नभ पर लकदक चाँद दे, रोटी का आभास
बिन रोटी कब प्रीत भी, करती कहो उजास।१।
*
सभ्य जगत में है भले, हर वैज्ञानिक योग
रोटी खातिर आज भी, भटक रहे पर लोग।२।
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भूखे प्यासे प्राण को, बासी रोटी खीर
लगता बस धनहीन को, मँहगाई का तीर।३।
*
रोटी ने जिसको किया, विवश और कमजोर।
उसकी सबने खींच दी, हर इज्जत की डोर।४।
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पहली रोटी गाय को, अन्तिम देना स्वान।
पुरखों की इस सीख को, कौन रहा अब…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 17, 2024 at 10:31pm — No Comments
गर्दभ का हर युग रहे, गर्दभ सा ही हाल
बनता नहीं तुरंग वह, भले लगा ले नाल।१।
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भूला पुरखे थे कभी, चेतक से बेजोड़
करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़।२।
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कहते लोग तुरंग को, कब होता घर दूर
चाहे हो वो काठ का, जय लाता भरपूर।३।
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क्या पौरुष के रंग वो, दिखलाता संसार।
मोड़ न पाया रास जो, बनकर अश्व सवार।४।
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रथ में जोते चल रहा, सूरज सात तुरंग
इसीलिए लड़ पा रहा, तम से लम्बी जंग।५।
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घोड़े पर जो वायु के, होता बहुत सवार
छिन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 10, 2024 at 6:09am — 3 Comments
आँखों तक ही रूप का, होता है संसार
किंतु गुणों से आत्मा, पाती है झंकार।१।
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रखने तन को छरहरा, देते भोजन त्याग।
कोई कहता हैं नहीं, लेकिन गुण से जाग।२।
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गुण की चिंता है किसे, दिखता रहे गँवार
अब तो केवल रूप को, सब ही रहे सँवार।३।
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जाना जिसने रूप से, गुण का गुण है खास
उस के जीवन से कभी, जाती नहीं उजास।४।
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गुण है गुण गुणवान को, अवगुण गुण है दुष्ट
जिस को भाता जो रहा, करता उसको पुष्ट।५।
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गुण से बढ़कर रूप का, जो करता गुणगान
करता गुण…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 9, 2024 at 4:15am — 2 Comments
जूते तो शोरूम में, पुस्तक अब फुटपाथ।
कैसे लोगो फिर लगे, कहो तरक्की हाथ।२।
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कलयुग में उलटा हुआ, मानव का आचार
महल बनाता श्वान को, गायों को दुत्कार।२।
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पढ़ो धर्म के साथ ही, नित नूतन विज्ञान
तब जाकर होगा कहीं, सुंदर सकल जहान।३।
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केवल कोरा ज्ञान ही, कब सुख का आधार
साथ चाहिए सीख में, नैतिकता संस्कार।४।
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दिखते पग पग खूब हैं, होते नित सतसंग
फिर भी करते…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 8, 2024 at 9:25am — No Comments
पतझड़ छोड़ वसन्त में, उग जाते हैं शूल
जीवन में रहता नहीं, समय सदा अनुकूल।१।
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सावन सूखा बीतता, कभी डुबोता जेठ
बिना भूल के भी समय, देता कान उमेठ।२।
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करते सुख की कामना, मिलते हैं आघात
जब बोते सूखा पड़े, पकने पर बरसात।३।
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अनचाही जो हो दशा, दुखी न होना मीत
देना मुट्ठी बंद ही, रही समय की रीत।४।
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रहा निराला ही सदा, यहाँ समय का खेल
जीवन कटे बिछोह में, मरण कराता मेल।५।
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छुरी बगल में मीत के, दुश्मन के कर फूल
कैसे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 24, 2024 at 9:23am — 2 Comments
किसने पायी मुक्ति है, कौन हुआ आजाद।
प्रश्न खड़ा हर द्वार पर, आजादी के बाद।।
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कहने को तो भर गये, अन्नों से गोदाम।
फिर भी भूखे पेट हैं, इतने क्योंकर राम।।
गर्म आज भी खूब है, क्यों काला बाजार।
हर चौराहे लुट रही, बहुत आज भी नार।।
अन्तिम जन है आज भी, पहले जैसा दीन।
चोर उचक्के हो गये, खुशियों में तल्लीन।।
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हाथ लिए जो लाठियाँ, अब भी पाता दाद।
किसने पायी मुक्ति है, कौन हुआ आजाद।।
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देशभक्ति अब गौंण है, गद्दारी …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 14, 2024 at 2:53pm — 8 Comments
जिस को भी कड़वे लगे, बाबू जी के बोल
उसने समझो खो दिया, हर अमृत अनमोल।१।
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बाबू जी ने क्या किया, कह दे जो औलाद
समझो उसने कर लिया, सकल पुण्य बर्बाद।२।
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बाबू जी करते कहाँ, भौतिक सुख की आस
उन के मन में चाह बस, सन्तानें हों पास।३।
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सोचा सब के चैन की, खुद रहकर बेचैन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 8, 2024 at 6:24am — 6 Comments
विरही मन कहता फिरे, समझे पीड़ा कौन
आँगन,पनघट, राह सह, हँसी उड़ाये भौन।१।
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करते हैं दो चार जो, परदेशी से नैन
जले विरह की आग में, उन का मन बेचैन।२।
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घुमड़ी बदली देखकर, मन में भड़की आग
जिस के पिय परदेश में, फूटे उस के भाग।३।
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जब साजन परदेश में, शृंगारित ना केश
सावन दावानल लगे, जलता हर परिवेश।४।
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पिया मिलन की प्यास जो, तन मन करे अधीर
रूठी-रूठी भूख को, लगती विष सी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 3, 2024 at 11:30am — 2 Comments
पसीना बोलता है (गीत)
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चन्द सूखी रोटियाँ खाकर
कष्ट में हँस गीत नित गाकर
खुशी वो घोलता है।
पसीना बोलता है।।
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देह मैली, पर जगत चमका
सब सुधारा, आ जहाँ धमका
हाथ की छैनी कुदालों से
नित द्वार सुख के खोलता है।
पसीना बोलता है।।
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स्वप्न जो है पोषता सब का
राह आगन देखता उस का
शौक से कब छोड़ घर अपना
परदेश में वह डोलता है।
पसीना बोलता है।।
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खेत हों …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 2, 2024 at 2:35pm — 2 Comments
पड़ते दुख के घाट पर, कभी न जिनके पाँव
समझ न आता है उन्हें, जग में रोता गाँव।१।
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चल आती है जो खुशी, दुख बैठा जिस राह
पुरखों से सुनते वही, टिकती बहुत अथाह।२।
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सुख से सुख की कब हुई, तुलना जग में बोल
सुख का करते मान हैं, बजकर दुख के ढोल।३।
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दुख आकर देता सदा, सुख को रंग हाजार
उस बिन फीका ही रहे, सुख का घर संसार।४।
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दुख तो ऐसा बौर है, जिस भीतर सुख बीच
जोर-जबर से कब इसे, कोई सका उलीच।५।
*…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 22, 2024 at 6:00am — 2 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
कानों से देख दुनिया को चुप्पी से बोलना
आँखों को किसने सीखा है दिल से टटोलना ।१।
*
कौशल तुम्हें तो आते हैं ढब माप तौल के
जब चाहो खूब नींद को सपनों से तोलना।२।
*
कब जाग जाये कौन सा बदज़ात जानवर
सीमा के हर कपाट को खुलकर न खोलना ।३।
*
करना हमेशा अन्न का जीवन में मान तुम
चाहे पड़े भकोसना या फिर कि चोलना।४।
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चक्का समय का घूम के लौटा है फिर वहीं
जिस में…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 8, 2024 at 5:44am — No Comments
निभाकर रीत होली में
दिलों को जीत होली में।१।
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भरें जीवन उमंगों से
चलो गा गीत होली में।२।
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सभी सुख दुश्मनी छीने
बनो सब मीत होली में।३।
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बहुत विरही तड़पता है
सफल हो प्रीत होली में।४।
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किसी को याद मत आये
गयी जो बीत होली में।५।
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लगे अब रोग कहते हैं
दुखों को पीत होली में।६।
*
गिरा दो रंग बरसाकर
खड़ी हर भीत होली में।७।
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यही अरदास है पिघलें
दिलों की शीत होली…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 21, 2024 at 6:55am — No Comments
नगर भर चले दौड़ काली हवा
है खुश खूब झकझोर डाली हवा।१।
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गिरे फूल कलियाँ विवश भूमि पर
बजा पात कहती है ताली हवा।२।
*
कभी दान जीवन सभी को दिया
हुई आज लेकिन सवाली हवा।३।
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कहाँ से प्रदूषण धरा का मिटे
नहीं सीख पायी जुगाली हवा।४।
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कँपा शीत में नित बढ़ी जब तपन
गयी लौट कुल्लू मनाली हवा।५।
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तनिक तो कहीं बात होती है कुछ
किसी की चली कब है…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 6, 2024 at 11:04am — 6 Comments
१२२/१२२/१२२/१२
*
हमें एक नदिया मिली नाम की
न थी वो किसी प्यास के काम की।१।
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जिसे देश कहते हैं सब राम का
वहीं पर फजीहत हुई राम की।२।
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दुखाती है मन जो महज याद से
करो अब न बातें उसी शाम की।३।
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बिना उस के ये भी परायी गली
शरण में चलें कौन से धाम की।४।
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मिटायेगी वाणी सभी दूरियाँ
मिठासें रखो बस पके आम की।५।
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चलो अब तो साँसों इसे छोड़कर
घड़ी आ गयी तन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 29, 2024 at 10:42pm — No Comments
जिन्हें भाव जग में खले दीप के
वही कहते आरे चले दीप के।१।
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यहाँ बाँध घन्टी गले दीप के
तमस जी रहा है तले दीप के।२।
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बहुत लोग भटके यहाँ साँझ को
नहीं एक हम ही छले दीप के।३।
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चले है तमस यूँ दिखा आँख जो
लगे सब को अब दिन ढले दीप के।४।
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कहाँ कब जले घर नहीं है पता
इरादे कहाँ अब भले दीप के।५।
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परायों से बढ़ आज अपनो से भय
न बाती ही कालिख …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 28, 2024 at 2:42pm — No Comments
अँधेरे उजाले मिले प्यार से
चकित है मनुज उनके व्यवहार से।१।
*
नहीं काम आता किसी के कोई
मिटे दुख भला कैसे संसार से।२।
*
हटा मैल मन का तनिक भी नहीं
नहा कर चले नित्य हरिद्वार से।३।
*
न बदला है कोई किसी के कहे
जो बदला स्वयं अपने आचार से।४।
*
अकेले न तुम हो असंतुष्ट अब
हमें भी तो शिकवा है दो चार से।५।
*
शिखर चाहते हैं सजाना बहुत…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 27, 2024 at 11:14pm — No Comments
करुण रुदन करता नहीं, कोई जाता देख
चाहे लिखता वो रहा, हर दिन सुख का लेख।१।
*
कैसे मुख अब फेर लूँ, मन में लिए सवाल
इस से भी बदतर कहीं, ना हो आगत साल।२।
*
यादें छोड़ तमाम फिर, गया और इक वर्ष
लाभ हानि का लोग क्यों, करते हैं निष्कर्ष।३।
*
स्वागत को हर्षित हुए, करें विदा तो हर्ष
क्या बोलूँ अब मैं भला, कैसा था यह वर्ष।४।
*
साथ समय के नित जिसे, कोसा दसियों बार
वही बिछड़ते दे रहा, नया साल उपहार।५।
*
नये …
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2023 at 10:00pm — No Comments
2122/१२१२/२२
***
दिल की कालिख सँवार आँखों में
कह रहे सब खुमार आँखों में।१।
*
फिर सुहाता न कोई भी उस को
उग गया जिस के खार आँखों में।२।
*
वार करती है जानलेवा वो
क्या लिए है कटार आँखों में।३।
*
दिल तो बेचैन उस की बातों से
दिख रहा पर करार आँखों में।४।
*
सिर्फ दुख से न होती नम लोगो
हर्ष भी लाता धार आँखों में।५।
*
मन की चाहत सुबास सरसों की
खिल गयी पर …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2023 at 7:29pm — 1 Comment
२२१/२१२१/१२२१/२१२
रहती हो जिसके साथ मुसीबत हरी भरी
कैसे हो उस की यार तबीयत हरी भरी।१।
*
वो भाग्यवान तात से जिसको मिले सदा
आशीष लाड़ डाँट नसीहत हरी भरी।२।
*
सबने है आग द्वेष की सुलगा रखी बहुत
रखता है मन में कौन मुहब्बत हरी भरी।३।
*
बढ़ता न ताप दुनिया का ऐसे कभी नहीं
रखते धरा को लोग जो औसत हरी भरी।४।
*
बाँटें दुखों के बोझ को मिलके सदा यहाँ
दो ईश खूब सब को ही…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2023 at 7:22pm — 2 Comments
२१२२/१२१२/२२
*
सूनी आँखों की रोशनी बन जा
ईद आयी सी फिर खुशी बन जा।१।
*
अब भी प्यासा हूँ इक सदी बीती
चैन पाऊँ कि तू नदी बन जा।२।
*
हो गया जग ये शीत का मौसम
धूप सी तू तो गुनगुनी बन जा।३।
*
मौत आकर खड़ी है द्वार अपने
एक पल को ही ज़िन्दगी बन जा।४।
*
मुग्ध कर दू फिर से हर महफिल
आ के अधरों पे शायरी बन जा।५।
*
इस नगर में तो सिर्फ मसलेंगे
फूल जाकर तू जंगली बन जा।६।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 2, 2023 at 7:00am — 3 Comments
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