दिन-प्रतिदिन स्वयं में ही ध्वस्त हो
विच्छेद हो कण-कण में बिखर जाती हूँ
आहत मन,थका तन समेटे दुःसाध्यता से…
ContinuePosted on March 8, 2011 at 5:30pm — 3 Comments
Posted on November 16, 2010 at 12:30am — 5 Comments
Posted on November 16, 2010 at 12:30am — 7 Comments
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venus जी, नमस्कार,
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