For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रेम का पर्याय है दोस्ती : जया केतकी

दोस्ती, एक ऐसा शब्द इसे जितना परिभाषित करने का प्रयास करो उतना विस्तार पाता है। पर न तो इसमें उलझन हैं और न ही किसी प्रकार के विरोधाभास का डर रहता है। अगर आपकी मित्रता पक्की है तो उससे अच्छा कोई अन्य रिश्ता नहीं। सदियों की विचारधाराओं के सम्मिश्रण से तैयार निष्कर्ष से यह पता चलता है कि समाज के हर वर्ग में दोस्ती की जितनी भी मिसालें हैं सभी यही कहती हैं। मसलन कृष्ण-सुदामा की मित्रता, मित्रता का दायरा परिभाषित नहीं है, फिर भी मित्रता करते समय यह विचार अवश्य ही कर लेना चाहिए कि आपकी मित्रता सकारात्मक समकक्ष और सजातीय है। सजातीय से यहाँ तात्पर्य है - ऐसी मित्रता जो मानव से मानव के बीच हो , मानव से जानवर के बीच नहीं। सकारात्मक से तात्पर्य है कि जिससे आप मित्रता करना चाहते हैं वह भी आपसे मित्रता करने की इच्छा रखे। समकक्ष से तात्पर्य है कि वह मित्रता के योग्य हो।

श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता की बराबरी करने की कोई सोच भी नहीं सकता। श्रीकृष्ण ने सुदामा से मित्रता निभा कर दोस्ती का अद्भूत आयाम स्थापित किया है। उन्होंने यही बताया कि मित्रता में अमीरी-गरीबी, ऊंच-नीच, भेद-भाव जैसी भावना की कोई जगह ही नहीं होती है। श्रीकृष्ण स्वयं परमात्मा है परंतु उन्होंने मित्रता के वश में होकर सुदामा के चरण भी धोए और उनका यथा योग्य स्वागत किया।सुदामा को पलंग पर बिठाकर कृष्ण उनके पैर दबाने लगे।
गुरुकुल के दिनों में दोनों जंगल में लकड़ी लेने गए। मूसलाधार वर्षा होने लगी। एक वृक्ष के नीचे आसरा लिया। सुदामा के पास कुछ चने थे, वे चबाने लगे। आवाज सुनकर कृष्ण ने कहा कि क्या खा रहे हैं तो सुदामा ने सोचा सच-सच कहूँगा तो चने कृष्ण को भी देने पड़ेंगे। इसलिए बोले- क्या खाउगा, ठंड के मारे मेरे दांत बज रहे हैं। अकेले खाने वाला दरिद्र हो जाता है। सुदामा ने कहा पर अपनी दरिद्रता के बारे में कुछ भी नहीं बताया। कृष्ण बोले- भाभी ने मेरे लिए कुछ तो भेजा होगा। सुदामा संकोच वश पोटली छिपा रहे थे। मन में हंसते हैं कि उस दिन चने छिपाए थे और आज तन्दुल छिपा रहा है। जो मुझे देता नहीं है मैं भी उसे कुछ नहीं देता। सो मुझे छीनना ही पड़ेगा। उन्होंने चावल की पोटली छीनी और सुदामा के कर्मों को क्षीण करने के लिए चावल के कुछ दानों को ग्रहण किया।


इस संदर्भ में मुझे याद आती है वह कथा जो मैने बचपन में सुनी थी। एक बाग का माली और बंदर गहरे मित्र थे। माली बाग की देखरेख करता और बंदर पेड़ पर ही रहता। बंदर के कुछ और साथी भी आसपास के बाग में रहते थे। एक बार उस शहर में राजसी जश्न मनाया जा रहा था। दिन भर काफी धूम मचने वाली थी। माली ने सोचा यदि आज कोई उसका यह बाग सींच दे तो वह भी राजसी जश्न में शामिल हो सकेगा। उसे अपने मित्र बंदर का ख्याल आया उसने तुरंत ही उसे बुलाया और कहा बंदर भाई मेरा एक काम करोगे । बंदर ने हाँ कर दी। माली ने कहा आज तुम मेरा यह बाग सींच देना। बंदर तैयार हो गया। माली निश्चिंत हो कर चला गया। बंदर तो बंदर था। उसने 2-4 पौधे सींचे फिर सोचा कहीं ऐसा न हो कि पानी कम पड़ जाए- उसे एक युक्ति सूझी। उसने सोचा क्यों न इन पौधों की जड़ देख लूं। जिसकी जितनी बड़ी जड़ होगी उतना ही पानी डालूंगा। यह सोचकर वह एक-एक पेड़ उखाड़ता गया और पानी डालता गया। जब माली लौटकर आया तो बाग का हाल देखकर सर पकड़ लिया।

दोस्ती और प्रेम पूरक हैं एक-दूसरे के

जीवन मित्रों के बिना अधूरा है। दोस्ती ही एक ऐसा रिश्ता है जो हम खुद अपनी सोच-समझ से जोड़ते हैं। दोस्त हम खुद चुनते हैं, जीवन के हर कदम पर हमें अलग-अलग लोग मिलते हैं, कुछ से अच्छी जान-पहचान भी हो जाती है परंतु बहुत कम ही ऐसे होते हैं जिन्हें हम दोस्त कह सकते हैं। जिनसे मिलकर हमें आत्मीय खुशी का एहसास होता है। किसी भी मुश्किल समय में हमें जिस व्यक्ति की मदद की सबसे ज्यादा जरूरत होती है वह दोस्त ही होते हैं। मुसीबत चाहे जैसी भी हो आप सहज ही उससे उबर सकते हैं, बशर्ते आपका मित्र आपका हाथ न छोड़े। आपका दोस्त सच्चा है तो निःसंदेह आप दुनिया कुछ खुशनसीबों में से एक हैं।

यह रिश्ता बहुत महत्वपूर्ण होता है। लोग यह भूल जाते हैं कि जिससे मित्रता कर रहे हैं, उसके गुण क्या है। मित्र धनवान हो लेकिन अहंकारी नहीं, शक्तिशाली हो लेकिन आक्रमणकारी नहीं, वैभवशाली हो लेकिन भोगप्रवृत्ति का न हो। ऐसे आदमी से दोस्ती करना निरर्थक ही नहीं अपने लिए अपमान का कारण भी बन सकता है। मित्रता हमेशा भावनात्मक समर्पण देख कर करें, तभी निभेगी। उद्देष्यपूर्ण मित्रता है तो उसमें भी उद्देष्यों का ध्यान रखना जरूरी है। राम को सुग्रीव व उसके साथियों से इतनी जानकारी मिल गई थी कि सीता का अपहरण हुआ। कोई विमान से सीता को दक्षिण दिशा में ले गया। विषय था सीताजी की खोज। सुग्रीव ने राम को आश्वस्त किया। राम के पास यह विकल्प था कि वे सीता की खोज जैसे महत्वपूर्ण कार्य के लिए या तो सुग्रीव से मित्रता करें या बाली से। बाली उस समय बलशाली थे और राजा थे। राम ने मैत्री सुग्रीव से की क्योंकि बाली अहंकारी थे और अनुचित, अन्याय के प्रति विरोध नहीं करते थे। एक और महत्वपूर्ण पक्ष यह था कि राम और सुग्रीव की मैत्री हनुमानजी ने कराई। दोनों ने हृदय से प्रीति का कुछ भी अंतर नहीं रखा। यह राम की विशिष्टता थी कि उन्होंने सुग्रीव पर विश्वास किया। जिस पर विश्वास किया जाए, उसे पूरा अधिकार भी दिया जाए। राम ने सुग्रीव पर पूरा विश्वास कर अधिकार दिया कि वे सीता की खोज करें। इसी विश्वास की प्रेरणा का आधार था कि सुग्रीव ने अपनी पूरी ताकत सीता की खोज में लगा दी।

समय के साथ-साथ दोस्ती के मायने भी बदले हैं। आज अधिकतर दोस्ती अपना स्वार्थ, मतलब और स्टेटस देखकर की जाती है। बीते समय में दोस्ती का संबंध सिर्फ मन से होता था। ऐसे कई उदाहरण है जहां दोस्ती की महानता दिखाई देती है। राम और कृष्ण की मित्रता पूजनीय है, जिन्होंने अपने मित्रों के लिए सारी सीमाएं तोड़कर मित्रधर्म का पालन किया। राम ने सुग्रीव की मित्रता के लिए बाली वध किया था जिसे आज भी कुछ लोग राम के इस कार्य को गलत ही मानते हैं। परंतु राम ने मित्रता के लिए बाली वध कर सुग्रीव के कष्टों को दूर किया, राम के जीवन में उनके कई मित्र हुए और वे सभी मित्रों पर अपनी कृपा बरसाते रहे।

आधुनिकता की चकाचैंध ने आज दोस्ती को माध्यम बना दिया है। सामान्यतः आज के लोगों की मानसिकता यही होती है कि यदि कोई अपने काम आ सकता है तो उससे दोस्ती कर ली जाए और काम निकल जाने पर उस मित्र को भुलाने में देर नहीं करते। एक ओर मित्रता की महानता बताता हमारा इतिहास है वहीं दूसरी ओर आज की मित्रता। सामंजस्य, समर्पण, समझ और सहनशीलता एक अच्छे दोस्त की पहचान होती है। दोस्ती में कोई अमीरी-गरीबी या ऊँच-नीच नहीं होती। इसमें केवल भावनाएँ होती हैं, जो दो अनजान लोगों को जोड़ती हैं।

मित्रता को माध्यम न माना जाए। दोस्ती भावनाओं का वह अटूट रिश्ता है जिसमें शरीर अलग-अलग होते हैं पर दोनों की आत्मा एक होती है। अतः विपत्ति ही वह समय है जब हम अपने धीरज, धर्म, मित्र और पत्नी की परीक्षा करते हैं। सुख में तो सभी साथ देते हैं। जो दुख में साथ दे वही हमारा सच्चा हितैशी है। कलयुग में अल्प दुख भीमकाय दिखाई देता है और दुख के कारण धर्म और धीरज का साथ छूट जाता है। यहीं से शुरू होता है और भी ज्यादा बुरा समय। ऐसे में दुख में फँसे व्यक्ति के मित्र और पत्नी साथ दे तभी वह बच सकता है। परंतु ऐसा होता बहुत ही कम है। अतः यह समय ही परीक्षा का समय होता है। उस दुखी व्यक्ति के धर्म और धीरज की परीक्षा और परीक्षा उसके मित्र और पत्नी की सहनशीलता की।

महाभारत काल में यदि मित्रता का प्रसंग हो और दुर्योधन और कर्ण की मित्रता की बात न की जाए ऐसा कभी नहीं हो सकता। कर्ण-दुर्योधन की मित्रता का परिचय इस घटना से मिलता है जब कृष्ण संधि दूत बनकर हस्तिनापुर गए और लौटते समय उन्होंने कर्ण को अपने रथ पर बैठाकर बताया कि वे सूतपुत्र नहीं बल्कि कुंती पुत्र हैं। कहा कि यदि तुम पांडवों की ओर से युद्ध करोगे तो राज्य तुम्हें ही मिलेगा। कर्ण ने इस बात पर जो कहा वह उनकी दोस्ती की सच्ची मिसाल है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि पांडवों के पक्ष में कृष्ण आप हंै तो विजय तो पांडवों की निश्चय है। परंतु दुर्योधन ने मुझको आज तक बहुत मान-सम्मान से अपने राज्य में रखा है तथा मेरे भरोसे ही वह युद्ध में खड़ा है। ऐसी संकट की स्थिति में यदि मैं उसे छोड़ता हूँ तो यह अन्याय तो होगा ही मित्र धर्म के विरुद्ध भी होगा।

Views: 3150

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Nutan on September 4, 2010 at 5:23pm
Jaya ji.......aapne mitrtaa ko jis tarah se paribhaashit kiya aur us par itnaaa sundar lekh banaya .. aur hame krishn sudama ki mitrtaa aur any prasango se bhi mitrtaa ko varnit kiya... bahut sundar laga.. mitrtaa hota hee sabse sundar ristaa hai... aur riste me swaarth bhi aa sakta hai aur niji ho saktey hai......par mitrtaa niswarth aur unconditional hai... aapki rachnaa bahut sundar hai....dhanyvaad ..

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on September 2, 2010 at 6:31pm
जिस प्रकार से प्रेम unconditional होता है उसी प्रकार से मित्रता भी unconditional होती है| मित्रता में कोई लाग लपेट वाली बात हो ही नहीं सकती| समर्पण, त्याग और निस्वार्थ भावना मित्रता के महत्वपूर्ण ingrediant है|
आपके लेख में सुन्दर प्रसंगों के साथ मित्रता के रिश्ते का गहन विश्लेषण पढ़कर बहुत सुखद अनुभूति हुई|
श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पर्व की शुभकामनाएं|

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 2, 2010 at 10:03am
जया बहन, आपने बड़े ही खूबसूरती से दोस्ती शब्द की व्याख्या की है, बहुत सुंदर रचना, उम्मीद है आगे भी आप की रचना और अन्य रचनाओं पर आपकी बहुमूल्य टिप्पणी पढने को मिलती रहेगी
Comment by jagdishtapish on September 2, 2010 at 9:50am
--सामंजस्य, समर्पण, समझ और सहनशीलता एक अच्छे दोस्त की पहचान होती है।
दोस्ती में कोई अमीरी-गरीबी या ऊँच-नीच नहीं होती। इसमें केवल भावनाएँ होती हैं,
जो दो अनजान लोगों को जोड़ती हैं। माननीय जया जी दोस्ती पर उदाहरण सहित बहुत अच्छा लेख
बहुत खुश किस्मत होते हैं वो लोग --जिन्हें अच्छे दोस्त मिलते हैं --हमारा भी यही मानना है --अच्छी
किताब और अच्छे दोस्त --नसीब से ही नसीब होते हैं -----
ह्रदय से स्वागत करते हैं हम दोस्ती जैसे अति संवेदनशील विषय पर व्यक्त किये गए आपके विचारों का ---सादर --

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service