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इंसानो की बस्ती

हर ख्वाहिश हो जाये पूरी, यहाँ किसकी ऐसी हस्ती है,

लुटता है इंसान वहाँ, जहाँ इंसानो की बस्ती है ।

इंसानियत दफन हो गई, हैवानियत सब पे भारी है,

आत्मा है गिरवी सबकी, बेईमानो कि साहूकारी है,

बहता है लहु सडको पर, पानी की बुँदे बिकती है 

लुटता है इंसान वहाँ, जहाँ इंसानो की बस्ती है ।

  

नारी ही नारी की आज, दुश्मन बन के बैठी है,

बच गई कोख मे तो, आग के हवाले होती है,

दहलीजो के अन्दर आज, बहन बेटीयाँ लुटती है,

लुटता है इंसान वहाँ, जहाँ इंसानो की बस्ती है ।

लहु पिलाते है अपना, खुद गंगाजल को मोहताज है,

कन्धो पर जिसने घुमाया, खुद कन्धे को मोहताज है,

तरशती बंजर आंखो से, आसूँ कि बारिश झारती है,

लुटता है इंसान वहाँ, जहाँ इंसानो की बस्ती है ।

 

बनते है हमराज और, अस्तीनो मे खंजर रखते है,      

रुप सुदामा का लेकर , आज बिभीषण मिलते है,

दोस्त बन गये है दुश्मन, मांझी डुबोते कस्ती है ,

लुटता है इंसान वहाँ, जहाँ इंसानो की बस्ती है ।

 

अपनो की परिभाषा भुले, गैरो मे अपने खोजते है,

चन्द सिक्को की खातिर, हाट मे रिश्ते बिकते है,

परँपराओ की हदे तोड कर, संस्कारो की बोली लगती है,

लुटता है इंसान वहाँ, जहाँ इंसानो की बस्ती है ।

हर ख्वाहिश हो जाये पूरी, यहाँ किसकी ऐसी हस्ती है ॥       

"मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by बसंत नेमा on January 7, 2013 at 10:49am

आदरणीय प्राची दीदी ,

आप का बहुत बहुत ध्न्यवाद ,  आप के सुझावो का मै आदर करता हु और अपनी गलतीयो पे ध्यान दुंगा . बस आप बडॆ लोगो का इसी प्रकार सहयोग की अपेक्षा करता रहुंगा 

श्री अशोक कुमार जी और श्री अरुन की आप लोगो का ध्न्यवाद  और आभार ... 

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 6, 2013 at 1:48pm

आदरणीय बसंत जी प्रथम प्रयास हेतु आपको बधाई, ह्रदय की बेदना को सुन्दरता के साथ प्रस्तुत किया है, जैसा की प्राची दीदी ने कहा है उनकी बातों पर ध्यान दीजियेगा, धीरे-२ सब ठीक हो जायेगा. सादर.

Comment by Ashok Kumar Raktale on January 6, 2013 at 11:06am

हर ख्वाहिश हो जाये पूरी, यहाँ किसकी ऐसी हस्ती है,

लुटता है इंसान वहाँ, जहाँ इंसानो की बस्ती है ।

आदरणीय बसंत जी सुन्दर रचना प्रस्तुत की है, नारी के साथ ही वृद्ध माता पिता की पीड़ा पर चिंता व्यक्त की है. बहुत बढ़िया बधाई स्वीकारें टंकन त्रुटी पर आदरेया डॉ. प्राची जी ने लिखा ही है.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 5, 2013 at 7:06pm

समाज में व्याप्त नैतिक अवमूल्यीकरण से आहत मन के उद्गारों को व्यक्त करने का सुन्दर प्रयास आदरणीय बसंत जी. 

आपकी प्रथम प्रवष्टि पर हार्दिक बधाई 

कहीं कहीं टंकण की त्रुटियाँ रह गयी हैं, उन्हें आप एडिट अवश्य कर लें.

सादर.

कृपया ध्यान दे...

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