For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बस इक बार ही चखा था मैंने उठा के
तुम्हारा लम्स अपने ठंडी रूह से लेकिन
बरसों सुलगता रहा वो हिस्सा रूह में
इक चिंगारी की तरह पकiता रहा रूह को
बस इक लम्स की तपिश से जीती रही
चखती रहती रूह उस चिंगारी को धीरे-२
ज्यूँ- ज्यूँ मेरी रूह का दायरा बढ़ता गया
चिंगारी चखने की आदत बढती गयी
पर वक़्त के साथ मधम हो गयी है तपिश
अब दायरा और फैलने लगा है रूह का
और साथ ही बढने लगी है इसकी ठंडक

.....बस कभी आके इक बार फिर से
जरा सा चखा जाना रूह को अपना लम्स
..............कुछ साल और...जी लेगी बेचारी....
तुम्हारे इक लम्स की तपिश में ..........!

Views: 412

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Venus on February 3, 2011 at 5:35pm

आप सब का बहुत बहुत शुर्किया ..समय की कमी ..और अन्य व्यस्तताओं के कार्न मे आ न्ही पा र्ही हूँ..आप सब के क्मैंनेट्स ने बहुत हौंसला दिया..आप सब का तह ए दिल से शुर्किया

Take care

Comment by आशीष यादव on November 17, 2010 at 7:42am
विरह अग्नि में जलती एक आत्मा की आवाज को उजागर करती यह उत्तम रचना| पढ़ कर अच्छा लगा|
Comment by विवेक मिश्र on November 17, 2010 at 12:04am
OBO में आपका हार्दिक स्वागत है वीनस जी. आपकी रचनाओं को मैं पहले भी पढ़ता रहा हूँ और आपके गुलज़ार-प्रेम से भी वाकिफ हूँ. अभी-२ ये नज़्म भी पढ़ ली. पहली लाइन ही दिल छू लेती है और बार-२ दोहराने को जी करता है.

"बस इक बार ही चखा था मैंने उठा के
तुम्हारा लम्स अपने ठंडी रूह से"

गज़ब की अभिव्यक्ति है. हार्दिक बधाई.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on November 16, 2010 at 10:04pm
बहुत ही संजीदा और खूबसूरत नज़्म|

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 16, 2010 at 8:11pm
आदरणीया वीनस जी, बहुत ही सुंदर कविता आपने प्रस्तुत किया है, खास बात यह है कि इस कविता का कलेवर कुछ अलग तरह का लगा, सुंदर कविता , खुबसूरत भाव हेतु बधाई स्वीकार कीजिये |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service