Added by vikas rana janumanu 'fikr' on May 13, 2011 at 1:00pm — 9 Comments
ग़ज़लContinue
अज़ीज़ बेलगामी
हर शब ये फ़िक्र चाँद के हाले कहाँ गए
हर सुबह ये खयाल उजाले कहाँ गए
अब है शराब पर या दवाओं पे इन्हेसार
जो नींद बख्श दें वो निवाले कहाँ गए
वो इल्तेजायें मेरी तहज्जुद की क्या हुईं
थी अर्श तक रसाई, वो नाले कहाँ गए
मंजिल पे आप धूम मचाने लगे जनाब
मुझ को ये फ़िक्र, पांव के छाले कहाँ गए
दस्ते कलम में आज भी अखलाक सोज़ियाँ
किरदारसाज थे जो रिसाले, कहाँ गए
गुलशन के बीच खिलने लगे…
Added by Azeez Belgaumi on May 13, 2011 at 10:11am — 16 Comments
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 13, 2011 at 6:00am — 5 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on May 12, 2011 at 3:57pm — 2 Comments
Added by vimla bhandari on May 11, 2011 at 1:37pm — 3 Comments
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 11, 2011 at 1:04pm — 5 Comments
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on May 11, 2011 at 8:42am — No Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on May 10, 2011 at 4:03pm — 2 Comments
औरत कभी मां है
कभी बहन, कभी बेटी
तो कभी पत्नी या प्रेयसी
इन सबसे अलग
औरत एक औरत भी है
अपने आप में मरती है
उफ! तक भी नहीं करती है और
पुरूष के अहं मो टूटने से
बचाए रखती है
वह जानती है
पुरूष एक बार टूट जाएगा तो
दुबारा जुड़ नहीं पाएगा
जबकि औरत?
औरत ने पाई है मिट्टी की प्रकृति
टूटते ही अपने आंसुओं से
गुथेगी खुद को, और जुड़ जाएगी
नई…
ContinueAdded by rajendra kumar on May 10, 2011 at 1:42pm — 2 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on May 10, 2011 at 11:44am — 3 Comments
मुक्तिका:
तुम क्या जानो
संजीव 'सलिल'
*
तुम क्या जानो कितना सुख है दर्दों की पहुनाई में.
नाम हुआ करता आशिक का गली-गली रुसवाई में..
उषा और संझा की लाली अनायास ही साथ मिली.
कली कमल की खिली-अधखिली नैनों में, अंगड़ाई में..
चने चबाते थे लोहे के, किन्तु न अब वे दाँत रहे.
कहे बुढ़ापा किससे क्या-क्या कर गुजरा तरुणाई में..
सरस परस दोहों-गीतों का सुकूं जान को देता है.
चैन रूह को मिलते देखा गजलों में,…
ContinueAdded by sanjiv verma 'salil' on May 10, 2011 at 10:03am — 11 Comments
Added by Veerendra Jain on May 10, 2011 at 12:21am — 7 Comments
Added by Rash Bihari Ravi on May 9, 2011 at 12:30pm — 1 Comment
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 9, 2011 at 6:30am — 9 Comments
ऐ काश! मेरे भी माँ होती ।
जब-जब मेरी अखियाँ रोती ।
लापरवाहियां दुख देती।
सिर पे मेरे हाथ फिरोती।
ऐ काश मेरे भी माँ होती।
ममतामयी जवानी खोती।
सीने पर ज्यूं चले करोती।
अंखियां बरसे जैसे…
Added by nemichandpuniyachandan on May 8, 2011 at 11:30pm — 5 Comments
Added by Abhinav Arun on May 8, 2011 at 7:00pm — 9 Comments
Added by dr a kirtivardhan on May 8, 2011 at 5:30pm — 5 Comments
ये नहीं कहूँगी की याद आ गई, क्योंकि उनको तो कभी भूलती ही नहीं, हाँ उनकी कमी का फिर से एहसास हुआ जब हर ओर माँ के अनुपम स्वरूपों को देखा आज मदर्स डे पर |
सुबह सुबह मुझे भी मेरे बच्चों की ओर से प्यार भरी मुस्कानों के साथ स्वयं बनाया हुआ कार्ड और उपहार मिला :)
सुख और दुःख का अजीब संगम था वो पल..नहीं ..सिर्फ वो पल नहीं ..आज का दिन ही शायद, तब माँ के लिए कोई निर्धारित दिन नहीं था किन्तु माँ थीं मेरे पास..आज वो नहीं, हाँ सशरीर तो नहीं किन्तु उनकी दी शिक्षा, संस्कार और स्नेह सदा ही…
Added by Lata R.Ojha on May 8, 2011 at 3:30pm — 2 Comments
Added by Lata R.Ojha on May 7, 2011 at 11:30pm — 11 Comments
सबसे पावन, सबसे निर्मल, सबसे सच्चा मां का प्यार
सबसे अनोखा, सबसे न्यारा, सबसे प्यारा मां का प्यार ।
बच्चे को ख़ुश देख-देख के, मन ही मन हंसता रहता
जब संतान पे विपदा आए, तड़प ही उठता मां का प्यार ।
सुख की ठंडी छांव में शीतल पवन के जैसा लहराता…
Added by moin shamsi on May 7, 2011 at 5:00pm — 8 Comments
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