अजब हिंद की गजब कहानी कैसे मैं बतलाऊ ,
जो जो लुटता हैं हमें उसको मेहमान बनाऊ ,
अफजल गुरु की करनी को आप नहीं भूले होंगे ,
अजमल कसाब क्या किया सोच के जलते होंगे ,
अंग्रेजो की क्या बोलू मुगलों की राज सुनाऊ ,
अजब हिंद की गजब कहानी कैसे मैं बतलाऊ ,
लुट मची लुट लो जो मुग़ल अंग्रेज किये ,
माँ भारती के दामन पर सौ सौ दाग दिए ,
दिल्ली वाले लुट रहे हैं कमनवेल्थ के नाम पर ,
यु पि में भी लुट मची हैं मूर्ति वाला काम पर ,
ये सोचने की समय नहीं हैं दर्द कैसे…
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Added by Rash Bihari Ravi on September 3, 2010 at 5:54pm —
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Added by Subodh kumar on September 3, 2010 at 5:00pm —
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दोस्ती, एक ऐसा शब्द इसे जितना परिभाषित करने का प्रयास करो उतना विस्तार पाता है। पर न तो इसमें उलझन हैं और न ही किसी प्रकार के विरोधाभास का डर रहता है। अगर आपकी मित्रता पक्की है तो उससे अच्छा कोई अन्य रिश्ता नहीं। सदियों की विचारधाराओं के सम्मिश्रण से तैयार निष्कर्ष से यह पता चलता है कि समाज के हर वर्ग में दोस्ती की जितनी भी मिसालें हैं सभी यही कहती हैं। मसलन कृष्ण-सुदामा की मित्रता, मित्रता का दायरा परिभाषित नहीं है, फिर भी मित्रता करते समय यह विचार अवश्य ही कर लेना चाहिए कि आपकी मित्रता…
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Added by Jaya Sharma on September 2, 2010 at 7:30am —
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सभी ओपन बुक्स परिवार को जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
जन्माष्टमी के पावन पर्व पर आईये हम और आप सब मिलकर सच्चिदानन्द घनआनन्द आनन्द स्वरूपा श्री कृष्ण भगवान को एक बार पुनः इस धरती पर अवतरित हो पापों का नाश करने का आर्त निवेदन करें!
हे देवताओं के स्वामी, सेवकों को सुख देने वाले, शरणागत की रक्षा करने वाले भगवान्! आपकी जय हो! ज्य हो!! हे गो-ब्राह्मणों का हित करनेवाले, असुरों का विनाश करने वाले, समुद्र की कन्या (श्रीलक्ष्मी जी)- के…
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Added by Narendra Vyas on September 2, 2010 at 6:44am —
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घर तू आएगा ये जानती थी मैं...
इसलिए तो मटकी है जान के थोड़ी ऊँची बाँधी...
गुम हो तुझे कुछ पल निहार तो सकूँगी...
वरना तुझे देखने उमड़ पड़ती है हर पल गोपियों की आंधी...!!
::::जूली मुलानी::::
::::Julie Mulani::::
Added by Julie on September 2, 2010 at 1:30am —
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*
बाल गीत:
लंगडी खेलें.....
आचार्य संजीव 'सलिल'
*
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*
एक पैर लें
जमा जमीं पर।
रखें दूसरा
थोडा ऊपर।
बना संतुलन
निज शरीर का-
आउट कर दें
तुमको छूकर।
एक दिशा में
तुम्हें धकेलें।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*
आगे जो भी
दौड़ लगाये।
कोशिश यही
हाथ वह आये।
बचकर दूर न
जाने पाए-
चाहे कितना
भी भरमाये।
हम भी चुप रह
करें…
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Added by sanjiv verma 'salil' on September 1, 2010 at 10:18pm —
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रंगीन आतंकवाद
'जननी जन्म भूमिष्च स्वर्गादपि गरीयसि' कि भावना से ओत-प्रोत एक युवा, सन्यासी,स्वामी विवेकानंद ने शिकागो कि धरती पर विश्व धर्म सम्मेल्लन में अपने व्याख्यान का प्रारंभ "DEAR SISTER AND DEAR BROTHER ...." से करके पूरी दुनिया में विश्व बंधुत्व के भाव से हिंदुस्तान का परचम लहराने वालI सन्यासी उस समय अपने भगवा वस्त्र में हिदुस्तान का मुकुट बना चमक रहा था,जिसे याद करके आज भी करोनो युवा उत्साह और स्फूर्ति व् नए उमंग से भर जाते हैं. उस सन्यासी, युवा को क्या पता था कि आगामी…
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Added by alka tiwari on September 1, 2010 at 5:42pm —
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------- पगली -----ऊपर वाले तेरी दुनिया कितनी अजब निराली है
कोई समेट नहीं पाता है किसी का दामन खाली है |
...एक कहानी तुम्हें सुनाऊँ एक किस्मत की हेठी का
न ये किस्सा धन दौलत का न ये किस्सा रोटी का
साधारण से घर में जन्मी लाड़ प्यार में पली बढ़ी थी
अभी-अभी दहलीज पे आ के यौवन की वो खड़ी हुई थी
वो कालेज में पढ़ने जाती थी कुछ-कुछ सकुचाई सी
कुछ इठलाती कुछ बल खाती और कुछ-कुछ शरमाई सी
प्रेम जाल में फँस के एक दिन वो लड़की पामाल हो गई
लूट लिया सब कुछ…
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Added by jagdishtapish on September 1, 2010 at 11:51am —
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जन्माष्टमी पर विशेष : नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की
मथुरा में कंस की दुष्टता दिनों-दिन बढ़ती जा रही थी। उसके अत्याचारों से त्रस्त जनता भगवान से नित्य प्रार्थना करने लगी। एक दिन आकाशवाणी हुई कि देवकी और वसुदेव की आठवी संतान कंस का सर्वनाश करेगी। इसके बाद कंस ने देवकी और वसुदेव को करागार में बंदी बना कर रख दिया। अब उनकी जो भी संतान होती उसे कंस मार डालता। परन्तु देवकी और वसुदेव ने यह निश्चय कर लिया था। कि वे अपनी आठवी संतान को जरुर बचायेंगे।…
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Added by Jaya Sharma on September 1, 2010 at 8:30am —
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आजकल रातों के सन्नाटे मे भी शोर बहुत है...........
शाम ढली नही फिर भी अंधेरा घोर बहुत है...........
सुना था मोहब्बत पत्थर को मोम कर देता है..........
लगता है बस इक तेरा ही दिल कठोर बहुत है..............
अपने अपने दिल को रखना यारों संभाल के.............
इस शहर मे आजकल घूम रहे हँसी चोर बहुत है...............
लगता है आज फिर टपकेंगी बस्ती की कई छतें...................
आसमान…
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Added by Pallav Pancholi on September 1, 2010 at 12:07am —
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अब नहीं याद मुझे वो शैदाई ख्वाब, ऐ बेवफा सनम...
जिसमें तेरी आँखों में जन्नत नज़र आया करती थी...
जिसमें तेरी साँसों की गर्मी से मेरी ठिठुरन जाया करती थी...
जिसमें होती थी रौशन रोज़ चांदनी रातें...
जिसमें तेरी मेरी धड़कन कुछ बहक सी जाया करती थी...
अब नहीं मज़ा देती वो पूर्णमासी की रातें...
जिसमें सारी रात चंदा निहारते बीत जाया करती थी...
जिसमें जुगनुओं की चमक से आँखें चौंध जाया करती… Continue
Added by Julie on August 31, 2010 at 9:00pm —
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वो जमाना याद हैं तेरा बन ठन के आना याद हैं ,
नहीं कटती थी छन मेरे बिना तेरा ये कहना याद हैं ,
साम को मिलते हो जाती थी रात यु ही बातो में ,
नहीं लगता था ये दुरी होगी अपनी मुलाकातो में ,
तेरी वादा वो सारी कसमे टीस देती हैं यादो में ,
तड़प रहा हु मैं रिम झिम रिम झिम भादो में ,
तेरे संग जो देखि बहारें आज ओ पतझर लगती हैं ,
तेरे संग बीते लम्हे आज हमको यु ही डसती हैं ,
करो तू मुझपे मेहरबानी मेरी यादो से चली जाओ ,
अब आई जो तेरी यादें…
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Added by Rash Bihari Ravi on August 31, 2010 at 8:30pm —
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जिंदगी एक खुली किताब है,
फिर भी ये किताब खुद के पास हो,
बेहतर
जो जाने कीमत इसकी,
जो जाने इज्जत इसकी,
जो इसके पन्नो का मोल समझे,
ये किताब हो तो उसके पास हो,
जो सर से लगाये यू ,
सरस्वती का वास हो,
भला हो या बुरा हो ,
अपना समझ कर जो माफ़ करे,
कुछ सीख नयी हो सीखलाने की,
दे वो सीख मृदुल मुस्कान से ,
जिंदगी की वो खुली किताब,
हो तो उसके पास हो |
Added by Dr Nutan on August 31, 2010 at 8:00pm —
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सुनो सुनो एक बात हमारी,
राधा किशन की हैं प्रेम कहानी ,
एक बार निकली राधा बन ठन के ,
सर पे दही साथ सखियन के ,
रास्ते में श्याम मिला की उनसे जोड़ा जोड़ी ,
राधा को उसने छेड़ा सखियो को यू ही छोड़ी ,
सुनो सुनो एक बात हमारी,
राधा किशन की हैं प्रेम कहानी ,
बंशी की तान बिना रहती परेशान ओ ,
सुनती जो तान ओ खो देती ज्ञान ओ ,
उनको भी कभी ना रहता था चैन ,
मौका मिले सखी सब को करते बेचैन ,
सुनो सुनो एक बात हमारी,
राधा किशन की हैं प्रेम कहानी…
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Added by Rash Bihari Ravi on August 31, 2010 at 8:00pm —
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क्यों आखिर हम क्यों सहे ,
अपने तिरंगा का अपमान ,
भाई आप लोग छोर दो ,
तिरंगा पार्टी हित बेवहार ,
कही पड़ा रहता हैं ये ,
एक छोटे डंडे के साथ ,
उसपे कोई तस्बीर होती हैं ,
फुल होती हैं या हाथ ,
मगर समझ में तब आता हैं ,
जब जाते हैं हम पास ,
ओह तिरंगा नहीं हैं अपना ,
ऐसा सोच होता उसका अपमान ,
क्यों आखिर हम क्यों सहे ,
अपने तिरंगा का अपमान ,
अरे ओ बुधजिवी ध्यान तो दो ,
आपमान करो ना तिरंगे का ,
देश हित में बदल दे अपना…
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Added by Rash Bihari Ravi on August 30, 2010 at 2:00pm —
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मन की बाते मान कर करना तू सब काम ,
मन पे तू जो छोड़ेगा माया मिलेगी या राम ,
मय के चक्कर में पड़ा हैं सारा ये संसार ,
मय तो ऐसी डायन हैं जो कर देगी बेकार ,
माँ बाप को छोड़ कर जो बने ससुराल की शान ,
उसकी हालत ऐसी होए जैसे कुकुर समान ,
मेरी बात जो बुरी लगे लेना गांठ तू बांध ,
काम वो कभी ना करना जिससे हो अपमान ,
पैसे के पीछे सभी भागे पैसा बना अनमोल ,
रिश्ता नाता ख़त्म हुआ अब हैं पैसों का बोल ,
नेता लोग को हम चुन दिए…
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Added by Rash Bihari Ravi on August 30, 2010 at 1:30pm —
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उन्हें खबर नहीं के दर्द कब उभरता है --
किसकी यादों की रहगुजर से कब गुजरता है --
जख्म भरने की कोशिशों में उम्र बीत गई --
एक भरता है तो फिर दूसरा उभरता है --|
इक अजनबी चुपके से मन के द्वार आ गया --
पागल हुआ मन और उनपे प्यार आ गया
उसने जो नाम ले के इक बार क्या पुकार लिया
हमको लगा के मिलन का त्यौहार आ गया |
जो शौक से पाले जाते हैं वो दर्द नहीं कहलाते हैं --
जो दर्द हबीब से मिलते हैं वो दर्द ही पाले जाते हैं
जब टूट जाये उम्मीद…
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Added by jagdishtapish on August 29, 2010 at 8:12pm —
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मित्रों ......
हड़ताल एक यज्ञ है
कर्मचारियों द्वारा लगाया गया नारा
घी और हुमाद
हडताली नेताओं के भाषण
वेदों के मंत्रोच्चार
उठने वाला धुयाँ
वार्ता के लिए बुलाया जाना
और मांगों को मनवा लेना
अभिस्ट की प्राप्ति ॥
चिल्ला रहा था
कर्मचारियों का नेता
इसलिए दोस्तों
जोर-जोर से नारे लगाओ ॥
जब लाल कोठी के निक्क्मो का वेतन
तिगुना हो सकता है ....
हमलोगों का क्यों नहीं ॥
Added by baban pandey on August 28, 2010 at 5:39pm —
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बाल गीत
माँ का मुखड़ा
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
मुझको सबसे अच्छा लगता -
अपनी माँ का मुखड़ा!
*
सुबह उठाती गले लगाकर,
नहलाती है फिर बहलाकर,
आँख मूँद, कर जोड़ पूजती ,
प्रभु को सबकी कुशल मनाकर. ,
देती है ज्यादा प्रसाद फिर
सबकी नजर बचाकर.
आँचल में छिप जाता मैं ज्यों
रहे गाय सँग बछड़ा.
मुझको सबसे अच्छा लगता -
अपनी माँ का मुखड़ा.
*
बारिश में छतरी आँचल की ,
ठंडी में गर्मी दामन की.,
गर्मी में…
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Added by sanjiv verma 'salil' on August 28, 2010 at 5:19pm —
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सामान्यतया अहिंसा का अर्थ कायरता से लगाया जाता है..जबकि अहिंसा का वास्तविक अर्थ होता है निडरता | दूसरे अर्थों में कहूँ तो 'अभय', जो भयजदा नहीं हो और ये ही निडरता ही नैतिकता का सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है. इंसान का निडर होना उसका सबसे अहम् गुण होता है. निडर और अभय व्यक्ति ही स्वतंत्र हो सकता है. हिंसक व्यक्ति सदा स्वयं को असुरक्षित और तनावग्रस्त महसूस करते हैं, साथ ही अप्रिय भी होते हैं। भगत सिंह और सुभाष चन्द्र बोस हिंसावादी नहीं थे..निडर थे..अभय थे..अपने आपको कभी परतंत्र नहीं समझा और इसी विचार को…
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Added by Narendra Vyas on August 28, 2010 at 4:27pm —
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