==========ग़ज़ल============
आ गया है वक़्त सबको साथ चलना चाहिए
दोस्तों दिल में अमन का दीप जलना चाहिए
खून की होली, धमाके, रेप, हत्या देख कर
जम चुका बर्फ़ाब सा ये दिल पिघलना चाहिए
मात देने मुल्क में पसरे हुए आतंक को
बाँध कर सर…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on December 16, 2012 at 11:00am — 13 Comments
मुझे जानो समझो
पर इतना न झकझोरो
कि मैं नग्न हो जाऊं
अपमानित फिरू !
यह जो पाने, न पाने के दायरे है
तुम्ही कहो, इन्हें मैं कैसे तोडू ?
अगर मुझे पूर्ण न कर सको
तो न समझने का भान करो !
पर इतना भी न झकझोरो
कि मैं नग्न हो जाऊं
अपमानित फिरू !
अन्वेषा....
हम सब के ह्रदय में कही न कही एक भिक्षुक छुपा हुआ है !
Added by Anwesha Anjushree on December 16, 2012 at 9:00am — 10 Comments
ज्यादा क्या कोई फर्क नहीं मिलता
हुक्के की गुड़गुड़ाहटों की आवाज़ में
चाहे वो आ रही हों फटी एड़ियों वाले ऊंची धोती पहने मतदाता के आँगन से
या कि लाल-नीली बत्तियों के भीतर के कोट-सूट से...
नहीं समझ आता ये कोरस है या एकल गान
जब अलापते हैं एक ही आवाज़ पाषाण युग के कायदे क़ानून की पगड़ियां या टाई बांधे
हाथ में डिग्री पकड़े और लाठी वाले भी
किसी बरगद या पीपल के गोल चबूतरे पर विराजकर
तो कोई आवाजरोधी शीशों वाले ए सी केबिन में..
गरियाना तालिबान को,…
ContinueAdded by Dipak Mashal on December 15, 2012 at 11:30pm — 7 Comments
मेरे मन के दरख्त की डाली
झुकी झुकी सी, फूलों सी है
लरज लरज कर बाहों जैसी
याद तुम्हारी कर लेते हैं .
अब यादों की बदली से हम
भीग भीग कर सूख रहे हैं,
एक तुम्हारी चाहत ही है
जिसे अभी तक सींच रहे है
एक अंजुरी नयन नीर से,
एक एक पल जैसे हो पीर से
हर पल हरसिंगार की खुशबू
एक दिलासा मन के तीर (किनारा)…
Added by SUMAN MISHRA on December 15, 2012 at 10:00pm — 8 Comments
सूरज बदहवास सा खेतों के मेड़ों पर चला जा रहा था , बचपन में पिता का साया सर से छिन गया था , बहनों की शादी हो चुकी थी, जिनसे उसके उम्र का फासला बहुत था, उम्र अभी १७ वर्ष मगर जिम्मेदारियों का पहाड़ सर पर, गरीबी हो तो इंसान के लिए छोटी छोटी जरूरतें भी पहाड़ जैसी ही लगती हैं. छोटे चाचा ने सारी जमीने अपने नाम करा ली थी..सुरजू,,,,यही नाम था घर में सब प्यार से विषाद…
ContinueAdded by SUMAN MISHRA on December 15, 2012 at 9:30pm — 2 Comments
छन्न पकैया छन्न पकैया ,पढ़ते दांत पहाडा।
खड़ा हुआ है सर के ऊपर , डंडा लेकर जाड़ा।।
छन्न पकैया छन्न पकैया,पार तभी हो नाव।
सर्द हवा के बीच रात में, जलता रहे अलाव।।
छन्न पकैया छन्न पकैया,ठिठुर रहें फुटपाथ।
काली कुतिया साथ ठिठुरती,सोती है जो साथ।।
छन्न पकैया छन्न पकैया,नहीं गल रही दाल।
शीत युद्ध के चलते पहनो,स्वेटर मफलर शाल।।
छन्न पकैया छन्न पकैया,सड़कें हैं सुनसान।
ऊपर वाले का कर्फ्यू है ,लो अच्छे से जान।।
छन्न पकैया छन्न पकैया,कहता है…
ContinueAdded by AVINASH S BAGDE on December 15, 2012 at 8:30pm — 9 Comments
मेरी चाहत की दुनिया आ के फिर संवार दो
ठिठुरती शीत में सिमटी हुई सी रात है
अकेलेपन का गम ये इश्क की सौगात है
विरह ये लग रहा जैसे हृदय आघात है
वक़्त के सामने मेरी भी क्या औकात है
प्रिये तडपाओ न अब और जरा प्यार दो
मेरी चाहत की दुनिया आ के फिर संवार दो
सुबह है शबनमी प्यारी गुलाबी शाम है
हवा के हाथ में कोई तिलिस्मी जाम है
युगल स्वक्छंद फिरते दे रहे पयाम हैं
इश्क करते रहो ये आशिकों का काम है
प्रिये मेरे गले को बाहों का…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on December 15, 2012 at 4:17pm — 12 Comments
सौम्य शांत सी चली थी
निंद्रा से चिर निंद्रा की ओर
उसे निंद्रा से जगाने की कोशिश थी
थी भाग दौड़ !
उम्र भर की मानसिक यातना से
थी आज मुक्ति की ओर अग्रसर ,
अस्पताल के एक कोने में उसका
शरीर था पड़ा एक बिस्तर पर ,
बैठी थी पास ही उसके
उसकी बिटिया मूक दर्शक बनकर ,
रही थी माँ को एकटुक निहार !
और जैसे कह रही हो बारम्बार...
माँ, तुझे न रोकूंगी आज
ले लो मुझसे मुक्ति का उपहार !
अन्वेषा
Added by Anwesha Anjushree on December 15, 2012 at 4:00pm — 8 Comments
पड़ोसी
वर्मा, हो शर्मा, हो सिंह, हो या जोशी
किस्मत से मिलते हे, सज्जन पड़ोसी
पड़ोसी भले हो, ये किस्मत का खेल
नहीं तो घर भी, लगता हे जेल
पड़ोसी से न करें कोई शरम
कुछ ऐसे निभाएं पड़ोसी धरम
पडोसी की सब्र से करें समीक्षा
समय समय पर लेते रहे. अग्नि परीक्षा
पड़ोसी के घर के सामने पार्क करे गाड़ी
बक्त बेबक्त उसे करते रहे काडी
समय असमय उसकी घंटी बजाएं
ऊलजलूल बातों से उसे पकाएं
देर रात संगीत से…
Added by Dr.Ajay Khare on December 15, 2012 at 2:00pm — 7 Comments
में दरिया हूँ
प्यार हर दिल के अंदर ढूढता हूँ
नहीं कोई मेरा अपना ठिकाना
मगर घर सबको सुन्दर ढूढता हूँ
टूट जाते हे जब सपने महल के
पिटे खुआबो में खंडहर ढूढता हूँ
भरा दहशत अंदेशो से जमाना
में चेनो अमन के मंजर ढूढता हूँ
नहीं आंधी तूफानों का भरोसा
हरेक कश्ती को लंगर ढूढता…
ContinueAdded by Dr.Ajay Khare on December 15, 2012 at 1:41pm — 4 Comments
अथिति देबोभवा
पहले की सोच
अथिति होता था भगवान्
घर में होती थी खुशियाँ
और बनते थे पकबान
बदला अब परिवेश और…
ContinueAdded by Dr.Ajay Khare on December 15, 2012 at 1:30pm — 4 Comments
इजहारे मुहब्बत
प्यार करना पहिले हिम्मत का काम था
दर्दे दिल लेना मुहब्बत का नाम था
बर्षो करते थे केवल दीदार
हो नहीं पता था प्यार का इजहार
जब चारो और फ़ैल जाती थी, प्यार की खुशबु…
ContinueAdded by Dr.Ajay Khare on December 15, 2012 at 1:30pm — 4 Comments
बदलते रिश्ते
बचपन की मेरी मेहबूबा
मिली मुझे बाजार में
मियां और बच्चों के संग
बैठी थी बो कार में
नजरे चार हुई तो बो
होले से मुस्कुरा पड़ी
उतर कार से झट फुर्ती से
सम्मुख मेरे आन खड़ी
स्पंदित हुआ तन बदन मेरा
पहले सा अहसास हुआ
सामने थी मेरे बो बाजी
हारा जिससे मुहब्बत का जुआ
किम्कर्ताब्यविमूढ़ खड़ा था में
ध्यान मेरा उसने खीचा
आओ मिलो शौहर से मेरे
आपके हे ये जीजा
दिल में मेरे मचा हुआ था
कोलाहल…
Added by Dr.Ajay Khare on December 15, 2012 at 1:30pm — 2 Comments
श्रुति ..हाँ यही नाम था उसका , अभी नयी नयी आयी थी कॉलेज में , सभी उसे विस्मित नजरों से देखते थे, देखना भी था, वो किसी से बात नहीं करती थी, शायद बडे शहर से पढ़ कर आयी थी इसीलिए हम छोटे शहर के स्टूडेंट उसे पसंद नहीं थे, बस वो क्लास में आती. प्रोफेसर का लेक्चर सुनती और खाली समय में माइल & बून का उपन्यास लेकर पढ़ती रहती. कुछ…
ContinueAdded by SUMAN MISHRA on December 15, 2012 at 12:30pm — 4 Comments
टूटता ये दिल रहा है जिंदगी भर,
दर्द भी हासिल रहा है जिंदगी भर,
अधमरा हर बार जिन्दा छोड़ देना,
मारता तिल-2 रहा है जिंदगी भर,…
Added by अरुन 'अनन्त' on December 15, 2012 at 11:07am — 14 Comments
मोती-मोती जोड़ के, गूँथ नौलखा हार।
विश्वपटल पे रख दिया, भारत का आधार॥
भारत का आधार, भरा था जिसमें लोहा,
जय सरदार पटेल, सभी के मन को मोहा।
वापस लाये खींच, देश की गरिमा खोती,
सौ सालों में एक, मिलेगा ऐसा मोती॥
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on December 15, 2012 at 10:50am — 16 Comments
( कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या लिखूं ........लेकिन जब कलम उठाया तो जो लिखा आपके सामने है ....आशा है आपको पसंद आएगी )
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दूर से देखने में जो अच्छा लगे ,
पास आने में वो ना अच्छा लगे ।।
जिन आँखों में चाहत हो प्यार की
कभी देखे या ना देखे अच्छा लगे ।।
जैसे बगिया हो कोई पहरों के बीच
फूल तोड़े ना कोई तो अच्छा लगे ।।
नाम हो रोशनी से बहुत ही भला
काम आये सबको तो अच्छा लगे ।।
चाँद उतरे जमीं पे तो…
Added by श्रीराम on December 15, 2012 at 10:00am — 4 Comments
स्वप्न तिरोहित मेरी आँखें ,
क्या तुमको अच्छी लगती हैं?
कुछ डोरे भूले भटके से ,
नयनो में तिरते रहते हैं.
कुछ पलाश के फूल रखे हैं
सुर्ख लाल गहरे से रंग के
अग्निशिखा की छाया जैसी,
निशा द्वार पर जलते बुझते .
भटको मत अब नयन द्वार पर
भ्रमर भ्रमित से रह जाओगे
निशा भैरवी तान सुनेगी ,
अधर पटल सुन दृग खोलेंगे,
गीले बालों…
ContinueAdded by SUMAN MISHRA on December 14, 2012 at 11:00pm — 13 Comments
कुछ कहना था तुमसे मन की
जब आओगे तब कह दूँगी
कब मन ये मेरे पास रहा,
यादों को बाँध के रख लूँगी
अब दूर देश के…
Added by SUMAN MISHRA on December 14, 2012 at 6:00pm — 2 Comments
आज ऑफिस के लिए निकलते हुए देर हो गयी थी, रास्ते के ट्रेफ्फिक सिग्नलों ने तो नाक में दम कर दिया था, जल्दी से हरे होने का नाम ही नहीं लेते थे, जब ऑफिस को देर होती है तब सारे नियम क़ानून भूल जाते हैं, कही ना कही गलत है मगर ये मानविक भाव है, मगर सिग्नल या सड़क जाम का एक फायदा है , बहुत सारे…
ContinueAdded by SUMAN MISHRA on December 14, 2012 at 5:00pm — 2 Comments
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