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महीन रेशम की डोरी है ये.

mere dost sankalp sharma ki sagaye pe kuch bhav vyakat karne ki koshish mai ye gahzal huee hai. umeed hai aapko pasand ayegi ..



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महीन रेशम की डोरी है ये, ना ज़ोर इस पे तुम आज़माना

जहाँ ज़रूरत हो जीतने की, बस यूँ ही करना तुम हार जाना



न देखना एक दूसरे को...... भले ही आँखों मे प्यार क्यूँ हो

जो देखना हो, वो साथ देखो बस इक तरफ ही नज़र उठाना



कभी जो जाओगे बृंदावन तो बुलाना राधा ही राधा उसको

कन्हिया जो हो कहाना खुद तो, हां कान्हा जैसे नज़र… Continue

Added by vikas rana janumanu 'fikr' on May 13, 2011 at 1:00pm — 9 Comments

GAZAL by AZEEZ BELGAUMI

ग़ज़ल 



अज़ीज़ बेलगामी



हर शब ये फ़िक्र चाँद के हाले कहाँ गए

हर सुबह ये खयाल उजाले कहाँ गए



अब है शराब पर या दवाओं पे इन्हेसार

जो नींद बख्श दें वो निवाले कहाँ गए



वो इल्तेजायें मेरी तहज्जुद की क्या हुईं

थी अर्श तक रसाई, वो नाले कहाँ गए



मंजिल पे आप धूम मचाने लगे जनाब

मुझ को ये फ़िक्र, पांव के छाले कहाँ गए



दस्ते कलम में आज भी अखलाक सोज़ियाँ

किरदारसाज थे जो रिसाले, कहाँ गए



गुलशन के बीच खिलने लगे…
Continue

Added by Azeez Belgaumi on May 13, 2011 at 10:11am — 16 Comments

शाया हो गया

जो  कहा,वो,कह न पाया हो गया 
शब्द का सब अर्थ जाया हो गया
 
आदमी अब इक अज़ब सी शै बना 
आज अपना कल पराया हो गया
 
बाप उस दिन दो गुना ऊंचा हुआ 
जब कभी बेटा सवाया हो गया
 
ज़िन्दगी दी और सिक्के पा लिए 
सब कमाया बिन कमाया हो गया
 
जब दिमागों की सड़न देखी गयी
आसमां तक बजबजाया हो गया
 
कल नये रंगरूट सा भर्ती हुआ
चार दिन…
Continue

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 13, 2011 at 6:00am — 5 Comments

सामयिक गीत : देश को वह प्यार दे दो... ----संजीव 'सलिल'

सामयिक गीत :

देश को वह प्यार दे दो...

संजीव 'सलिल'

*

रूप को अब तक दिया जो,

देश को वह प्यार दे दो...



इसी ने पाला हमें है.

रूप में ढाला हमें हैं.

हवा, पानी रोटियाँ दीं-

कहा घरवाला हमें है.



यह जमीं या भू नहीं है,

सच कहूँ माता मही है.

देश हित हो ज़िंदगी यह-

देश पर मरना सही है.



आँख के सब स्वप्न दे दो,

साँस का सिंगार दे दो...

*

देश हित विष भी पियें हम.

देश पर मरकर जियें हम.

देश का ही गान… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on May 12, 2011 at 3:57pm — 2 Comments

गीत - तिनका तिनका लौटा दे



हे परोपकारी भगवन

तू रीते घट भर दे

सूखे ताल तलैया भर दे

पथिको को छैया दे…

Continue

Added by vimla bhandari on May 11, 2011 at 1:37pm — 3 Comments

प्यार की वैज्ञानिक व्याख्या

क्या?

प्यार की वैज्ञानिक व्याख्या चाहिए

तो सुनो

ब्रह्मांड का हर कण

तरंग जैसा भी व्यवहार करता है

और उसकी तरंग का कुछ अंश

भले ही वह नगण्य हो

ब्रह्मांड के कोने कोने तक फैला होता है



आकर्षण और कुछ नहीं

इन्हीं तरंगों का व्यतिकरण है

और जब कभी इन तरंगों की आवृत्तियाँ

एक जैसी हो जाती हैं

तो तन और मन के कम्पनों का आयाम

इतना बढ़ जाता है

कि आत्मा तक झंकृत हो उठती है

इस क्रिया को विज्ञान अनुनाद कहता हैं

और आम इंसान

प्यार



इसलिए… Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 11, 2011 at 1:04pm — 5 Comments

मैं जंगल का मोर

मैं जंगल का मोर
शहर में कैसे नाचूँ....
कहाँ मेरी चित चोर 
मैं जिनके नैना बाचूँ
दिखे मेरी मन मीत
कुहू कर उसे बुलाऊँ
छलके मन की प्रीत
झूमकर नाचूं गाऊँ 

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on May 11, 2011 at 8:42am — No Comments

दूध का क़र्ज़

दूध का क़र्ज़



गंगा नहा आए जमुना नहा आए -2

क़र्ज़ तेरे ढूध का माँ कोई चुका ना पाए-२

काशी जा आए,मथुरा जा आए-२

भूलते नहीं माँ तेरी ममता के साए-२

गंगा नहा आए ज----------------

(१) बिन तेर दुनियां में कोई ना मेरा-2

बिन तेर सूना माँ रैन बसेरा-2

नींद ना आए माँ अखियों में बिन तेरे-२

बिन तेरे लोरी माँ कोई सूना ना पाए-२

गंगा नहा आए ज---------------

(२)उंगली पकड़कर चलना सिखाया-२

हर दुःख ग़म से हमको बचाया-२

तू ही बचाए माँ हर इक मुसीबत… Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on May 10, 2011 at 4:03pm — 2 Comments

औरत एक औरत भी है

औरत कभी मां है

कभी बहन, कभी बेटी

तो कभी पत्नी या प्रेयसी

इन सबसे अलग

औरत एक औरत भी है

 

अपने आप में मरती है

उफ! तक भी नहीं करती है और

पुरूष के अहं मो टूटने से

बचाए रखती है

 

वह जानती है

पुरूष एक बार टूट जाएगा तो

दुबारा जुड़ नहीं पाएगा

जबकि औरत?

 

औरत ने पाई है मिट्टी की प्रकृति

टूटते ही अपने आंसुओं से

गुथेगी खुद को, और जुड़ जाएगी

नई…

Continue

Added by rajendra kumar on May 10, 2011 at 1:42pm — 2 Comments

जताते क्यों हो

जताते क्यों हो


हमसे करते हो मुहब्बत तो जताते क्यों हो

दर्द-ए-दिल हमको ए-दोस्त  दिखाते क्यों हो
अपनें भी दिल में जख्मों की कमीं कोई नहीं
दास्ताँ दर्द की तुम मुझको सुनाते क्यों…
Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on May 10, 2011 at 11:44am — 3 Comments

मुक्तिका: तुम क्या जानो ---- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

तुम क्या जानो

संजीव 'सलिल'

*

तुम क्या जानो कितना सुख है दर्दों की पहुनाई में.

नाम हुआ करता आशिक का गली-गली रुसवाई में..

 

उषा और संझा की लाली अनायास ही साथ मिली.

कली कमल की खिली-अधखिली नैनों में, अंगड़ाई में..

 

चने चबाते थे लोहे के, किन्तु न अब वे दाँत रहे.

कहे बुढ़ापा किससे क्या-क्या कर गुजरा तरुणाई में..

 

सरस परस दोहों-गीतों का सुकूं जान को देता है.

चैन रूह को मिलते देखा गजलों में,…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on May 10, 2011 at 10:03am — 11 Comments

माँ ......

माँ , रहती हो हर पल मेरे साथ .....



जब निकलता हूँ घर से बाहर , चाहे मैं पलटकर देखूं ना देखूं

खड़ी रहती हो तुम दरवाज़े पर ही जब तक हो ना जाऊं ओझल गली के मोड़ पर ,

और फिर चलने लगती हो साथ मेरे दुआओं के रूप में .....



नींद ना आये जब मुझे तो गुज़ार देती हो सारी रात ,

थपकियाँ देते हुए मेरे माथे पर ,

और सो जाता हूँ मैं सुकून से .....



कभी जो आना-कानी करूँ खाने के नाम पे ,

तो यूं खिलाती हो अपने हाथों से ,

मानो भूख मेरी शांत होती हो और तृप्त… Continue

Added by Veerendra Jain on May 10, 2011 at 12:21am — 7 Comments

मेरे सपनों में अक्सर नेता जी आते हैं .

मेरे सपनों में अक्सर नेता जी आते हैं .

उनके आते ही मन में हलचल मच जाती हैं ,
और मैं उनको देखता हूँ ,
उन्हें सुनता हूँ
और उसके बाद ,
इस निर्णय पे…
Continue

Added by Rash Bihari Ravi on May 9, 2011 at 12:30pm — 1 Comment

पुछल्ले हो गये

जब से कॉलोनी मुहल्ले हो गये
लोग सब लगभग इकल्ले हो गये
 
दोस्ती हम ने इबादत मान ली 
बस कई इल्ज़ाम पल्ले हो गये
 
भोक्ता,कर्त्ता सुना भगवान है 
लोग महफ़िल के निठल्ले हो गये
 
ज़िक्र की पोशीदगी बढ़ने लगी 
बात में बातों के छल्ले  हो गये
 
बेअदब हो चाँद फिर मंज़ूर है
अब तो सब तारे पुछल्ले हो गये   

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 9, 2011 at 6:30am — 9 Comments

ऐ काश! मेरे भी माँ होती

ऐ काश! मेरे भी माँ होती ।

जब-जब मेरी अखियाँ रोती ।

लापरवाहियां दुख देती।

सिर पे मेरे हाथ फिरोती।

ऐ काश मेरे भी माँ होती।

 

ममतामयी जवानी खोती।

सीने पर ज्यूं चले करोती।

अंखियां बरसे जैसे…

Continue

Added by nemichandpuniyachandan on May 8, 2011 at 11:30pm — 5 Comments

लघु कविता :- माँ

माँ !

देखा तो होगा तुझे

पर चेहरा याद नहीं…

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Added by Abhinav Arun on May 8, 2011 at 7:00pm — 9 Comments

आँख का पानी

आँख का पानी



होने लगा है कम अब आँख का पानी,

छलकता नहीं है अब आँख का पानी|



कम हो गया लिहाज,बुजुर्गों का जब से,

मरने लगा है अब आँख का पानी|



सिमटने लगे हैं जब से नदी,ताल,सरोवर

सूख गया है तब से आँख का पानी|



पर पीड़ा मे बहता था दरिया तूफानी

आता नहीं नजर कतरा ,आँख का पानी|



स्वार्थों कि चर्बी जब आँखों पर छाई

भूल गया बहना,आँख का पानी|



उड़ गई नींद माँ-बाप कि आजकल

उतरा है जब से बच्चों…

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Added by dr a kirtivardhan on May 8, 2011 at 5:30pm — 5 Comments

मेरी माँ .

ये नहीं कहूँगी की याद आ गई, क्योंकि उनको तो कभी भूलती ही नहीं, हाँ उनकी कमी का फिर से एहसास हुआ जब हर ओर माँ के अनुपम स्वरूपों को देखा आज मदर्स डे पर |



सुबह सुबह मुझे भी मेरे बच्चों की ओर से प्यार भरी मुस्कानों के साथ स्वयं बनाया हुआ कार्ड और उपहार मिला :)

सुख और दुःख का अजीब संगम था वो पल..नहीं ..सिर्फ वो पल नहीं ..आज का दिन ही शायद, तब माँ के लिए कोई निर्धारित दिन नहीं था किन्तु माँ थीं मेरे पास..आज वो नहीं, हाँ सशरीर तो नहीं किन्तु उनकी दी शिक्षा, संस्कार और स्नेह सदा ही…

Continue

Added by Lata R.Ojha on May 8, 2011 at 3:30pm — 2 Comments

या हैं मौन...

आज एक ही ढर्रे पे चलना चाहता  है कौन?

सभी को है चाह परिवर्तन की, मुखर हो या मौन |



खोजते है कोई द्वार या रास्ता चाहे…
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Added by Lata R.Ojha on May 7, 2011 at 11:30pm — 11 Comments

’मदर्स-डे’ स्पेशल (मां का प्यार)

सबसे पावन, सबसे निर्मल, सबसे सच्चा मां का प्यार

सबसे अनोखा, सबसे न्यारा, सबसे प्यारा मां का प्यार ।



बच्चे को ख़ुश देख-देख के, मन ही मन हंसता रहता

जब संतान पे विपदा आए, तड़प ही उठता मां का प्यार ।



सुख की ठंडी छांव में शीतल पवन के जैसा लहराता…

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Added by moin shamsi on May 7, 2011 at 5:00pm — 8 Comments

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