हैं वियाग और मधुवन
क्षमा और प्रतिशोध की कैसी माया,
हृदय नभ सो उत्पन्न हो करते नर्तन।
सूबे सिहं सुजान
11.11.12
Added by सूबे सिंह सुजान on November 11, 2012 at 11:15pm — 2 Comments
शाम हो रही थी साहब घर जाने के लिए निकले और जाते जाते रामदीन को मेरी जिम्मेदारी सौंप गये. रामदीन को भी घर जाना था इसलिए उसने जल्दी से मुझे नीचे उतरा और झाड़ा झटका, अचानक मुझ पर पडी गर्द रामदीन से जा चिपकी, वह झुझला गया जैसे उसके शरीर पर धूल न चिपक गई हो बल्कि उसकी आत्मा से ईमानदारी जा चिपकी हो. उसने तुरंत अपने गमछे से सारे शरीर को झाड़ा और एक बार आईने में भी देख आया, उसे लग रहा था जैसे इमानदारी अब भी उससे चिपकी रह गई है. उसने मुझे तह किया और अलमारी में रख…
Added by वीनस केसरी on November 11, 2012 at 10:25pm — 10 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on November 10, 2012 at 5:24pm — 1 Comment
आओ मिलकर दीप जलाये
दीप, लड़ियों से घर सजा
हर तरह का तम मिटा
जग को प्रकाश की सौगात दिलाये
आओ मिलकर दीप जलाये
प्रेम की ज्योति जला के हृदय
बैर से मुक्ति, जग दिलाये
उपहार में बाँट के सदभावना
मीठास की ऐसी रीत चलाये
आओ मिलकर दीप जलाये
क्रोध अग्नि को विजित कर
सयंम में खुद नियंत्रित कर
विन्रमता का सबको पाठ पढाये
देश में प्रेम की लहर चलाये
आओ मिलकर दीप…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on November 10, 2012 at 12:10pm — 4 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on November 10, 2012 at 11:33am — 3 Comments
दास्ताँ है यें जीव की
वस्त्र ढ़के, मृत शरीर की
वृद्ध होते ही छोड़ चलें
नींव लिखने, नई तकदीर की
प्रीती जाती जब, हृदय जग
दो तनो कर, एक मन
बीज से जाता पराग बन
भू धरा पर ले जन्म
पंचतत्वो का कर संगम
पाया जग में मानव तन
शिशु से किशोर तक
रूप बनाया मन भावन
अटखेलियाँ कर कर के
हर्षित करता सबका मन
शिक्षा का वो कर अध्ययन
ज्ञान से करता जग रोशन
अध्यन का समय हुआ…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on November 9, 2012 at 5:32pm — 2 Comments
यूं तो हमारे देश में कई क्रांतिकारी कई देशभक्त आये| कोई नोटों तक पहुंचा कोई गुमनामी में खो गया, किसी को चर्चे मिले कोई किताबों में सो गया| मगर उन्होंने अपना कर्तव्य कभी नहीं छोड़ा, आजादी के बाद भी अनेक क्रांतिकारी यदा-कदा देश में आते-जाते रहे| जब-जब शासन अपनी शक्तियों और कर्तव्य को भुला कर कुछ भी करने में अक्षम रहा, वे देशभक्त उन्हें कर्तव्य बोध कराते रहे|
ऐसा ही कर्तव्य बोध हाल ही में हमारे देश के एक वीर क्रांतिकारी द्वारा सरकार को कराया गया| ये वीर कोई और नही बल्कि परम साहसी, अत्यंत…
Added by Pushyamitra Upadhyay on November 9, 2012 at 4:10pm — 7 Comments
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 9, 2012 at 11:00am — 38 Comments
कुछ मुझी में प्यार मेरा, इस कदर आबाद है,
कैद में दुनिया है मेरी, दिल मेरा आज़ाद है।
पाँव थमते ही नहीं, अब मंजिलों पर भी मेरे,
ये मेरी आवारगी, शायद मेरी हमजाद है।
Added by Arvind Kumar on November 8, 2012 at 8:39pm — 7 Comments
सकारात्मक पक्ष से, कभी नहीं हो पीर |
नकारात्मक छोड़िये, रखिये मन में धीर |
रखिये मन में धीर, जलधि-मन मंथन करके |
देह नहीं जल जाय, मिले घट अमृत भरके |
करलो प्यारे पान, पिए रविकर विष खारा |
हो जग का कल्याण, सही सिद्धांत सकारा ||
Added by रविकर on November 8, 2012 at 6:35pm — 7 Comments
मेरा बेटा
अभी बच्चा है
अक़्ल से कच्चा है
चीज़ों का महत्व
नहीं जानता
और न ही
बड़ी बातें करना जानता है
उसकी खुशियाँ भी
छोटी-छोटी हैं
चॉकलेट, खिलौनों से ख़ुश
पेट भर जाए तो ख़ुश
पर लालची नहीं है वो
उतना ही खाएगा
जितनी भूख़ है
कल के लिए नहीं सोचता
आज की फिक्र करता है
चीज़ें ज़्यादा हो जायें
दोस्तों में बाँट देगा
छोटा है न
कुछ समझता नहीं
लोग समझाते हैं
बाद के लिए रख लो
पर नहीं समझता…
Added by नादिर ख़ान on November 8, 2012 at 6:00pm — 4 Comments
अय्यासी में हैं रमे, रोम रोम में काम ।
बनी सियासी सोच अब, बने बिगड़ते नाम ।
बने बिगड़ते नाम, मातृ-भू देती मेवा ।
मँझा माफिया रोज, भूमि का करे कलेवा ।
बेंच कोयला खनिक, बनिक बालू की राशी ।
काशी में क्यूँ मरे, स्वार्गिक जब अय्यासी ।।
Added by रविकर on November 8, 2012 at 12:30pm — 8 Comments
अधरों बिच बात छुपाय रही इनसे न कही उनसे न कही
पिय प्यार दुलार निहार सखी नयनो बिच धार हमार बही
सब राज कहें नयना पिय से अधरों बिच बात छुपी न रही
यह प्रीतहि रीत अनूठि सखी सब हारहि जीतहि एक सही
चिदानन्द शुक्ल "संदोह "
Added by Chidanand Shukla on November 8, 2012 at 11:30am — 2 Comments
नये जीवन की शुरुआत करें हम
मृत्यु से ना कभी डरे हम
कर्मभूमि बना धरा को
स्थापित प्रमाण अपने करें हम
गीता उपदेश को ध्यान रख
समाहित धर्म कर्म को कर
ज्ञान बीज की उपज करें हम
कर्म को पूजा मान के अपनी
चेतना वृक्ष तैयार करें हम
आओ नए जीवन की शुरुआत करें हम
आसक्त ना हो भौतिक जगत से
अपने अंतर्मन से ध्यान धरे हम
कौन हूँ मैं, कहा से आया
किस मनसा से जग में आया
क्या खोया, और…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on November 8, 2012 at 10:37am — 5 Comments
नेता खुद करते फिरें, इधर उधर की ऐश
दीवाली पर ना मिले, तेल, कोयला, गैस
तेल, कोयला, गैस, चूल्हा जलेगा कैसे
रंक भाड़ में जाय, भरलो बैंक में पैसे
वोट दियो पछताय, मनुज अब जाकर चेता
उजले हैं परिधान, ह्रदय से काले नेता
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Added by rajesh kumari on November 7, 2012 at 8:30pm — 11 Comments
आग का दरिया नंगो पैरों करना पार कहाँ तक अच्छा
Added by ajay sharma on November 7, 2012 at 7:00pm — 1 Comment
हुज़ूर इस नाचीज़ की गुस्ताखी माफ़ हो ,
आज मुंह खोलूँगी हर गुस्ताखी माफ़ हो !
दूँगी सबूत आपको पाकीज़गी का मैं ,
पर पहले करें साबित आप पाक़-साफ़ हो !
मुझ पर लगायें बंदिशें जितनी भी आप चाहें ,
खुद पर लगाये जाने के भी ना खिलाफ हो !
मुझको सिखाना इल्म लियाकत का शबोरोज़ ,
पर पहले याद इसका खुद अलिफ़-काफ़ हो !
खुद को खुदा बनना 'नूतन' का छोड़ दो ,
जल्द दूर आपकी जाबिर ये जाफ़ हो !
…
ContinueAdded by shikha kaushik on November 7, 2012 at 1:00pm — 5 Comments
चाँद-सितारे ,बादल ,सूरज
आँख मिचौली खेल रहें हैं ।
धरती खुश है ,
झूम रही है ।
झूम रहा है प्रहरी कवि-मन ।
समय आ गया नए सृजन का ।
खून सनी सड़कों पर-
काँटे उग आएं हैं ।
जीवन भाग रहा है नंगेपांव –
मगर बचना मुश्किल है ।
सन्नाटों का गठबंधन-
अब चीखों से है ।
हृदयों के श्रृंगारिक पल में
छत पर चाँद उतर आता है ।
कवि के कन्धे पर सर रखकर
मुस्काता है ।
नीम द्वार का गा उठता…
ContinueAdded by Arun Sri on November 7, 2012 at 11:24am — 16 Comments
खींचा-खींची कर रहे, इक दूजे की चीज ।
सोम सँभाले स्वयं सब, भूमि रही है खीज ।
भूमि रही है खीज, सभी को रखे पकड़ के ।
पर वारिधि सुत वारि, लफंगा बढ़ा अकड़ के ।
चाह चाँदनी चूम, हरकतें बेहद नीची ।
रत्नाकर आवेश, रोज हो खींचा खींची ।।
Added by रविकर on November 7, 2012 at 9:14am — 3 Comments
जब वो आते धूम मचाते
मन अंतर पर वो छा जाते
खुशियों के लाते उपहार,
क्या सखी साजन? नहीं त्यौहार.
रंग गेहुआ कड़कदार वो
बच्चों बूढों सबका यार वो
भटके, फिर भी वो गली गली
क्या सखी साजन? नहीं मूंगफली.
घुले हवा जब उसकी खुशबू
रहे नहीं तब मन पर काबू
दिल पर छाए उसका जलवा
क्या सखी साजन? नहीं सखी हलवा.
Added by Dr.Prachi Singh on November 6, 2012 at 6:58pm — 22 Comments
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