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२२/२२/२२/२
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कुछ हो मत हो नेता दिख
मुख से निकला वादा दिख।१।
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दुनिया को गर खुश रखना
उसके हित बस खटता दिख।२।
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शीष नवायें सब तुझ को
इच्छा है तो दादा दिख।३।
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लोकतन्त्र की रीत निभा
राजा होकर जनता दिख।४।
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खबरों में गर आना है
नियमित से बस उल्टा दिख।५।
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भीड़ जुटानी अगल बगल
जीने से बढ़ मरता दिख।६।…
Posted on September 12, 2023 at 7:49am — 3 Comments
२२२२/ २२२२
जब दंगों का मंजर देखा
सब आँखों में बस डर देखा।१।
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जलती बस्ती अनजानी थी
पर उसमें भी निज घर देखा।२।
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मानव तो मानव जैसे ही
मंदिर मस्जिद अन्तर देखा।३।
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अपने दुख तब से बौने हैं
औरों का दुख ढोकर देखा।४।
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चीख उठीं दीवारें सारी
सन्नाटा जब छूकर देखा।५।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Posted on August 31, 2023 at 5:40am
जब आजादी पायी है तो, आजादी का मान रखो।
देश, तिरंगे, लोकरीति की, सबसे ऊँची शान रखो।।
*
पुरखों ने बलिदान दिया था, खुली हवा हम पायें।
मस्त गगन में विचरें, खेलें, मिलकर लय में गायें।।
राजनीति की चकाचौंध में, कभी नहीं भरमायें।
भले-बुरे की, सोचें समझें, तब निर्णय पर आयें।।
*
सिर्फ स्वार्थ की अति से बेबश, पुरखे दास बने तब।
स्वार्थ न फिर सिर चढ़े हमारे, सोते जगते ध्यान रखो।
*
भूमि एक थी, धर्म एक तब, किन्तु एकता टूटी।
इस कारण ही सब ने आकर, इज्जत…
Posted on August 15, 2023 at 6:42am — 2 Comments
हिन्दू भैया!,मुस्लिम भैया!, क्यों करते हो दंगा।
हो जाता है इस से जग में, देश हमारा नंगा।।
एक साथ में रहते देखो, बीतीं कितनी सदियाँ।
फिर भी नहीं सुहाने देती, इक दूजे को अँखियाँ।।
*
क्यों इतनी घृणा को मन में, पाल रहे हो अपने।
क्यों अपने हाथों से अपने, जला रहे हो सपने।।
जो मजहब के बने पुरोधा, कितना मजहब मानें।
झाँक कभी जीवन में उनके, ये सच भी तो जानें।।
*
वँटवारे की पीर सहन की, पुरखों ने जो सब के।…
Posted on August 8, 2023 at 4:28pm
सादर आभार आदरणीय
अपने आतिथ्य के लिए धन्यवाद :)
मुसाफिर सर प्रणाम स्वीकार करें आपकी ग़ज़लें दिल छू लेती हैं
जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’ जी
प्रिय भ्राता धामी जी सप्रेम नमन
आपके शब्द सहरा में नखलिस्तान जैसे - हैं
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