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mata akhir mata hi hoti hai.
bahut sundar rachna hai ma ke upar. mera badhai kubul kare.
तो यूं खिलाती हो अपने हाथों से ,
मानो भूख मेरी शांत होती हो और तृप्त तुम्हारी आत्मा.
बेहद खुबसूरत ख्याल, यही तो है माँ की ममता, अपने मुह के निवाले को भी माँ हमारे मुह में डाल देती है, हे माँ सच धरती पर तुमसे बड़ा और महान कोई नहीं |
जो दर्द की एक भी लकीर उभर आती है चेहरे पर
तो एक पल में पहचान लेती हो उसे
यही तो बात है, इक माँ ही है जो अपने बच्चे के हर हाव भाव को पहचान लेती है, माँ की नज़रों से बचना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है |
माँ ,
तुमसे ही है अस्तित्व मेरा ,
यथार्थ है वीरेन्द्र जी , बधाई इस खुबसूरत रचना हेतु |
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