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बहार की व्यथा

बहार की व्यथा



अभी कुछ साल ही तो बीते हैं |

बसंत की तरह निरंतर प्रसन्नचित,

उजड़े चमन को भी खिला देने वाला मै,

साथ लिए चलता था सुरभित मलय पवनों को |



हर-एक गुलशन को चाहत थी मेरी,

मेरे स्पर्शों की, मेरे छुवन की |

हर कली मेरा स्पर्श पाकर फूल होना चाहती थी |

मै भी खुश होता, सबको खुश करता, आगे बढ़ जाता |



धीरे-धीरे सब कुछ बदला |

जगह, समाज, धर्म, मंदिर, मस्जिद,

मतलब सब कुछ |

तब मुझे दुःख नहीं हुआ |

मै क्या जानता था की इस…

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Added by आशीष यादव on November 19, 2010 at 11:00am — 16 Comments

मै आइना हूँ

मै, जो वाकिफ करता हूँ तुमको, तुमसे|

पहचान बताता हूँ तुम्हारी|

क्या हो तुम, किस बात पे गुरुर है तुम्हे,

सब दिखता हूँ मै|



खामियां क्या हैं? झलक रही हैं चेहरे पर,

ये मै ही हूँ, जो तुम्हे दिखता हूँ,

और बताता हूँ की तुम क्या हो|



आओ मेरे सामने, हकीकत बयां करूँगा|

यदि तुम मुझे तोड़ भी दो तो भी

तुम्हारी बुराइयां नहीं छिपेगीं|

मेरे टुकडो के बराबर गुना तुम्हारी खामियां नज़र आएगी|



इतने दूर क्यों खड़े हो?

कितने ऊँचाई पर हो, आओ मै… Continue

Added by आशीष यादव on November 19, 2010 at 10:43am — 5 Comments

योग और राजनीति का अनुलोम-विलोम

देश के जाने माने योगगुरू बाबा रामदेव अब राजनीतिक पारी खेलने की तैयारी में हैं। योग की घुट्टी पिलाकर रोग भगाने के बाद अब वे राजनीति की खुराक देंगे। तमाम लोग भी चाहते हैं कि राजनीति में बढ़ती जा रही गंदगी पर रोक लगे या फिर उसका सफाया ही हो जाए। लेकिन क्या बाबा रामदेव की मंशा को पंख लग पाएंगे ?

आए दिन नई बीमारी, नए रोग और उसके निदान के लिए जूझते देश-विदेश के हजारों वैज्ञानिक, डाक्टर। ऐसे में बाबा रामदेव ने प्राचीन युग से चल रहे योग को लोगों के सामने पेश किया, जिसका नतीजा भी लोगों को देखने को… Continue

Added by ratan jaiswani on November 19, 2010 at 10:00am — 4 Comments

बलिराम ने बनाई लकड़ी की सायकल

महंगाई ने जहां एक ओर आम लोगों की कमर तोड़ कर रख दी है। वहीं आम आदमी को अपने बच्चों के लिए सामान जुटाने में पसीना छूट जाता है। ऐसी महंगाई से निपटने के लिए यह सायकल उन लोगों के लिए कारगर साबित हो सकती है, जो अपने बच्चों को बड़ी कंपनियों की महंगी सायकलें खरीद कर नहीं दे सकते।

जी हां, यह है लकड़ी की सायकल, जिसे पौना गांव के युवक बलिराम कष्यप ने बनाया है। बाजार में बिक रही सायकलों के दाम 3000 रूपए से कम नहीं हैं, लेकिन बलिराम ने जो सायकल बनाई है उसकी लागत मात्र 1000 रूपए है, मजबूती इतनी कि तीन लोग… Continue

Added by rajkumar sahu on November 18, 2010 at 2:51pm — 2 Comments

निषानेबाजी में महारत मनीष

निशानेबाजी में देश भर में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके अभिनव बिंद्रा के नक्शे कदम पर जिले के पुलिस विभाग में पदस्थ आरक्षक मनीष राजपूत भी है, जिसने हाल ही में माना में आयोजित स्टेट शूटिंग चैम्पियनशिप में एक स्वर्ण व एक कांस्य पदक हासिल किया है। राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में इस जवान को अब तक 18 पदक मिल चुके हैं।

पुलिस लाइन जांजगीर में पदस्थ आरक्षक मनीष राजपूत की पहचान एक अच्छे निशानेबाज के रूप में है। इस जवान ने 29 अक्टूबर से 3 नवंबर तक माना रेंज में पुलिस अकादमी व जिंदल स्टील… Continue

Added by rajkumar sahu on November 18, 2010 at 2:26pm — 1 Comment

मालदार गरीब का मुखौटा

कई दिनों तक सोचने के बाद मेरे जेहन में ऐसा कोई विचार नहीं आ रहा था, जिसे मैं लिख सकता। पर अचानक ही सूझा कि देश में बढ़ती गरीबी पर लिखूं। सहसा ही ध्यान आया कि अब तो केवल मालदार गरीबों का ही बोलबाला है। ऐसे मालदार गरीबों से मेरा रोज ही पाला पड़ता है। जब मैं किसी गली से गुजरता हूं तो उनसे मेरा नमस्कार होता है, जिनके पास बंगला, कार समेत सभी एशोआराम के साजो-सामान हैं।

एक दिन मेरे पड़ोसी ने मुझे गरीब बनने की नसीहत दे डाली और वो सारे फण्डे बता डाले, जिससे मालदार होते हुए गरीबी का चोला ओढ़ा जा सके।… Continue

Added by rajkumar sahu on November 18, 2010 at 1:56pm — 2 Comments

दीपावली दीप

दीपावली दीप



दीपावलि की धवल पंक्तियाँ, देती आयीं सदा संदेशा I

छाया मिटे क्लेश कुंठा की, जीवन सुखमय रहे हमेशा I

छोटा बड़ा नहीं कोई भी, बीज साम्य के दीपक बोते I

इसी लिए हर घर के दीपक, केवल मिटटी के ही होते I



चाह यही यह दिव्य रश्मियाँ, हर मन को आलोड़ित करदें I

ये प्रकाश की मनहर किरणें, जीवन अंगना आलोकित कर देंI



रहे कामना यही ह्रदय में, मंगलमय हो हर जीवन I

प्रेम और सद्भाव बढायें, मिलकर सभी धनिक निर्धनI

देश प्रेम की प्रवल भावना, भरी…
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Added by Shriprakash shukla on November 18, 2010 at 12:30am — 3 Comments

प्यार में शर्त-ए-वफ़ा पागलपन

प्यार में शर्त-ए-वफ़ा पागलपन
मुद्दतों हमने किया, पागलपन

हमने आवाज़ उठाई हक की
जबकि लोगों ने कहा, पागलपन

जाने वालों को सदा देने से
सोच क्या तुझको मिला, पागलपन

लोग सच्चाई से कतरा के गए
मुझ पे ही टूट पड़ा, पागलपन

जब भी देखा कभी मुड़ कर पीछे
अपना माज़ी ही लगा, पागलपन

खो गए वस्ल के लम्हे "श्रद्धा"
मूंद मत आँख, ये क्या पागलपन

Added by Shrddha on November 17, 2010 at 6:00pm — 16 Comments

" माँ की ममता "

अरे ओ नौजवानों ,

अब उठो और

खुद से ये पूछो |

दिया जिसने तुम्हे है सब कुछ

उसी के दिल -

-से आज तुम पूछो

कभी हमसे भी पूछो ,

और लोगों से भी पूछो |

किया तुमने है क्या

उस माँ की खातिर

जिसने तुम्हे ममता परोसी है |

आँचल से लिपटकर जिसके

दुनिया ये सोती है |

जिसका जीवन बना आदर्श

आज फिर , ममता वो रोई है |

जिसने सभी के चेहरों पर

मुस्कान है लायी ,

वो ममता आज फिर

खुद हंस-हंस के रोई है |

जिसने खुद जगकर

हमको… Continue

Added by Akshay Thakur " परब्रह्म " on November 17, 2010 at 11:18am — 7 Comments

जब ना तुम होगी, ना तेरा आसरा होगा

जब ना तुम होगी, ना तेरा आसरा होगा
अल्लाह ! आने वाले दिन में न जाने क्या-क्या होगा !

सब भूल जाते है साथ में गुजारें लम्हें एक दिन,
वक़्त बदलेगा तो सब कुछ कितना बदल चुका होगा !

सफ़र में नए मोड़ पर कोई मिल जाएगा ही " राणा"
दिल जो मोम का हैं, लोहे में तबतक ढल चुका होगा !!

Added by Rana Navin on November 16, 2010 at 3:06pm — 5 Comments

कचरा बाई : हौसले का एक नाम

महज ढाई फीट कद होने के बावजूद चाम्पा की कचरा बाई का हौसला देख कोई भी एकबारगी सोचने पर विवश हो जायेगा। यह कहना गलत नहीं होगा कि कचरा बाई, हौसले का एक नाम है। एम् ए राजनीति में शिक्षा लेने वाली कचरा बाई हर किसी से जुदा लगती है, क्योंकि उसका कद ढाई फीट है। कुदरत ने कचरा बाई को भले ही कद काठी कम दिया हो, लेकिन उसके हौसले की उड़ान के आगे यह कमजोरी नहीं बन सकी। उसने कंप्यूटर की भी शिक्षा लेकार यह साबित कर दिया है कि जहाँ चाह होती है। वहां राह खुद बन जाती है। लोगों के बीच कचरा बाई को जैसा सम्मान मिलना… Continue

Added by rajkumar sahu on November 16, 2010 at 12:10pm — 2 Comments


मुख्य प्रबंधक
बलिया मे छठ पूजा, बागी की नजर से ....

सर्व शक्तिमान एवं प्रत्यक्ष भगवान सूर्य के उपासना का पर्व छठ पिछले दिनों उत्तर भारत सहित पूरे भारत मे काफी श्रद्धा और उल्लास से मनाया गया, बिहार से सटे उत्तर प्रदेश के बलिया जिले मे भी छठ का पवित्र त्यौहार धूम धाम से मनाया गया |

इस त्यौहार की खास बात यह है कि छठ पूजा मे प्रथम अर्ध्य डूबते हुये सूर्य को दिया जाता है तथा दूसरा अर्ध्य उगते हुये सूर्य का किया जाता है, यह परंपरा एक बहुत ही प्रसिद्ध कहावत कि " उगते सूर्य को सभी सलाम करते है तथा डूबते… Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 16, 2010 at 9:30am — 21 Comments

लम्स की तपिश

बस इक बार ही चखा था मैंने उठा के

तुम्हारा लम्स अपने ठंडी रूह से लेकिन

बरसों सुलगता रहा वो हिस्सा रूह में

इक चिंगारी की तरह पकiता रहा रूह को

बस इक लम्स की तपिश से जीती रही

चखती रहती रूह उस चिंगारी को धीरे-२

ज्यूँ- ज्यूँ मेरी रूह का दायरा बढ़ता गया

चिंगारी चखने की आदत बढती गयी

पर वक़्त के साथ मधम हो गयी है… Continue

Added by Venus on November 16, 2010 at 12:30am — 5 Comments

रात ना कटे तो तुम ऐसा करना ....

रात ना कटे तो तुम ऐसा करना ..

काली लम्बी इस रात के 3 टुकड़े करना



इक टुकडा काट के आसमान को दे देना



फिर दूसरा टुकडा दे देना तुम चाँद को

बचा हुया वो एक आखिरी टुकडा



तुम अपने पास अपने सरहाने रख लेना,



लेटे लेटे उसमे देखना बीता वक़्त हमारा

वो मिलना ,वो जीना,वो बिछड़ना हमारा

इस लम्बे से सफ़र में वो छोटा… Continue

Added by Venus on November 16, 2010 at 12:30am — 7 Comments

माल संस्कृति जिंदाबाद (व्यंग्य)

व्यंग्य



नया युग आ गया है, अरे भई पुराना जब और पुराना होगा तो नया नया युग तो आएगा ही, नए पैंतरे, नया दांव, नई उठापटक, और तरीके भी नए-नए। पुराने दौर में फिल्मों की नायिका गाती थी फूल तुम्हें भेजा है खत में ...क्या ये तुम्हारे काबिल है, अब की हीरोईन डांस कम एक्सरसाईज करते हुए सीधे किस पर आ जाती है, ओ बाबा लव मी, ओ बाबा किस मी। न फूल ढूंढने की जरूरत न खत लिखने की झंझट, मैगी नूडल्स की तरह, फटाफट तैयार, बस दो मिनट। बीच में न आशिक से मिलने के सपने न ही बाबुल से कोई बहानेबाजी, कि मैं तुझसे… Continue

Added by ratan jaiswani on November 15, 2010 at 9:00pm — 2 Comments

टीआरपी और पाखंड चेहरा

बात एक साल पुरानी है। सदी के महानायक अभिनेता अमिताभ बच्चन फिल्म पा दिसंबर 2009 में रिलीज हुई थी, जिसमें उन्होंने आॅरो के किरदार को निभाया है। इस फिल्म की दर्षकों में खासी चर्चा रही और पहली बार इस फिल्म के माध्यम से ऐसी अजीबो-गरीब बीमारी प्रोजेरिया, लोगों के सामने आया, जिसे जानकर हर कोई सोच में पड़ गया, क्योंकि डाॅक्टरों की मानें तो यह बीमारी, एक करोड़ में एक व्यक्ति को होती है। पा फिल्म में प्रोजेरिया बीमारी को दुनिया के सामने लाया गया है और इस फिल्म मे अभिनेता अभिताभ बच्चन ने 13 वर्षीय एक ऐसे… Continue

Added by rajkumar sahu on November 15, 2010 at 7:47pm — No Comments

ग़ज़ल:- आज़ादी की बस इतनी परिभाषा

ग़ज़ल:- आज़ादी की बस इतनी परिभाषा



पोर पोर पर प्रकृति ने फेंका पासा देख

क्यों उदास है तू बसंत की भाषा देख |





श्रमजीवी कलमें कहतीं रूमानी शेर

कैसी उभरी अंतस की अभिलाषा देख |





युग के विश्वामित्र ने फिर छेड़ी है रार

फिर त्रिशंकु की टूट रही है आशा देख |





ठूंठ भरी इस राह में रोड़े और छाले

इस पथ जाता कौन पथिक रुआंसा देख |





भूख ग़रीबी महंगाई और भ्रष्टाचार

आजादी की… Continue

Added by Abhinav Arun on November 15, 2010 at 3:25pm — 3 Comments

ग़ज़ल :- आग पानी है



ग़ज़ल :- आग पानी है



मुफलिसी में अब कहाँ है ज़िंदगी

आग पानी है धुआं है ज़िंदगी |





गिरते पड़ते भागते फिरते सभी

यूं लगे अँधा कुआं है ज़िंदगी |





हम जड़ों से दूर गुलदस्ते में हैं

गाँव का खाली मकां है ज़िंदगी |





अब तो हर एहसास की कीमत है तय

कारोबारी हम दुकाँ है ज़िंदगी



एक फक्कड़ की मलंगी देखकर

हमने जाना की कहाँ है ज़िंदगी |





हर… Continue

Added by Abhinav Arun on November 15, 2010 at 2:57pm — 4 Comments

मैंने सारे बंधन तोड़ दिए

मैंने सारे बंधन तोड़ दिए,

भंवर में ही उनको छोड़ दिए|

ऐसा उसने कहा था|



ये है बिलकुल हकीकत,

रहा मै वहीँ तक|

साथ में औरों को जब

वो जोड़ लिए........

मैंने सारे..................



वाकई मै गलत था,

इसका क्या मतलब था?

कुछ कहे ही बगैर

उनको छोड़ दिए............

मैंने सारे......................



नाव फिर कभी न बहती,

भार भी न वो सहती|

साथ दोनों को तन्हा ही

छोड़ दिए..................

मैंने… Continue

Added by आशीष यादव on November 15, 2010 at 10:00am — 6 Comments

गीत: मैं नहीं.... संजीव 'सलिल'

गीत:





मैं नहीं....





संजीव 'सलिल'



*



मैं नहीं पीछे हटूँगा,



ना चुनौती से डरूँगा.



जानता हूँ, समय से पहले



न मारे से मरूँगा.....



*



जूझना ही ज़िंदगी है,



बूझना ही बंदगी है.



समस्याएँ जटिल हैं,



हल सूझना पाबंदगी है.



तुम सहायक हो न हो



खातिर तुम्हारी मैं लडूँगा.



जानता हूँ, समय से पहले



न मारे से… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on November 15, 2010 at 1:00am — 2 Comments

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