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२१२२/२१२२/२१२२
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आग में जिसके ये दुनिया जल रही है
वह सियासत कब तनिक निश्छल रही है।१।
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पा लिया है लाख तकनीकों को लेकिन
और आदम युग में दुनिया ढल रही है।२।
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क्लोन का साधन दिया विज्ञान ने पर
मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है।३।
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मान मर्यादा मिटाकर पाप करती
(भूल जाती मान मर्यादा सदा वह)
भूख दौलत की जहाँ भी पल रही है।४।
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गढ़ लिए मजहब नये कह बद पुरानी
पर न सीरत एक की उज्वल रही है।५।
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दौड़ती नफरत हमेशा फिर रही…
Posted on April 30, 2025 at 11:41am — 1 Comment
रक्त रहे जो नित बहा, मजहब-मजहब खेल।
उनका बस उद्देश्य यह, टूटे सबका मेल।।
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जीवन देना कर सके, नहीं जगत में कर्म।
रक्त पिपाशू लोग जो, समझेंगे क्या धर्म।।
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छीन किसी के लाल को, जो सौंपे नित पीर।
कहाँ धर्म के मर्म को, जग में हुआ अधीर।।
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बनकर बस हैवान जो, मिटा रहे सिन्दूर।
वही नीच पर चाहते, जन्नत में सौ हूर।।
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मंसूबे उनके जगत, अगर गया है ताड़।
देते है फिर क्यों उन्हें, कहो धर्म की आड़।।
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पहलगाम ही क्यों कहें, पग-पग मचा…
Posted on April 30, 2025 at 11:26am
सब को लगता व्यर्थ है, अर्थ बिना संसार।
रिश्तों तक को बेचता, इस कारण बाजार।।
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वह रिश्ते ही सच कहूँ, पाते लम्बी आयु
जहाँ परखते हैं नहीं, दीपक को बन वायु।।
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तोड़ो मत विश्वास की, कभी भूल से डोर
यह टूटा तो हो गया, हर रिश्ता कमजोर।।
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करे दम्भ लंकेश सा, कुल का पूर्ण विनाश।
ढके दम्भ की धूल ही, रिश्तों का आकाश।।
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रिश्तों में सब ढूँढते, केवल स्वार्थ जुगाड़।
शेष बची है अब कहाँ, अपनेपन की आड़।।
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सुख में सब वाचाल हैं, दुख में बेढब…
Posted on March 16, 2025 at 8:50pm — 4 Comments
ढीली मन की गाँठ को, कुछ तो रखना सीख।
जब चाहो तब प्यार से, खोल सके तारीख।१।
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मन की गाँठे मत कसो, देकर बेढब जोर
इससे केवल टूटती, अपनेपन की डोर।२।
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दुर्जन केवल बाँधते, लिखके सबका नाम
लेकिन गाँठें खोलना, रहा संत का काम।३।
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छोटी-छोटी बात जब, बनकर उभरे गाँठ
सज्जन को वह पीर दे, दुर्जन को दे ठाँठ।४।
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रिश्तो को कुछ धूप दो, मन की गाँठे खोल
उनको मत मजबूत कर, कड़वी बातें बोल।५।
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बातें कहकर खोल दे, बाँध न रहकर मौन
मन की…
Posted on February 25, 2025 at 11:31pm — 2 Comments
सादर आभार आदरणीय
अपने आतिथ्य के लिए धन्यवाद :)
मुसाफिर सर प्रणाम स्वीकार करें आपकी ग़ज़लें दिल छू लेती हैं
जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’ जी
प्रिय भ्राता धामी जी सप्रेम नमन
आपके शब्द सहरा में नखलिस्तान जैसे - हैं
शुक्रिया लक्ष्मण जी
हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी!आपने मुझे इस क़ाबिल समझा!
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