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मिर्च बुझी तेजाबी आंखें
हांक रहे चीतल,मृग, बांके
बुदबुद करते मूड़ हिलाते
वेद अनोखे बांच रहे हैं

अर्ध्‍वयु हैं पड़े कुंड में
जातवेद भी खांस रहे हैं

चमक रही कैलाशी बातें
दमक रही तैमूरी रातें
सांकल की ठंडी मजबूरी
खाप जतन से जांच रहे हैं

विविध वर्ण के टोने-टोटके
कितने सूरज फांस रहे हैं

बागड़बिल्‍लों के कमान में
पंजे, नख मिलते बयान में
पड़ी पद्मिनी भांड़ के पल्‍ले
खिलजी जमकर नाच रहे हैं

मिनरल वाटर हलक उड़ेले
वे दरिया को टांस रहे हैं

मीलों तक तम देता पहरे
घूर रहे नश्‍तर भी गहरे
विग्रह सारे करके वर्जित
अब पूजन भी खांच रहे हैं

ओढ़ कुहासा कितने बादल
सावन भादो धांस रहे हैं

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Comment

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Comment by राजेश 'मृदु' on January 8, 2013 at 11:01am
बहुत आभार अजय जी
Comment by राजेश 'मृदु' on January 8, 2013 at 11:00am
बहुत आभार अजय जी
Comment by ajay sharma on January 6, 2013 at 10:18pm

चमक रही कैलाशी बातें
दमक रही तैमूरी रातें
सांकल की ठंडी मजबूरी
खाप जतन से जांच रहे हैं

विविध वर्ण के टोने-टोटके
कितने सूरज फांस रहे हैं

wha wah wah wah kitne tone totke karte hai bhasha aur shilp ke madhyam se bahut bahut shubkamnayen ----aap rajesh kumar ji 

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