एक प्रयास 'मत्त सवैया' यानी 'राधेश्यामी छंद' का......
सरकार नहीं यह चेत रही, महँगाई जान जलाती है |
रोटी भी मुश्किल होय रही, दिन रात रुलाई आती है | |
हर पक्ष - विपक्ष नहीं अपना, सब अपना काम बनाते हैं |
हैं दुश्मन…
Added by VISHAAL CHARCHCHIT on September 23, 2012 at 10:05pm — 10 Comments
Added by Pushyamitra Upadhyay on September 23, 2012 at 9:53pm — 6 Comments
निश्चेष्ट धरा को
अपनी गोद में उठाए
समुद्र हाहाकार कर उठा
थरथराते होंठो से
अस्फुट से शब्द लहराए
अ...ब...और ...स...हा... न...हीं जा...ता..
वि...धा....ता!!
अशांत समुद्र ज्वार को
सम्भाल नहीं पा रहा था
फिर भी धरा को समझा रहा था
आओ सो जाते हैं
सब कुछ भूल जाते हैं
आदि से लेकर अंत तक
कहाँ रह पाए मर्यादित
मनुज की तृष्णा और लालसा से
सदैव रहे आच्छादित
आज जबकि काल की जिह्वा
लपलपा रही…
ContinueAdded by Gul Sarika Thakur on September 23, 2012 at 9:37pm — 5 Comments
न आइन्दा साथ जाए और न हाल साथ जाए
मैं जहां कहीं भी जाऊं तेरा ख्याल साथ जाए
न मग्रिबको देखता हूँ न मश्रिकको चाहता हूँ
न जनूब मेरी ज़मीं हो, न शिमाल साथ जाए
जो मज़ा है हमको तेरी फ़ुर्कत की सोजिशों में
वो मज़ा कहाँ मयस्सर जो विसाल साथ जाए
ये दुआ है मेरे दिल से कोई बद्दुआ न निकले
न कैदेहस्ती अजल हो कि मआल साथ जाए
चलो इल्तेफात टूटी और गिले भी ख़त्म सारे
न जवाब कोई बाकी और न सवाल साथजाए…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on September 23, 2012 at 4:36pm — 4 Comments
उम्र कब तलक गिराबांरेनफस को उठाती है
कमरेकी हवा भी अब खिड़कियों से जाती है
माहोसाल गुज़रे दिलके अंधेरों में रहते रहते
तारीकियोंसे भी अब कोई रौशनीसी आती है
तेरी चाहत हो गई बेजा किसी शगलकी तरह
सिगरेटकी आदत सी अब खुद को जलाती है
मुझमें भी हैं हसरतें इक आम इंसाँ की तरह
माना कि मैं एक बेमाया दिया हूँ पे बाती है
एक उज़लतअंगेज शाम तेरे गेसू में आ बसी
एक अल्साई सुबह तेरी आँखोंमें मुस्कुराती है…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on September 23, 2012 at 11:07am — 13 Comments
Added by Abhinav Arun on September 23, 2012 at 9:30am — 18 Comments
मोड़ राहो में नए अब जोड़ देता हूँ ,
कुछ पुराना कुछ नया सब छोड़ देता हूँ ,
चल रही यू ज़िन्दगी ज्यों पानी में लहरें हो उठी,
खुद को समझ अब एक लहर किनारे मोड़ देता हूँ ,
कुछ पुराना कुछ नया सब छोड़ देता हूँ ,
जो हैं समझते कुछ नहीं मैं वो बड़े नादान हैं,
नादानियो में एक समझ बस जोड़ देता हूँ ,
ना दिखे सूरत तुम्हारी लाख महंगा है तो…
Added by Brajesh Kant Azad on September 23, 2012 at 12:00am — 5 Comments
जहाँ से यथार्थ की दहलीज
खत्म होती है
वहाँ से हसरतों का
सजा धजा बागीचा
शुरु होता है
जब भी कदम बढ़ाया
दहलीज फुफकार उठती है…
ContinueAdded by Gul Sarika Thakur on September 22, 2012 at 11:00pm — 11 Comments
माँ होती तो ऐसा होता माँ होती तो वैसा होता
खुद खाने से पहले तुमने क्या कुछ खाया "पूछा " उसको
जैसे बचपन में सोते थे उसकी गोद में बेफिक्री से
कभी थकन से हारी माँ जब , तुमने कभी सुलाया उसको ?
पापा से कर चोरी जब - जब देती थी वो पैसे तुमको
कभी लौट के उन पैसो का केवल ब्याज चुकाया होता
माँ तुम ही हो एक सहारा तब तुम कहते अच्छा होता
माँ होती तो ऐसा होता…
Added by ajay sharma on September 22, 2012 at 10:30pm — 6 Comments
मुझे तलाश है उस भोर की ,जो नव दिव्य चेतना भर दे |
निज लक्ष्य से ना हटें कभी
अटूट निश्चय पे डटें सभी
ना सत्य वचन से फिरें कभी
ना निज मूल्यों से गिरें कभी
जो गर्दन नीची कर दे
मुझे तलाश है उस भोर की ,जो नव दिव्य चेतना भर दे |
दूजों के दुःख अपनाएँ हम
अक्षत पुष्प बरसायें हम
नेह का निर्झर बहायें हम
जग के संताप मिटायें हम
भगवन ऐसा अवसर दे
मुझे तलाश है उस…
ContinueAdded by rajesh kumari on September 22, 2012 at 8:30pm — 23 Comments
निकिता की शादी हो रही थी| सभी बेहद खुश थे| सारा इंतजाम राजसी था| होता भी क्यों न? निकिता और उसका होनेवाला पति, दोनों ही बहुराष्ट्रीय कंपनियों में ऊँचे ओहदों पर थे और अच्छे घरों से आते थे| वैवाहिक कार्यक्रम के दौरान भाई के द्वारा की जानेवाली रस्मों की बारी आई| अब भाई की रस्में करे कौन? निकिता का इकलौता भाई, जो इंजीनियरिंग का छात्र था, परीक्षाएँ पड़ जाने के कारण अपनी दीदी की शादी में आ ही नहीं पाया था| लेकिन इससे कोई समस्या नहीं हुई क्योंकि राज्य के नामी उद्योगपति आर.के सिंहानिया का बेटा और…
ContinueAdded by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 22, 2012 at 6:44pm — 18 Comments
मान जाओ न
मचल उठता है
ये ह्रदय
जब आती है
दूर कहीं से कोयल की
कूक सी मीठी
सदा
पीपल के पत्तों की तरह …
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 22, 2012 at 11:30am — 3 Comments
1.गुरु ज्ञान बाँटते रहे, ले सके वही लेत,
भभूत समझे तो लगे, वर्ना वह तो रेत |
2.अमल करे तबही बढे, गुरु सबके हीसाथ,
करम सेही भाग्य बढे, भाग्य उसीके हाथ |
3. नेता भाषण में कहें,जाति का नहीं भेद,
जो फोटू दिखलाय दो, तुरत करेंगे खेद |
4. भेद गरीब अमीर का , नहीं करे करतार,
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 22, 2012 at 11:00am — 14 Comments
काले किले का वो काला कलाल
भोलू के भाले में अटका वो बाल |
मामा के मोहल्ले का माल-पुआ
गुल्लू की गाली का गुलाब जामुन
पुणे के पानी को पीने को जाना
पान चबाकर वो पाना ले आना
गन को दिखाकर वो गाना तो गाना
गुनगुना के वो धुन…
Added by Rohit Dubey "योद्धा " on September 21, 2012 at 11:30pm — 12 Comments
अभी कुछ देर पहले ही वो लौटा था,
घर पर आया तो कल की फिक्र में था,
बच्चे दिन से इंतज़ार में थे उसके घर आने के,
पर वो उनसे बात भी न कर सका,
वो कल की जल्दी में था,
उसने कल की तैयारी भी कर ली थी रात ही से,
जैसे वक्त बिलकुल भी नहीं हो पास उसके,
कल उसको सुबह ज़रा जल्दी निकालना था,
किसी से मुलाक़ात थी, कारोबार के सिलसिले में,
वक्त और जगह भी मुकर्रर थे मुलाक़ात के लिए,
सुबह के लिए कुछ कपड़े भी निकले उसने,
अपने कागजों को पढ़ा और…
Added by पियूष कुमार पंत on September 21, 2012 at 10:00pm — 1 Comment
वक्त वक्त की बात है
वक्त तो बदल जायेंगे..
गर वक्त ने दिए हैं जखम
तो वक्त के साथ ही भर जायेंगे...…
Added by Harvinder Singh Labana on September 21, 2012 at 8:58pm — 1 Comment
यूँ हो कर देखता हूँ बेबस मैं घर के जालों को
कि शर्म आ जाती है शहरों में गुम उजालों को
गरीबोगुरबा की तमकनत तो है बस आँखों में
जो देखके आ जाती है ऐवाँ में रहने वालों को
मैं शाइरोफलसफी हूँ, तसव्वुर ही काम है मेरा
मैं ख़्वाबोंके सीमाब पैरहन देता हूँ ख्यालों को
न दे मुझ को शराब न सही जो तेरी मरज़ी है
पे ये भी बतादे मैं क्या बोलूं सुबूओप्यालों को
ख्वाह न हो कोई जवाब न कोई हल इस हाल
ज़माना देखेगा…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on September 21, 2012 at 8:20pm — 6 Comments
लाख झूठ चाहे स्वर बोलें,
मौन मगर सच कह जाये |
प्रेम अगन को बांधो कितना,
धुँआ तो जग में रह जाये ||
ये प्रेम हुआ ये कृष्ण हुआ,
न पहरों से है झुक पाता|
जो बन सुगंध हो चुका व्याप्त,
कैसे हाथों में रुक जाता||
तुम कई लगा लेना बंधन,
बहना है इसको बह जाये|
प्रेम अगन को बांधो कितना,
धुँआ तो जग में रह जाये||1||
बीज घृणा के बोने वाले,
भ्रम के कितने यंत्र करोगे|
जिस आश्रय में जीवित है जग,
क्या उसको परतंत्र…
Added by Pushyamitra Upadhyay on September 21, 2012 at 7:24pm — 5 Comments
सिपाही, दूर घर से खड़ा सीमा पर..
अपनी मातृभूमि की रक्षा को...
जो समर्पित है चिर काल से..
अपने देश के लिए अर्पण को..
सिपाही, जिसका घर सीमा पर बनी चौकियां हैं..
सिपाही, जिसका परिवार उसके साथ खड़े भाई हैं..
सिपाही, जो सर्द रातों में भी थकता नहीं है...
सिपाही, जो जेठ की दुपहरी में भी रुकता नहीं है...
वो सिपाही, जिसके लिए तिरंगा उसकी शान है...
सिपाही, जिसके लिए राष्ट्र, उसकी जान है...
सिपाही, जो छोड़ता नहीं…
ContinueAdded by Harvinder Singh Labana on September 21, 2012 at 6:30pm — 5 Comments
मन क्षेत्र
आकाश सा विस्तृत...
आकांक्षाओं के बिंब ,
बन
भाव-बादल,
करते
कभी आहलादित
कभी विकृत
संपूर्ण अस्तित्व...
बदल बदल स्वरूप
बादल सम चंचल
अस्…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on September 21, 2012 at 4:40pm — 8 Comments
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