For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पड़ोसी

वर्मा, हो शर्मा, हो सिंह, हो या जोशी
किस्मत से मिलते हे, सज्जन पड़ोसी
पड़ोसी भले हो, ये किस्मत का खेल
नहीं तो घर भी, लगता हे जेल
पड़ोसी से न करें कोई शरम
कुछ ऐसे निभाएं पड़ोसी धरम
पडोसी की सब्र से करें समीक्षा 
समय समय पर लेते रहे. अग्नि परीक्षा 
पड़ोसी के घर के सामने पार्क करे गाड़ी
बक्त बेबक्त उसे करते रहे काडी
समय असमय उसकी घंटी बजाएं
ऊलजलूल बातों से उसे पकाएं
देर रात संगीत से मचाएं कोहराम
कहे, हम हे देश की स्वतन्त्र आवाम
पड़ोसियों पर अपनी जमाये रहे धाक
बने रहे गंभीर करें न मजाक
पडोसी के जस्न में बने, बिन बुलाएँ मेहमान
बिपत्ति में, हो जाये अंतरध्यान
छत पर जाकर करें तांक झांक
ऊंची बनाये रखे, मोहल्ले में नाक
अपना घर,रखें साफ़ सुथरा
बगल में सरकाएं घर का कचरा
पालिए भोंकने बाला, एक श्वान
पड़ोसियों की करे जो नीद हराम
फोन पर जोर जोर से करें गाली गलौज
घर पर महफ़िल सजाएँ और करें मौज
धीरे धीरे प्रेम से,फिर आगे बड़े
शुबह उसी की चाय के साथ उसी का पेपर पढ़े
येशा पड़ोसियों से करोगे जतन
दूर से ही पडोसी आपको करेंगे नमन


Dr.Ajay Khare Aahat

Views: 522

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 17, 2012 at 9:50am

हास्य प्रधान रचना अच्छी लगी ऐसे पड़ोस में रहने से पहले सौ बार सोचना पड़ेगा 

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 16, 2012 at 1:15pm

हाहाहा हास्य प्रधान रचना मेरी ओर से बधाई स्वीकारें, और आदरणीय बागी सर की बातों पर ध्यान दें


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 16, 2012 at 9:29am

हास्य प्रधान रचना पर आपका प्रयास अच्छा लगा , बधाई स्वीकार करें , रचना और कसावट की मांग करती दिख रही है |

Comment by Dr.Ajay Khare on December 15, 2012 at 5:40pm

aap sabhi bidhvano ko thanyabaad

Comment by Anwesha Anjushree on December 15, 2012 at 4:28pm
यहाँ तो है ज्ञान का भण्डार 
ज्ञान अर्जन को आउंगी बारम्बार ....उत्तम 
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 15, 2012 at 4:08pm

हाय राम गर ऐसे हों पडोसी
तो पडोसी खुद से पूछे कौन दोषी

मजाहिया मंजरकशी अच्छी लगी
बधाई आदरणीय

Comment by SUMAN MISHRA on December 15, 2012 at 3:41pm

kuch alag saa magar sajag saa.....kavitaa alag hat kar hai...bahut sunder ajay ji

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
17 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
22 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

दोहा सप्तक. . . . . नजरनजरें मंडी हो गईं, नजर बनी बाजार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"कौन है कसौटी पर? (लघुकथा): विकासशील देश का लोकतंत्र अपने संविधान को छाती से लगाये देश के कौने-कौने…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"सादर नमस्कार। हार्दिक स्वागत आदरणीय दयाराम मेठानी साहिब।  आज की महत्वपूर्ण विषय पर गोष्ठी का…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी , सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ.भाई आजी तमाम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"विषय - आत्म सम्मान शीर्षक - गहरी चोट नीरज एक 14 वर्षीय बालक था। वह शहर के विख्यात वकील धर्म नारायण…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service