For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ३२ (यूँ हो कर देखता हूँ बेबस मैं घर के जालों को )

यूँ हो कर देखता हूँ बेबस मैं घर के जालों को

कि शर्म आ जाती है शहरों में गुम उजालों को

 

गरीबोगुरबा की तमकनत तो है बस आँखों में

जो देखके आ जाती है ऐवाँ में रहने वालों को

 

मैं शाइरोफलसफी हूँ, तसव्वुर ही काम है मेरा

मैं ख़्वाबोंके सीमाब पैरहन देता हूँ ख्यालों को  

 

न दे मुझ को शराब न सही जो तेरी मरज़ी है

पे ये भी बतादे मैं क्या बोलूं सुबूओप्यालों को 

 

ख्वाह न हो कोई जवाब न कोई हल इस हाल

ज़माना देखेगा मुड़ - मुड़ कर मिरे सवालों को 

 

मैं हाज़िर हूँ मुक़ाबिल भी पे अपनी क्या हुर्मत

कि दुनिया सोचेहै बस दुनियासे जाने वालों को

 

मुझे हिम्मत हुई नाउम्मीदी में जब हवा न थी   

कोई चिड़िया हिला रही थी दरख्त-ओ-डालों को

 

कोई माँ पूछती थी बस्ती में खून खराबेके बाद

किधरसे लाऊं मैं अपने घर के बुझे उजालों को

 

गुज़ारी जिस तरहभी ज़िंदगी ऐराज़ हमने यहाँ 

बहा के गंगामें जाउंगा अपने सभी मलालों को

 

 

© राज़ नवादवी

भोपाल, ०४.१५ संध्याकाल

गुरुवार, २०/०९/२०१२

 

तमकनत- तड़क-भड़क; टीम-टाम; ऐवाँ- महल; तसव्वुर- विचार, विचार करना; सीमाब पैरहन- चांदी के कपड़े; सुबूओप्यालों को- शराब की सुराही और प्यालों को; ख्वाह- चाहे; इस हाल- इस वक्त; मुक़ाबिल- सामने; हुरमत- प्रतिष्ठा, इज्ज़त; मलालों को- दुःख, तकलीफ, अफ्सोसों को.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Views: 383

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on September 24, 2012 at 9:42am

आदरणीया रेखाजी, आपकी बधाई बाशुक्रिया कुबूल फरमाता हूँ, आपकी दाद से बड़ी हौसलाअफजाई हुई! 

Comment by Rekha Joshi on September 23, 2012 at 7:28pm

राज़ जी

गुज़ारी जिस तरहभी ज़िंदगी ऐराज़ हमने यहाँ 

बहा के गंगामें जाउंगा अपने सभी मलालों को,बेहद खूबसूरत गजल पर बहुत बहुत बधाई 

Comment by राज़ नवादवी on September 22, 2012 at 11:59pm

आदरणीय लक्षमण जी, आपका शुक्रिया. जानूं ब जानूं आपके जवाबात पढके बहुत मज़ा आया!  

Comment by राज़ नवादवी on September 22, 2012 at 11:57pm

आदरणीया राजेश जी, आपका बहुत बहुत आभार! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 22, 2012 at 5:34pm

उम्दा ग़ज़ल इन दो शेरों के लिए तो विशेष दाद कबूल करें ---

कोई माँ पूछती थी बस्ती में खून खराबेके बाद

किधरसे लाऊं मैं अपने घर के बुझे उजालों को

 

गुज़ारी जिस तरहभी ज़िंदगी ऐराज़ हमने यहाँ 

बहा के गंगामें जाउंगा अपने सभी मलालों को

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 22, 2012 at 12:27pm
बहुत उम्दा और अच्छा सनेश देती गजलों के लिए हार्दिक बधाई भाई राज नवादवी साहेब 

मुझे हिम्मत हुई नाउम्मीदी में जब हवा न थी   ------ हमें भी अहसास न था कुछ लिख डालने का 

कोई चिड़िया हिला रही थी दरख्त-ओ-डालों को           हिम्मत मिली राज नवादवी के कलाम से 

 कोई माँ पूछती थी बस्ती में खून खराबेके बाद   ------  एक सूफी संत मिला उस लाल की माँ को 

किधरसे लाऊं मैं अपने घर के बुझे उजालों को            घर जा रौशनी कर,मिलेगा घर का चिराग वो 

 गुज़ारी जिस तरहभी ज़िंदगी ऐराज़ हमने यहाँ ------   जाने से पहले बहा आना अपने सभी मलालों को 

बहा के गंगामें जाउंगा अपने सभी मलालों को             पाक गंगा को इन्तजार खुदा के पास जाने वाले का 

                                                                                शुक्रिया 

  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service