For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,988)

भौंरों के गुंजार से भी उठ रहा गहरा धुआं

पिंजड़े होकर सजग
देखते हैं आड़ से
धातुमय आवेग ताने
बढ़ रहा क्‍या भार से
एकरंगी ताल-पोखर
सांवली परछाईयां…
Continue

Added by राजेश 'मृदु' on January 8, 2013 at 11:30am — 4 Comments

ज़ख्म चेहरे से दिखाना दर्द की है ज़िद पुरानी ............

जब हुई रुसवा तरन्नुम से ग़ज़ल इस ज़िन्दगी की 

आंसुयों ने नज़्म लिखी रख दिया उनवान पानी 



आइनों से शर्त रख दी मुस्कराहट की लबों पे 

इसलिए झूठी ग़मों की कर रहा मैं तर्जुमानी 



और भी अब बढ गयी दुश्वारियां मेरे सफ़र की 

पत्थरों को ढूँढती फिरती मेरी किस्मत दीवानी 



गर ये नादाँ सब्र होती तो मुनासिब था "अजय" …

Continue

Added by ajay sharma on January 7, 2013 at 11:00pm — 3 Comments

इस आसमान पर अधिकार तुम्हारा भी है...

ईश की अनुपम कृति मानव

और उसकी जननी तुम

फिर क्यों हो प्रताड़ित , अपमानित

पराधीन, मूक , गुमसुम ?

खुश होना तो कोई पाप नहीं

मुस्कुराने की इच्छा स्वार्थ नहीं!

नए विचारों की उड़ान भरो

शिक्षा का स्वागत करो !

जीवन न जाय व्यर्थ यूँ ही...

सदियों के बंधन से मुक्ति चाहिए ?

विद्रोह तो होगा, न घबराओ

निर्भय बनो, मानसिक सबलता लाओ !

रात बहुत गहरी हो चुकी

भोर का संदेसा दे चुकी !

मुस्कुराओ, पंख फैलाओ

उड़ने को तैयार हो जाओ

क्योंकि

इस आसमान पर…

Continue

Added by Anwesha Anjushree on January 7, 2013 at 6:00pm — 5 Comments

संकल्प

हाईकू (१७ वर्ण, ५,७,५.)

भारतवर्ष

नारी देवी रुप है,

देवों में आस्था.

...........

तुम युवा हो,

माताएं व्यथित हैं,

सोना मना है,

..............

यौन शोषण,

सब संकल्प करें,

अब फांसी दो.

...........

पुलिस हा हा..

नारी असुरक्षित,

सब सुधरें.

..........

सभ्य समाज,

यह भी संभव है,

प्रण कर लें.

...............

बीता बरस,

युवा जाग गया है,

उम्मीद…

Continue

Added by Ashok Kumar Raktale on January 6, 2013 at 7:00pm — 9 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
रे मन करना आज सृजन वो / डॉ. प्राची

रे मन करना आज सृजन वो

भव सागर जो पार करा दे l

निश्छल प्रण से, शून्य स्मरण से

मूरत गढ़ना मृदु सिंचन से,

भाव महक हो चन्दन चन्दन

जो सोया चैतन्य जगा दे l

रे मन करना आज सृजन वो

भव सागर…

Continue

Added by Dr.Prachi Singh on January 6, 2013 at 11:00am — 59 Comments

मैंने कुछ पंख जोड़ रखे हैं

मैंने कुछ पंख जोड़ रखे हैं 

कुछ रंगीन कुछ बदरंगे हैं

ज़रा हलके से हैं ये थोडे से 

फूलों के संग ही मोड़ रखे हैं



मेरे पंखों में खुशबू फूलों की

उड़ेंगे संग में सुरभि की तरह

मन की उड़ान से अब क्या होगा

सच में उड़ना है बोल सच्चे हैं

कोई कहता है ज्ञान सागर है 

मगर चिंतन में डुबकियां ही नहीं

कोई उड़ता है हवा बाजों सा

कहीं बैसाखियों…

Continue

Added by SUMAN MISHRA on January 5, 2013 at 11:30pm — 2 Comments

वो दिन कितने प्यारे थे

वो दिन कितने प्यारे थे

गाँव गाँव और

शहर शहर में 

प्रेम पगे गलियारे थे ......

स्वार्थ नहीं

इक अपनापन था

परहित में

जीवन-यापन था

अमन चैन के

रंग में रंगे 

आलोकिक भुनसारे थे ..........

कोई बुराई

नहीं करता था 

अविश्वास

सदा मरता था 

दोस्त दोस्त से

आस लगाये 

राग द्वेष अंधियारे थे ............

इक होती थी

सबकी राय

कोई अपनी

नहीं चलाय

संग में

जब तब 

होती मस्ती …

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 5, 2013 at 3:30pm — 6 Comments

नीरज के ८९ वें जन्म दिन पर काव्यांजलि: संजीव 'सलिल'

कालजयी गीतकार नीरज के ८९ वें जन्म दिन पर काव्यांजलि:

संजीव 'सलिल'

*

गीतों के सम्राट तुम्हारा अभिनन्दन,

रस अक्षत, लय रोली, छंदों का चन्दन...

*

नवम दशक में कर प्रवेश मन-प्राण तरुण .

जग आलोकित करता शब्दित भाव अरुण..

कथ्य कलम के भूषण, बिम्ब सखा प्यारे.

गुप्त चित्त में अलंकार अनुपम न्यारे..

चित्र गुप्त देखे लेखे रचनाओं में-

अक्षर-अक्षर में मानवता का वंदन

गीतों के सम्राट तुम्हारा अभिनन्दन,

रस अक्षत, लय रोली, छंदों का…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on January 5, 2013 at 11:01am — 10 Comments

ग़ज़ल-जिंदगी हम भी समर तक आ गये

जिंदगी हम भी समर तक आ गये।
गाँव से चलकर नगर तक आ गये।।

मुस्कुराते - मुस्कुराते वो सभी …,
रास्ते के पेड घर तक आ गये।

सामने आते ही उनके यूँ हुआ,
ज़ख़्म सब दिल के नज़र तक आ गये।

खूबसूरत सी बला लगती है वो,
बाल जब सर के कमर तक आ गये।

एक जंगल में पुराना पेड हूँ,
काटने को वो इधर तक आ गये।

प्यार एहसासों से निकला इस तरह,
दिल के रिश्ते अब खबर तक आ गये।।

……सूबे सिंह सुजान

Added by सूबे सिंह सुजान on January 4, 2013 at 9:30pm — 6 Comments

एक नवगीत का प्रयास

मिर्च बुझी तेजाबी आंखें

हांक रहे चीतल,मृग, बांके

बुदबुद करते मूड़ हिलाते

वेद अनोखे बांच रहे हैं



अर्ध्‍वयु हैं पड़े कुंड में

जातवेद भी खांस रहे हैं



चमक रही कैलाशी बातें

दमक रही तैमूरी रातें

सांकल की ठंडी मजबूरी

खाप जतन से जांच रहे हैं



विविध वर्ण के टोने-टोटके

कितने सूरज फांस रहे हैं



बागड़बिल्‍लों के कमान में

पंजे, नख मिलते बयान में

पड़ी पद्मिनी भांड़ के पल्‍ले

खिलजी जमकर नाच रहे हैं



मिनरल वाटर हलक…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on January 4, 2013 at 5:06pm — 3 Comments

इंसानो की बस्ती

इंसानो की बस्ती

हर ख्वाहिश हो जाये पूरी, यहाँ किसकी ऐसी हस्ती है,

लुटता है इंसान वहाँ, जहाँ इंसानो की बस्ती है ।

इंसानियत दफन हो गई, हैवानियत सब पे भारी है,

आत्मा है गिरवी सबकी, बेईमानो कि साहूकारी है,

बहता है लहु सडको पर, पानी की बुँदे बिकती है 

लुटता है इंसान वहाँ, जहाँ इंसानो की बस्ती है ।

  

नारी ही नारी की आज, दुश्मन बन के बैठी है,

बच गई कोख मे तो, आग के हवाले…

Continue

Added by बसंत नेमा on January 4, 2013 at 4:30pm — 4 Comments

एक दिन तुम देखना

एक दिन तुम देखना 

एक दिन तुम देखना



खौफ और आतंक ऐसे

बढ़ रहा है आज कैसे

लाज लुटती राह में यूँ 

लगता अंधा राज जैसे 



संस्कृति के जो हैं भक्षक सब बनेंगे सरगना ...........................



मान मर्यादा मिटाई

नींव रस्मों की हिलाई

अपने में सीमित हुई है

आजकल की ये पढ़ाई



बदलो ये सब अब नहीं तो होगा खुद को कोसना ..............................



शून्य ही बस अंक होगा 

पोखरों में पंक होगा

शुष्क होंगे वन और पर्वत  …

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 4, 2013 at 3:58pm — 10 Comments

मंगल मय हो नूतन वर्ष - लतीफ़ ख़ान

लिख कर अनुभव पत्रिका पार क्षितिज के पुराना साल गया |

ले कर कोरे पृष्ठ सहस्त्र देखो आया है फिर साल नया |

    हों सम्बंध नए हों अनुबंध नए,

    नव निर्मित बंधों के हों तटबंध नए,…

Continue

Added by लतीफ़ ख़ान on January 4, 2013 at 3:18pm — 8 Comments

.........ग़ज़ब है.

मेरे दिलबर का जो भी ढब है.. ग़ज़ब है.

रूठ जाने का जो सबब है.. ग़ज़ब है.



ज़िंदगी से गिला बहुत है हमे, पर,

साँस लेने की जो तलब है.. ग़ज़ब है…



आम इंसान हूँ मै,तुम सा ..तुम्ही सा,

लोग कहते हैं तू अजब है…ग़ज़ब है.



वो है संग-दिल, है बेरहम, है सितमगर,

उसपे भी लखनवी अदब है.. ग़ज़ब है.



वो जिसे आज तक किसी ने न देखा,

ज़र्रे-ज़र्रे मे उसकी छब है …ग़ज़ब है.



हमने पूछा था,”चाँद, कब है अमावस?”

चाँद खुद पूछ बैठा, कब है??..ग़ज़ब…

Continue

Added by rajneesh sachan on January 4, 2013 at 3:04pm — 8 Comments

देख बहे अश्कों की धारा , जब चली गुड़िया हमारी !

अकेल शेरनी
देख बहे अश्कों की धारा , जब चली गुड़िया हमारी !
दूर अकेल रहेगी कैसे , आँखों की पुतली हमारी !
माँ बाप को घर में छोड़कर , सपने ले चली दुलारी !
यों मिलती रही कामयाबी , खिलती जाती फुलवारी !
जब कामयाब हो कर  निकली , बैरी राहों में आये !
देख कर अकेल शेरनी को , राहों में जाल बिछाए !
तडपती रही शिकार बनकर , बेबस पर  रहम न आये !
वर्मा  गयी वो इस दुनिया से , कैसे आंसू ना  आये !
श्याम नारायण वर्मा

Added by Shyam Narain Verma on January 4, 2013 at 2:31pm — 2 Comments

तेरी आँखों के सिवा और नज़ारा क्या है

तेरी आँखों के सिवा और नज़ारा क्या है

तुझमे मिलती है खुशी और सहारा क्या है

तेरी यादों की कोई रुत तो नहीं होती, गो  

दिल तड़प तो रहा है ये इशारा क्या है

गम हैं तो और मुहब्बत के सिवा किस्मत में

और गम में किसी हो मौज इज़ारा क्या है

चाँद निकले है शब-ए-हिज़्र मगर कह दे तू

माह-ए-दह्र में कुछ भी यूँ हमारा क्या है

दिल जला है यूँ बहुत, खाक सिवा सर पे तू

तेरी यादों के सिवा और ये हारा क्या है !!



नोट:- मैंने ये गज़ल ३०मि में लिखी है.…

Continue

Added by Raj Tomar on January 4, 2013 at 2:00pm — 2 Comments

अधजल गगरी छलकत जाए

आधा सुन के खूब सुनाये 

अधजल गगरी छलकत जाए



धैर्य नहीं इक पल भी रखना

चाहे मूरख सब कुछ चखना

क्या है मीठा क्या है खारा

नहीं भा रहा उसे परखना



अंतर में रख घोर अन्धेरा

बाहर बाहर दीप जलाए....................



सुने नहीं वो बात बड़ों की

आंके बस औकात बड़ों की

दिन को देख के नहीं सोचता 

गुजरे कैसे रात बड़ों की 



बिन अनुभव के बड़ा न कोई 

कौन भला इसको समझाए ........................



जो चाहूँ मैं अभी बनालूं

कच्ची माटी ऐसे…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 3, 2013 at 3:41pm — 9 Comments

बोलो जी पाओगी ..........

तुम ने कहा,

तुम जी लोगी मेरे साथ हर हाल में,

मुझे शायद इसके लिये भी,

शुक्रिया अदा करना चाहिये तुम्हारा ......

 

पर क्या तुम जानती हो,

इस कमबख्त दुनियां में

जहां कोई किसी का सगा नहीं,

हालात कैसे हो सकते है....

 

बोलो जी पाओगी,

जब दुनियां भर के थपेड़े,

बिना दरबाजा खटखटाये,

हमारे कमरे में दाखिल होंगे......

 

बोलो जी पाओगी,

जब मेरी शायरी में,

तिलमिलाएगी भूख,

नीम से कडबे…

Continue

Added by अमि तेष on January 3, 2013 at 2:58pm — 13 Comments

लघु कथा - कीमती पत्र,

तुम लड़की जात हो , तुम्हें अपने दायरे में रहना चाहिए, तुम अनवर की तरह नहीं हो वो तो लड़का है , उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा , लेकिन तुम्हारे साथ अगर कुछ उंच नीच हो गया तो हम सबका जीना मुहाल हो जाएगा,,,,ये सीख हमेशा गाँठ बाँध कर रखना.

रोज ही हिदायतों का पुलिंदा शबनम को बाँध कर थमाया जाता था, अब्बू तो दुबई चले गए दो साल पहले , बचे दादी, अम्मी और छोटा भाई अनवर. इस अनवर में छोटे…

Continue

Added by SUMAN MISHRA on January 3, 2013 at 2:30pm — 3 Comments

अब तो मेरी सांसे भी /तेरी जिद से हार गई

मेरी बिखरी सुबह ओंटकर

तुम्‍हीं खड़े थे बाट जोहकर

कभी रूठकर कभी मनाकर

भाव भंगिमा नए दिखाकर

हर फिसलन पर भीत उकेरे

तुम्‍हीं थाम उस पार गई



लिखकर पहला पत्र तुम्‍हीं को

कलम मेरी पथ हार गई



सदा सुहागन तेरी काया

जब समेटती मेरी छाया

और ठठाते हुल्‍लड़ दिन पर

दांत पीसता सूरज जी भर

तभी दमकते श्रृंग ओट…
Continue

Added by राजेश 'मृदु' on January 3, 2013 at 2:22pm — 12 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़
"आ. भाई सत्यनारायण जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
14 hours ago
Dayaram Methani commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, गुरु की महिमा पर बहुत ही सुंदर ग़ज़ल लिखी है आपने। समर सर…"
yesterday
Dayaram Methani commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो
"आदरणीय निलेश जी, आपकी पूरी ग़ज़ल तो मैं समझ नहीं सका पर मुखड़ा अर्थात मतला समझ में भी आया और…"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर और उम्दा प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"आदाब।‌ बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब।"
Oct 1
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी।"
Sep 30
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी। आपकी सार गर्भित टिप्पणी मेरे लेखन को उत्साहित करती…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"नमस्कार। अधूरे ख़्वाब को एक अहम कोण से लेते हुए समय-चक्र की विडम्बना पिरोती 'टॉफी से सिगरेट तक…"
Sep 29
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"काल चक्र - लघुकथा -  "आइये रमेश बाबू, आज कैसे हमारी दुकान का रास्ता भूल गये? बचपन में तो…"
Sep 29
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"ख़्वाबों के मुकाम (लघुकथा) : "क्यूॅं री सम्मो, तू झाड़ू लगाने में इतना टाइम क्यों लगा देती है?…"
Sep 29
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"स्वागतम"
Sep 29
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"//5वें शेर — हुक्म भी था और इल्तिजा भी थी — इसमें 2122 के बजाय आपने 21222 कर दिया है या…"
Sep 28

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service