जन्माष्टमी पर विशेष : नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की
मथुरा में कंस की दुष्टता दिनों-दिन बढ़ती जा रही थी। उसके अत्याचारों से त्रस्त जनता भगवान से नित्य प्रार्थना करने लगी। एक दिन आकाशवाणी हुई कि देवकी और वसुदेव की आठवी संतान कंस का सर्वनाश करेगी। इसके बाद कंस ने देवकी और वसुदेव को करागार में बंदी बना कर रख दिया। अब उनकी जो भी संतान होती उसे कंस मार डालता। परन्तु देवकी और वसुदेव ने यह निश्चय कर लिया था। कि वे अपनी आठवी संतान को जरुर बचायेंगे। जैसे ही कृष्ण का जन्म हुआ वसुदेव उन्हें बांस की डलिया में छिपाकर नंदगाव ले आए और नंदबाबा के घर देने आए।
वर्षा है कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही है। खुशी के मारे यमुना जी उफन कर वसुदेव की टोकरी में लेटे कन्हैया के चरण चूमने का प्रयास कर रही है। कल्पना करते ही यह सारा का सारा दृश्य मेरी आंखों के सामने चल चित्र की तरह घूम गया। श्रावण मास की पूर्णिमा जिसे हम रक्षा बंधन के रुप में मानते है। उसके ठीक आठवे दिन कृष्ण जन्म महोत्सव पूरे भारत देश मे धूमधाम के साथ मनाया जाता है “जनमाष्टमी“ का प्रमुख उत्सव मथुरा और वृन्दावन में होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार धरती पर बढ़ रहे अपराधों ओर अत्याचारों को मिटाने के लिए द्वापर युग में विष्णु ने कृष्ण के रुप में अवतार लिया। जिन परिस्थितियों में कृष्ण ने जन्म लिया वे बड़ी विकट थी नंद बाबा ने उस बालक को रख लिया तथा अपने घर जन्मी कन्या को वसुदेव जी को दे दिया। जब कंस ने यह खबर सुनी कि देवकी ने आठवीं संतान को जन्म दिया है तो वह कारागार की ओर दौड़ा और जैसे ही उसने बच्ची को मारने के लिए उठाया वह कंस के हाथ से छूटकर देवी के रुप में प्रकट हुई और हंसते हुए बोली हे दुष्ट तुझे मारने वाला-कही और जन्म ले चुका है और अंतर्ध्यान हो गई।
बालपन से ही कृष्ण गोकुल वासियों के मनमोहन थे, उनके ह्दय की धड़कन थे। उन्हें माखन और दही बहुत प्रिय था। वे नित नई बाल लीला से नंदगांव के निवासियों को लुभाते । कृष्ण ने अनेक असुरों का नाश किया। तथा ब्रज के वासियों को विपदाओं से बचाया। कृष्ण के जन्म को मनाने के लिए पूरे श्रावण मास से झूलनोंत्सव और रासलीलाएं आयोजित की जाती है। आज के समय में मटकी से दही भरकर काफी ऊंचाई पर टांगते है। जिसे बिना किसी सहारे के एक समूह के लोग एक के ऊपर एक स्तंभ रुप में चढ़ते है और उस मटकी को फोड़ते हैं। जो समूह विजेता होता है उसे इनाम दिया जाता है। जिन शहरों में इस प्रकार की प्रतियोगिता आयोजित की जाती है उस शहर के प्रतिष्ठित नागरिक तथा व्यापारी वर्ग इनाम घोषित करते है। यह एक मनोरंजक दृश्य होता है।
कृष्ण मंदिरों में पूरे मास सतसंग, रासलीला तथा गोपाल काला आदि का आयोजन किया जाता है। जम्माष्टमी के दिन श्रद्धालु दिनभर उपवास करते हैं तथा मंदिर या अपने घर में रात 12 बजे कृष्ण जन्म मनाते हैं। घर में अनेक प्रकार के स्वादिष्ट पकवान, दूध, दही से उन्हें भोग लगाते है। फिर भोजन करते है।
कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व बताने के लिए शालाओं और मन्दिरों में कृष्ण के समय और लीलाओं की झांकिया लगाई जाती है। जिसमें यमुना किनारे गंेद खोलने का दृश्य, माखन चुराने का दृश्य, कालिया नाग से लड़ाई का दृश्य, गोर्वधन पर्वत उठाये हुए कृष्ण तथा रासलीला के दृश्य प्रमुख होते है।
आज आधुनिकता का बोलबाला है, हमारी पूजा का स्वरूप अवष्य बदल गया है, परन्तु श्रद्धा में कोई कमी नहीं। आज भी हम उसी भक्तिभाव से व्रत और पूजा करते हैं।
जया केतकी
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