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मान जाओ न

मान जाओ न

मचल उठता है
ये ह्रदय
जब आती है
दूर कहीं से कोयल की
कूक सी मीठी
सदा

पीपल के पत्तों की तरह  
मंद हवा के झोंको से
जाड़े के दिनों में
थरथराते कांपते
जिस्म को
गुनगुना कर जाती है
कपास सी नाजुक
गुनगुनी सी छुअन

कुम्हार की ईंटों की
रक्त तप्त भट्टी की तरह
जेठ की दुपहरी में
कडकडाती धूप
में जलते जिस्म को
खुनक कर जाती है 
आसमान में उड़ते
स्याह काले बादलों सी
ठंडी छाया

किसी मयखाने से
निकले शराबी की तरह
बहकते हुए मन को
और बहका जाती है
बहार में खिले
फूलों से उडती मादक गंध

निराशा हताशा लिए
मृत हो चुके दिल में 
अचेतन में
आ जाती है चेतना
खुशियाँ उमंग
जैसे जड़ी बूटी हो कोई
अमृत संजीवनी

हे प्रिये
तुम मेरी प्रकृति हो
और तुम बिन
मेरा संसार
अधूरा है
और अधूरेपन का एहसास
किसी कांटे की चुभन से कम नहीं
ये पीड़ा किसी गहरे जख्म से रिस रहे
रक्त को देख मन में होने वाली
पीड़ादायक अनुभूतियों से
अधिक दुखदायी है


हे प्रिये
यदि में हूँ
तो मेरा अस्तित्व तुम से है
तुम मेरी आत्मा हो
मैं यदि मैं ही रह गया
तो समझो अचेत हूँ
मैं में चेतना
तो हम से है
और तुम बिन
मैं हम कैसे हो जाऊं ??


हे प्रिये
तुम्हारे रूठने से
मेरे जीवन की गति
दुर्गति में बदल गयी है
और मैं मूर्ख हूँ
तुम जानती हो
मुझे नहीं आ रहा है
तुम्हे मनाना
मैंने वो गलतियां स्वीकार कर लीं है
जो मेरी गलतियां भी नहीं है
किन्तु तुम बिन जीने की
कल्पना
भी दुखदायी होती है
अब मान जाओ न
हे प्रिये
मुझे मेरा अपराधी न बनाओं
हे प्रिये मान जाओ न

  • संदीप पटेल "दीप"

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 25, 2012 at 9:03am

आदरणीय नीरज सर जी , आदरणीय विशाल चर्चित भाई जी , और आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर जी आप सभी का ह्रदय से धन्यवाद और सादर आभार
गुरुवर मैं अभी धीरे धीरे आप सभी के स्नेह और ज्ञान के जल से सिंचित हो कर मजबूत हो रहा हूँ अभी मैं पौधा ही हूँ आप सभी की कृपा ऐसी ही बनी रही तो जरुर एक दिन ये पौधा बड़ा वृक्ष बन जायेगा .....स्नेह और आशीष यूँ ही बनाये रखिये

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on September 25, 2012 at 12:28am

अत्यन्त भावपूर्ण.......सार्थक रचना !!!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 24, 2012 at 1:06pm

आत्म-कथ्यात्मक रचनाओं की परंपरा में आपकी यह प्रस्तुति है किंतु शब्द एवं भाव का संतुलन कई जगह संयत नहीं रह पाया है. आप इस रचना को और बेहतर मोडिफाई कर सकते हैं, संदीपजी.

शुभ-शुभ

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