For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बहार की व्यथा

अभी कुछ साल ही तो बीते हैं |
बसंत की तरह निरंतर प्रसन्नचित,
उजड़े चमन को भी खिला देने वाला मै,
साथ लिए चलता था सुरभित मलय पवनों को |

हर-एक गुलशन को चाहत थी मेरी,
मेरे स्पर्शों की, मेरे छुवन की |
हर कली मेरा स्पर्श पाकर फूल होना चाहती थी |
मै भी खुश होता, सबको खुश करता, आगे बढ़ जाता |

धीरे-धीरे सब कुछ बदला |
जगह, समाज, धर्म, मंदिर, मस्जिद,
मतलब सब कुछ |
तब मुझे दुःख नहीं हुआ |
मै क्या जानता था की इस जगह की बू इस कदर दूषित है |
धीरे-धीरे मेरी सुरभित गंध कब जहरीली गैस बनी,
इन्द्रधनुषी रंगों के बटवारों की भांति मै जान न सका,
कब बैगनी, कब नीला, कब हरा, नारंगी, लाल |

मेरा मन भी हर वस्तु की भाँति बदल गया |
खुशबू फैलाने की लालसा, इसकी भी जाती रही |
आज मै गुलशन खोजता फिर रहा हूँ |
कहीं कोई कली, कोई फूल नजर नहीं आते |
कोई कली मिले तो भी कुम्हला जाती है मेरे स्पर्श से |

मै कितना बदल चूका हूँ |
ये नयी जगह, नए लोग, प्रतिदिन सबकुछ नया |
पहले तो हर दिन और पुराना होता था|
ऐसे तो ख़त्म हो जाएगा गुलशन,
भाई चारे का, सौहार्द्र का |
फिर फूल कहाँ होंगे, कहाँ खिलेंगीं कलियाँ?
क्या ख़त्म हो जायेगी मेरे जैसी हर बहार?

Views: 725

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by आशीष यादव on August 31, 2011 at 10:43pm

monika ji, बहुत बहुत धन्यवाद|

Comment by monika on August 31, 2011 at 2:18am

आपकी कविता मे परिवर्तन का एक नया रंग देखने को मिला अच्छा लगा आपको पढ़ना. अच्छी रचना के लिए साधुवाद

Comment by आशीष यादव on August 24, 2011 at 6:46pm

aap logo ko meri ye kawita pasand aayi. mujhe bahut khushi mili.

aap logo ko dhanywaad.

Comment by Veerendra Jain on August 22, 2011 at 11:13pm

waah waah waah...bahut hi saarthak rachna..ashish ji..bahut bahut badhai...

Comment by Roli Pathak on August 22, 2011 at 2:38pm

मै कितना बदल चूका हूँ |
ये नयी जगह, नए लोग, प्रतिदिन सबकुछ नया |
आशीष जी, परिवर्तन को लेकर बहुत खूब अभिव्यक्ति है....
परिवर्तन ही जीवन है किन्तु जब सकारात्मक  से  नकारात्मक होने लगता है,
तब शोचनीय हो जाता है.....
फिर फूल कहाँ होंगे, कहाँ खिलेंगीं कलियाँ?
क्या ख़त्म हो जायेगी मेरे जैसी हर बहार?

आपकी इस सार्थक रचना हेतु साधुवाद..........

Comment by Abhinav Arun on August 21, 2011 at 9:18am
बसंत के मर्म को आपकी yuva कलम ने पकड़ा है और वो भी खूब | आपकी रचना में yah | एक नया और सुखद आयाम जुड़ा देख रहा हूँ  \ इस बदलाव को बनाये रखें | रचना एक ऋतु kee नज़र से समाज और उसकी  prakriti के परिवर्तन को रेखांकित करती है और साथ ही मुखर हस्तक्षेप भी | बहुत बहुत shubhkaamnayen !

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 21, 2011 at 1:16am

उत्फुल्लता का प्रतीक बहार के बिम्ब पर कही गयी इस रचना में मानवीय इकाई का आज की विडंबनाओं के अनचाहे संपर्क में आना तथा वैचारिक और मानसिक रूप से निरन्तर प्रदूषित होते चले जाना किसी संवेदनशील रचनाकार के साथ-साथ पाठक को भी कहीं दूर तक झकझोर कर रख देता है. युवा कवि की भाषा ताज़ग़ी लिये हुए है अस्तु आश्वस्त करती है. प्रयास-कर्म में  दीर्घकालिक निरन्तरता ही प्रयुक्त होते शब्दों को उमगते ऊर्जस्वी भाव के समीचीन संबल का कारण होगी. 

भविष्य में बेहतर रचनाधर्मिता हेतु अनेकानेक शुभकामनाएँ.

 

Comment by Shanno Aggarwal on August 21, 2011 at 12:51am

वाह ! आशीष बहुत खूब. बहार की व्यथा..और वो भी इतने खूबसूरत लहजे में. बधाई है आपको ऐसे लेखन पर.

Comment by आशीष यादव on November 24, 2010 at 9:05pm
vivek sir, dhanywad is upayukt jaankaari keliye.
Comment by विवेक मिश्र on November 24, 2010 at 8:42pm
बंधु आशीष जी, "मेरे जैसे हर बहार" के स्थान पर "मेरे जैसी हर बहार" होना चाहिए.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service